गोधरा दंगे के तीन दोषी बरी, सबूतों के अभाव में हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

गुजरात हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान गोधरा दंगे के तीन लोगों को बरी कर दिया... इन्हें 2006 में आणंद सेशन कोर्ट ने 2002 के गोधरा कांड के बाद...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों से जुड़े एक मामले में तीन दोषियों को बरी कर दिया…… कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इन व्यक्तियों की दोष सिद्धि विश्वसनीय और पुष्टि करने वाले साक्ष्यों पर आधारित नहीं थी…… यह फैसला आणंद की एक फास्ट ट्रैक कोर्ट द्वारा 2006 में सुनाए गए फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के बाद आया…… जिसमें तीनों व्यक्तियों सचिन पटेल, अशोक पटेल और अशोक गुप्ता को पांच-पांच साल की सजा सुनाई गई थी…… हाई कोर्ट की जस्टिस गीता गोपी की बेंच ने साक्ष्यों के मूल्यांकन में कमी……. और आरोपियों की पहचान साबित न होने के आधार पर यह फैसला सुनाया……

आपको बता दें कि 2002 में गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के एक डिब्बे में आगजनी की घटना ने पूरे राज्य में सांप्रदायिक दंगे भड़का दिए थे……. इस घटना में 59 लोगों की मौत हो गई थी……. जिसके बाद हिंसा की कई घटनाएं सामने आई थीं…… वहीं यह मामला उनमें से एक था…….. जिसमें आरोपियों पर दंगा, आगजनी…… और गैरकानूनी सभा जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे……

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग लगने की घटना ने पूरे देश को झकझोर दिया था……. इस घटना में 59 लोग जिंदा जल गए थे……… जिनमें ज्यादातर कारसेवक थे……. जो अयोध्या से लौट रहे थे……. इस आगजनी को एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा माना गया…… जिसके बाद गुजरात में व्यापक सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे….. इन दंगों में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों लोग प्रभावित हुए……

गोधरा कांड के ठीक एक दिन बाद 28 फरवरी 2002 को आणंद जिले के एक इलाके में हिंसक भीड़ ने दुकानों को नुकसान पहुंचाया…… और कुछ दुकानों में आग लगा दी…… अभियोजन पक्ष के अनुसार यह भीड़ जिला मजिस्ट्रेट द्वारा बॉम्बे पुलिस अधिनियम की धारा 135 के तहत जारी किए गए निषेधाज्ञा के आदेश का उल्लंघन कर रही थी…… इस घटना में शामिल होने के आरोप में नौ लोगों पर मुकदमा चलाया गया…… जिसमें से चार को फास्ट ट्रैक कोर्ट ने दोषी ठहराया था…… इनमें सचिन पटेल, अशोक पटेल, अशोक गुप्ता और एक अन्य व्यक्ति शामिल थे……. जिनकी 2009 में मृत्यु हो चुकी है…..

आपको बता दें कि आणंद की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 29 मई 2006 को अपने फैसले में चार लोगों को भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी ठहराया…… इन धाराओं में दंगा, आगजनी, गैरकानूनी सभा और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे अपराध शामिल थे…. कोर्ट ने चारों दोषियों को पांच-पांच साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई….. अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि ये लोग 28 फरवरी 2002 को हिंसक भीड़ का हिस्सा थे…… जिसने न्यायालय के आदेश का उल्लंघन करते हुए दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी की थी…..

हालांकि दोषियों ने इस फैसले को गुजरात हाई कोर्ट में चुनौती दी…… सचिन पटेल, अशोक पटेल और अशोक गुप्ता ने अपनी याचिकाओं में दावा किया कि उनकी दोष सिद्धि गलत थी….. और साक्ष्यों का मूल्यांकन ठीक से नहीं किया गया…. और उन्होंने यह भी कहा कि उनकी पहचान साबित नहीं हुई थी….. और अभियोजन पक्ष उनके खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा था…….

आपको बता दें कि जस्टिस गीता गोपी की एकल बेंच ने सोमवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाया….. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के न्यायाधीश ने साक्ष्यों का मूल्यांकन करने में गंभीर चूक की……. हाई कोर्ट ने पाया कि दोष सिद्धि के लिए पेश किए गए साक्ष्य न तो विश्वसनीय थे…. और न ही पुष्टिकारक…. कोर्ट ने यह भी कहा कि मुकदमे के दौरान आरोपियों की पहचान साबित करने में अभियोजन पक्ष पूरी तरह विफल रहा……

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि यह साबित नहीं हो पाया कि याचिकाकर्ता गैरकानूनी सभा का हिस्सा थे या नहीं…. और आगजनी में शामिल थे या नहीं….. सामूहिक उद्देश्य के तहत उनके आगजनी…. और निजी एवं सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के किसी भी कृत्य में शामिल होने की बात को मुकदमे के दौरान साबित नहीं किया जा सका….. इसके आधार पर हाई कोर्ट ने सचिन पटेल, अशोक पटेल….. और अशोक गुप्ता को बरी कर दिया….. कोर्ट ने फास्ट ट्रैक कोर्ट के 2006 के फैसले को रद्द करते हुए तीनों को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया…..

जिसको लेकर अभियोजन पक्ष ने अपने तर्कों में कहा था कि 28 फरवरी 2002 को आणंद में हुई हिंसक घटना में तीनों दोषी सक्रिय रूप से शामिल थे…… अभियोजन के अनुसार ये लोग उस भीड़ का हिस्सा थे…… जिसने जिला मजिस्ट्रेट के आदेश का उल्लंघन करते हुए दुकानों में तोड़फोड़ और आगजनी की…… अभियोजन पक्ष ने यह भी दावा किया कि यह भीड़ सांप्रदायिक भावनाओं से प्रेरित थी….. और गोधरा कांड के बाद भड़की हिंसा का हिस्सा थी…..

हालांकि हाई कोर्ट ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष अपने आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा….. कोर्ट ने यह भी नोट किया कि साक्ष्यों में कई खामियां थीं…… जैसे कि गवाहों के बयानों में असंगतियां…… और आरोपियों की मौजूदगी को पुष्ट करने वाले ठोस सबूतों का अभाव…….

बता दें कि गोधरा कांड गुजरात के इतिहास में एक काला अध्याय है…… 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई थी…… इस घटना को लेकर कई सिद्धांत सामने आए……. जिनमें से कुछ में इसे एक सुनियोजित हमला बताया गया……. वहीं इस घटना के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे…… जिनमें हजारों लोग प्रभावित हुए और सैकड़ों लोगों की जान चली गई…….

गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों ने न केवल गुजरात…… बल्कि पूरे देश में सामाजिक और राजनीतिक तनाव को बढ़ा दिया…….. इन दंगों से जुड़े कई मामले आज भी कोर्ट में चल रहे हैं…….. और कई मामलों में फैसले आ चुके हैं….. हाई कोर्ट का यह ताजा फैसला भी उसी भाग का हिस्सा है…… जो साक्ष्यों की कमी और कानूनी प्रक्रिया में कमियों को उजागर करता है…….

वहीं हाई कोर्ट के फैसले ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्या गोधरा दंगों से जुड़े मामलों में साक्ष्यों का संग्रह और मूल्यांकन सही तरीके से किया गया था…… कई मामलों में, अभियोजन पक्ष पर साक्ष्यों को ठोस तरीके से पेश न कर पाने के आरोप लगे हैं…. इस मामले में भी हाई कोर्ट ने साफ कहा कि फास्ट ट्रैक कोर्ट ने साक्ष्यों का सही मूल्यांकन नहीं किया….. और गवाहों के बयानों में कई बातें मेल नहीं खाती थीं…..

आपको बता दें कि गोधरा कांड और उसके बाद हुए दंगों ने गुजरात की सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाला……. इन दंगों ने न केवल समुदायों के बीच तनाव बढ़ाया…… बल्कि कई परिवारों को बेघर और बेसहारा भी कर दिया…… इस तरह के मामलों में कोर्ट के फैसले समाज में एक नया संदेश देते हैं…… हाई कोर्ट का यह फैसला उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण हो सकता है…… जो मानते हैं कि न्याय प्रणाली में सुधार की जरूरत है…… हालांकि, इस फैसले से उन लोगों में भी नाराजगी हो सकती है……. जो मानते हैं कि गोधरा दंगों के दोषियों को सजा मिलनी चाहिए…… यह मामला एक बार फिर चर्चा का विषय बन सकता है……. और समाज में विभिन्न विचारधाराओं के बीच बहस को हवा दे सकता है……

गुजरात हाई कोर्ट का यह फैसला गोधरा दंगों से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण कदम है……. जस्टिस गीता गोपी की बेंच ने साफ किया कि बिना ठोस साक्ष्यों के किसी को दोषी ठहराना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है…… सचिन पटेल, अशोक पटेल और अशोक गुप्ता को बरी किए जाने से यह संदेश जाता है कि कानून सबूतों….. और तथ्यों के आधार पर काम करता है…… न कि भावनाओं या दबाव के आधार पर……

 

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