महायुति में मचा ‘महाभारत’, BJP हुई परेशान

मुंबई। लोकसभा चुनावों के आगाज में अब सिर्फ 20 दिनों का ही समय बाकी रह गया है। सात चरणों में होने वाले लोकसभा चुनावों के लिए पहले चरण की वोटिंग 19 अप्रैल को ही होनी है। इसलिए अब सभी दलों ने पहले चरण के लिए तो अपनी-अपनी कमर कस ही ली है। साथ ही अन्य चरणों के लिए भी राजनीतिक दल अपनी-अपनी योजनाओं को अंतिम रूप देने में जुट गए हैं। सभी दल अपने प्रत्याशियों के चयन और उनके ऐलान व गठबंधन में शामिल अपने सहयोगी दलों के साथ सीट बंटवारे की बात को फाइनल करके अपनी रणनीतियों को अमलीजामा पहनाने में लगे हुए हैं।

कई राज्यों में गठबंधन हो रहे हैं। लेकिन इस बीच 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र में सीट बंटवारा अभी भी भाजपा के लिए टेढ़ी खीर बना हुआ है। क्योंकि यहां भाजपा के नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन में शामिल दल शिवसेना शिंदे गुट और एनसीपी अजित पवार के साथ बीजेपी का तालमेल नहीं बन पा रहा है। हालांकि, इस दौरान बीजेपी अपने 20 प्रत्याशियों को घोषित कर चुकी है। तो वहीं शिवसेना शिंदे गुट और अजित पवार भी अपने कुछ एक प्रत्याशियों का ऐलान कर चुके हैं। लेकिन अभी तक औपचारिक ऐलान होना महायुति में बाकी ही है।

बीजेपी के नेतृत्व वाले महायुति में सीटों को लेकर मचे विकट महाभारत का अंदाजा आप इसीसे लगा सकते हैं कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे अपनी पार्टी के उम्मीदवारों की पहली सूची में न तो अपने बेटे डॉ. श्रीकांत शिंदे का नाम घोषित कर पाए और न ही अपने गृह नगर ठाणे की सीट से अपना उम्मीदवार घोषित कर पाए हैं। जाहिर है कि शिवसेना में विभाजन से पहले ही ये दोनों सीटें परंपरागत रूप से शिवसेना की ही हैं। लेकिन शिवसेना टूटते ही बीजेपी ने इन दोनों में से एक सीट की डिमांड शुरू कर दी है। अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को समझ नहीं आ रहा कि वह किसे रखें और किसे छोड़ें। साथ ही कोई भी सीट छोड़ने पर पार्टी के अंदर नाराजगी और कलह भी सीएम एकनाथ शिंदे की मुश्किलें बढ़ा सकती है।

ऐसी कई सीटें हैं जिन पर महायुति में महाभारत मचा हुआ है। और सहयोगी दलों में सहमति नहीं बन पा रही है। इसीमें शामिल है कल्याण-डोंबिवली। दरअसल, कल्याण-डोंबिवली में श्रीकांत शिंदे को इस बार बीजेपी से भितरघात का खतरा है। बीजेपी के नेता भले ही ऊपर-ऊपर श्रीकांत शिंदे के साथ होने का दावा कर रहे हैं, लेकिन भाजपा विधायक गणपत गायकवाड के पुलिस स्टेशन में फायरिंग प्रकरण के बाद बीजेपी कार्यकर्ताओं का बड़ा वर्ग अंदर ही अंदर श्रीकांत शिंदे के खिलाफ काम कर रहा है। यही डर खुद सीएम एकनाथ शिंदे और पूरी पार्टी को सता रहा है। इधर मनसे का रुख भी श्रीकांत शिंदे को लेकर अब तक बहुत सकारात्मक नहीं है। अगर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने ठाणे और कल्याण-डोंबिवली में से कोई एक सीट बीजेपी की लिए नहीं छोड़ी तो ठाणे और कल्याण-डोंबिवली के बीजेपी कार्यकर्ताओं का चुनाव के दौरान घर बैठ जाने का अंदेशा है।

जिससे फिर चुनाव से पहले पूरे महायुति के लिए ही माहौल खराब हो जाएगा। तो वहीं भाजपा का शिंदे पर रुख भी काफी सख्त हो जाएगा। जो फिलहाल तो एकनाथ शिंदे नहीं ही चाहते हैं। इसके अलावा अगर ठाणे की बात करें तो वह शिवसेना का मुंबई से भी पुराना गढ़ है। एकनाथ शिंदे की बगावत के बावजूद ठाणे के सांसद राजन विचारे शिंदे की बगावत में शामिल नहीं हुए और अब तक उद्धव ठाकरे के साथ बने हुए हैं। उद्धव ठाकरे ने उन्हें इस बार भी अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। वे तीसरी बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। ठाणे में उनका प्रचार जोर-शोर से चल रहा है। वहीं, शिंदे अब तक अपना उम्मीदवार भी घोषित नहीं कर पाए हैं। क्योंकि बीजेपी दावा छोड़ने को तैयार नहीं है। ठाणे में बीजेपी के तीन विधायक हैं। एक निर्दलीय विधायक का बीजेपी को समर्थन है। उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर ठाणे के नेताओं का काफी दबाव है। यही वजह है कि ठाणे में भी भाजपा व शिंदे के बीच जद्दोजेहद जारी है। जिसके चलते भाजपा काफी परेशान है और उसके लिए गठबंधन में संतुलन करना भी मुश्किल होता जा रहा है।

इसके अलावा नासिक सीट पर भी हाल कुछ ऐसा ही है। यहां भी गठबंधन दुविधा में नजर आ रहा है। नासिक सीट पर शिंदे गुट के मौजूदा सांसद हेमंत गोडसे दो बार मुंबई आकर शिंदे के समक्ष शक्ति प्रदर्शन कर चुके हैं। लेकिन गठबंधन में मची हलचल व बीजेपी के दबाव के चलते ही शिंदे पहली लिस्ट में उनका नाम घोषित नहीं कर पाए। लिस्ट जारी करने के दो दिन बाद भी उनकी उम्मीदवारी सुनिश्चित नहीं कर पा रहे हैं। पहले तो बीजेपी इस सीट पर दावा कर रही थी।. अब एनसीपी अजित पवार गुट भी दावा कर रहा है। यानी पूरा महायुति गठबंधन नासिक सीट पर आपस में ही भिड़ा पड़ा है। कहा जा रहा है कि एनसीपी ने अपने कोटे की सतारा लोकसभा सीट छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज उदयनराजे भोसले के लिए बीजेपी को दे दी है। हालांकि, एनसीपी चाहती थी कि उदयनराजे उसके चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़ें,, परंतु उदयनराजे बीजेपी के टिकट पर ही चुनाव लड़ना चाहते हैं। लिहाजा सतारा सीट के बदले में एनसीपी नासिक की सीट मांग रही है। अजित पवार की एनसीपी नासिक से छगन भुजबल को लोकसभा लड़ाना चाहती है। महायुति के त्रिकोण में फंसी नासिक की यह महत्वपूर्ण सीट विनिंग फॉर्म्युले के नाम पर शिंदे के हाथ से फिसलती दिखाई दे रही है।

इसी तरह अमरावती सीट महायुति का अखाड़ा बन गई है। अमरावती में बीजेपी ने निर्दलीय सांसद नवनीत राणा को टिकट दिया है। इससे पहले नवनीत राणा का बाकायदा बीजेपी में प्रवेश कराया गया। लेकिन नवनीत की उम्मीदवारी घोषित होते ही अमरावती में राजनीतिक विरोध का बवंडर उठ पड़ा है। मुख्यमंत्री के साथ गुजरात और गुवाहाटी तक जाने वाले प्रहार जनशक्ति पार्टी के नेता और निर्दलीय विधायक बच्चू कडु खुलकर नवनीत राणा के खिलाफ सामने आ गए हैं। उन्होंने ऐलान कर दिया कि नवनीत राणा को हराने के लिए वे सबकुछ करेंगे। उन्होंने अपनी पार्टी से नवनीत के खिलाफ उम्मीदवार उतारने का ऐलान भी किया है। उन्होंने कहा है कि इसके लिए अगर उन्हें महायुति का साथ छोड़ना पड़े तो भी वे तैयार हैं। और अगर वाकई में ऐसा होता है तो इसका बड़ा नुकसान भाजपा व पूरे महायुति को उठाना पड़ सकता है। इसीलिए बीजेपी इसको लेकर काफी परेशान है। इधर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना छोड़ने वाले अमरावती के पूर्व शिवसेना सांसद आनंदराव अडसूल और उनके पुत्र अभिजीत अडसूल भी नवनीत राणा के खिलाफ हैं। अभिजीत भी राणा के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात कर रहे हैं।

इधर केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले भी काफी बेचैन नजर आ रहे  हैं और लगातार मुलाकातें कर रहे हैं। इस बीच एक बार फिर अठावले ने उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की और सीट बंटवारे में उनकी पार्टी आरपीआई को नजरअंदाज किए जाने पर नाराजगी जताई। आठवले ने फडणवीस से शिरडी लोकसभा सीट देने की मांग की है। जबकि इस सीट पर शिंदे पहले ही मौजूदा सांसद सदाशिव लोखंडे को उम्मीदवार घोषित कर चुके हैं।

कुल मिलाकर ये साफ है कि लोकसभा चुनावों के पहले चरण में भले 20 दिन का ही समय बाकी रह गया हो। लेकिन देश में दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले राज्य महाराष्ट्र में अभी तक सत्ताधारी गठबंधन महायुति में सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है। यहां अभी भी सीटों के बंटवारे को लेकर महायुति में महाभारत लगातार जारी है। यही वजह है कि भाजपा व पीएम मोदी की नीदें उड़ी हुई हैं। क्योंकि अगर अबकी बार 400 पार के लक्ष्य के करीब भी पहुंचना है। तो बीजेपी व उसके सहयोगी दलों को महाराष्ट्र में अपने प्रदर्शन पर ध्यान देना ही होगा और यहां से ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करनी होंगी। लेकिन वर्तमान हालातों को देखते हुए ऐसा हो पाना काफी मुश्किल लगता है। तभी बीजेपी के खेमे में हलचल है और दिल की धड़कन बढ़ी हुई है।

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