‘सदस्यों को मिले ज्यादा सवाल पूछने का हक’
विधानसभा सत्र का सत्रावसान किए बिना सीधे सत्र बुलाने की परिपाटी अलोकतांत्रिक
- गंभीर मुद्दों पर चर्चा करने को सदनों में निर्धारित संख्या भी नहीं पहुंचती
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
जयपुर। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने असेंबली सेशन का सत्रावसान किए बिना सीधे सत्र बुलाने की परिपाटी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए घातक बताया है। उन्होंने इस तरह की परंपरा पर कहा कि इससे विधायकों के सवाल सीमित हो जाते हैं। राज्यपाल की चिंता जायज है पर यहां पर एक बात और निकलती है कितने विधायक अपने-अपने विधानसभाओं सक्रिय रहते हैं। कई बार देखा गया है महत्वपूर्ण मुद्दों की चर्चा के समय भी बहुत से विधायक अनुपस्थित रहते हैं। राज्यो में किसी भी दल की सरकार हो विधायकों की संख्या को लेकर कभी-कभी सदन कोरम को भी तरस जाते हैं। ऐसा नहीं है ये हाल कांग्रेसी राज्यों में ही है ऐसा हाल भाजपा व अन्य दलों की सरकारों में देखने को मिलती है।
उत्तरी हो दक्षिणी राज्य सब जगह सत्रों को छोटा करने की परंपरा सी बन गई है। इस तरह की छोटे सत्र का सबसे बड़ा नुकसान होता आम आदमी को। हालांकि राजनैतिक विश्लेषकों कहना है कि जानबूझकर सरकारे सत्र को छोटा करती हैे ताकि उन्हें विपक्ष के हमलों से दो-चार न हो पड़े। गौरतलब हो कि जब सत्र छोटे होते हैं बहुत विधायक अपने क्षेत्र के जनहित के मामलों को सदन में नहीे उठा पाते और वह मुद्दे समाप्त हो जाते है। इसका परिणाम यह होता है कि मुद्दे खत्म नहीं होते सरकारें बदलती चली जाती हैं। अभी हाल में गहलोत सरकार को निशाने पर लेते हुए राज्यपाल कलराज मिश्रा ने कहा है कि इससे विधायकों को तय संख्या में सवाल पूछने के अलावा कोई अवसर नहीं मिल पाता। इस बात को राज्यपाल कलराज मिश्र ने विधानसभा में दो दिवसीय स्पीकर्स सम्मेलन के समापन समारोह में उठाया। कुल मिलाकर राज्यपाल का कहना है कि विधायकों के सवालों को सीमित करने की परिपाटी ग़लत है। उन्होंने कहा- सदन की बैठकों की कम होती संख्या चिंता की बात है। इससे जनता की समस्याओं को उठाने का समय नहीं मिल पाता है। उनकी चिंता जायज है पर अब राज्यपाल महोदय को कौन बताए कि पूरी स्वतंत्रता होने के बावजूद कितने विधायक, आखिर कितने सवाल पूछते हैं? सवाल पूछने के प्रति वे कितने सजग और उत्सुक होते हैं? फिर सवाल भी कैसे – कैसे? कुछ साल पहले एक तुलनात्मक अध्ययन में यह बात सामने आई थी कि विधानसभा में कई विधायक अपने और अपने परिवार या मित्रों के व्यापार या व्यवसाय से जुड़े ज़्यादातर सवाल पूछते हैं। आखिर जिन लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की चिंता राज्यपाल महोदय जता रहे हैं, उनका तब क्या होगा जब चुनने वाली, वोट देने वाली जनता का अपने प्रतिनिधियों पर विश्वास ही नहीं रह जाएगा? क्योंकि जनता का अपने प्रतिनिधियों में विश्वास बना रहे, ऐसा न तो वे कुछ करते और न ही ऐसा कुछ करते हुए वे दिखाई देते! होना यह चाहिए कि विधायक, सांसद ही नहीं, महापौर, पार्षद, जनपद अध्यक्ष, यहाँ तक कि पंच और सरपंचों को भी जनता का विश्वास जीतने और बनाए रखने के लिए जी तोड़ मेहनत करनी चाहिए। लोकतंत्र को सम्मान देने का इससे अच्छा कोई तरीक़ा नहीं है। राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा- विधानसभा सत्र का सत्रावसान नहीं होने का विधायकों को नुकसान होता है। सवाल पूछने का मौका नहीं मिलने से संवैधानिक प्रक्रियाएं पूरी नहीं होती हैं।
विधायकों का होता है नुकसान
विधानसभा सत्र का सत्रावसान नहीं होने का विधायकों को नुकसान होता है। सवाल पूछने का मौका नहीं मिलने से संवैधानिक प्रक्रियाएं पूरी नहीं होती हैं। जनता का विश्वास बना रहेगा तो लोकतंत्र अक्षुण्ण रहेगा और राजनीति में भी धीरे- धीरे शुद्धता आती जाएगी। यह समय देश की हर अच्छी ताक़त को जुडक़र, मिलकर, राजनीति की शुद्धता के लिए संघर्ष करने का है। सही मायने में सफलता का अर्थ यही होता है कि देश और दुनिया में हर जगह, हर मोर्चे पर अच्छी ताक़तों की बहुतायत हो और वे तमाम अच्छी ताक़तें मिलजुल कर किसी काम में लग जाएँ या लगी रहें। जहां तक विधायकों के ज़्यादा से ज़्यादा सवाल पूछने का मामला है, उसमें सुधार तभी आ सकता है जब वे खुद सच्ची भावना से जनता की समस्याओं को हल करने की इच्छाशक्ति रखते हों!