मिशन यूपी: कांग्रेस को नहीं मिल रहे सियासी साथी, बड़े दलों ने किया किनारा

खुले ऑफर के बाद भी अभी तक नहीं हो सका किसी दल से गठबंधन

सियासी जमीन मजबूत करने में जुटी पार्टी, अब छोटे दलों पर नजर

 4पीएम न्यूज़ नेटवर्क


लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने सियासी समीकरण और राजनीतिक गठजोड़ बनाने में जुटी हैं। कांग्रेस भी प्रियंका गांधी के नेतृत्व में प्रदेश का सियासी वनवास खत्म करने के लिए कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहती है। प्रदेश में चुनावी रण में मजबूत किलेबंदी करने के लिए कांग्रेस ने गठबंधन के लिए छोटे दलों को खुला ऑफर दे रखा है लेकिन अभी तक कोई भी पार्टी तैयार नहीं है। वहीं बड़े दल कांग्रेस से किनारा कर रहे हैं। इससे शीर्ष नेतृत्व की चिंताएं बढ़ गयी है।

यूपी में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए कांग्रेस जीतोड़ मेहनत करती नजर आ रही है। सूबे में कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी संभाले हुए हैं और लोकलुभावनी घोषणाएं कर रही हैं। वे कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं में जोश भरने के काम में जोर-शोर से लगी हुई हैं। ऐसे में कांग्रेस कशमकश में फंसी है कि कैसे पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी की छवि और लोकप्रियता को बचाए रखा जाए। 2022 के चुनाव में कांग्रेस बेहतर नहीं कर पाई तो उसका सीधा असर प्रियंका पर पड़ेगा। इसी के मद्देनजर कांग्रेस ने सूबे में गठबंधन के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे। बता दें कि कांग्रेस के यूपी चुनाव ऑब्जर्वर और छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने पिछले दिनों कहा था कि यूपी में अभी हमारा किसी से गठबंधन नहीं लेकिन छोटे दलों को साथ लेकर चलेंगे। गठबंधन के लिए कांग्रेस दरवाजे सभी के लिए खुले हुए हैं।

गठबंधन की चर्चाएं तेज

प्रियंका गांधी ने भी लखनऊ दौरे पर गठबंधन के विकल्प खुले रहने की बात कही थी। बसपा से लेकर आरएलडी तक से कांग्रेस के गठबंधन की चर्चाएं तेज हो गई थीं। हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस से गठबंधन के सवाल पर कहा कि हम यूपी विधान सभा चुनाव 2022 के लिए किसी भी दल के साथ चुनावी समझौता नहीं करेंगे और अकेले ही चुनाव लड़ेंगे। बसपा जनता से गठबंधन करेगी और प्रदेश में सरकार बनाएगी।

वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव भी साफ कह चुके हैं कि 2022 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं करेंगे बल्कि छोटे दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। सपा और बसपा के पूरी तरह किनारा कर लेने के बाद कांग्रेस की कोशिश पश्चिम यूपी में आरएलडी के साथ तालमेल करने की थी। इस बात को तब बल मिला जब पिछले दिनों आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी से प्रियंका गांधी की लखनऊ एयरपोर्ट पर मुलाकात हुई। ऐसे में यह चर्चा तेज हो गई थी कि कांग्रेस ने जयंत चौधरी को यूपी में गठबंधन करने के लिए राज्यसभा भेजने का आश्वासन दिया है। अब आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने भी साफ कर दिया है कि यूपी में कांग्रेस के साथ उनका कोई तालमेल नहीं होगा बल्कि सपा के साथ गठबंधन की बातचीत चल रही है।

कांग्रेस के सामने अब क्या है विकल्प

अब कांग्रेस के सामने यही विकल्प बचा है कि उत्तर प्रदेश की सभी 403 सीटों पर अकेले चुनावी मैदान में उतरकर किस्मत आजमाए क्योंकि तमाम छोटे दल या तो बीजेपी के साथ हैं या फिर सपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रखी है। ऐसे में सिर्फ रघुराज प्रताप सिंह की जनसत्ता पार्टी और भीम आर्मी के चंद्रशेखर बचे हैं। इसके अलावा असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम है। इनमें ओवैसी के साथ गठबंधन मुश्किल है जबकि चंद्रशेखर अपनी अलग सियासी राह तलाश रहे हैं।

कांग्रेस के लिए गठबंधन क्यों अहम

गठबंधन की राजनीति के इस दौर में कांग्रेस उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बिल्कुल अकेले पड़ गई है। कांग्रेस के लिए गठबंधन कितना जरूरी है, इसे बंगाल विधान सभा चुनाव और हाल ही में हुए बिहार में दो सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम से समझ सकते हैं। बंगाल में कांग्रेस का खाता नहीं खुला। वहीं कांग्रेस 2020 के चुनाव में बिहार के कुशेश्वरस्थान सीट पर गठबंधन में लड़ी थी। उसके उम्मीदवार को दूसरा स्थान मिला था लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस गठबंधन से अलग होकर लड़ी तो जमानत भी नहीं बचा पाई इसीलिए कांग्रेस यूपी में गठबंधन के लिए बेताब नजर आ रही है।

सियासी प्रयोग फेल रहे

कांग्रेस यूपी में पिछले तीन दशक से सत्ता से बाहर है, जिसके चलते पार्टी के बड़े नेता पार्टी छोडक़र चले गए हैं और जनाधार भी खिसक गया है। 1989 के बाद से कांग्रेस यूपी में वापसी के लिए तमाम सियासी प्रयोग करती रही है लेकिन सफल नहीं रही। कांग्रेस ने 2017 का विधान सभा चुनाव सपा के साथ लड़ा था। राहुल गांधी-अखिलेश यादव के इस गठबंधन को जनता ने नकार दिया था। सपा 47 और कांग्रेस 7 सीटों पर सिमट गई थी। इससे पहले 1996 में कांग्रेस ने बसपा के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरी थी, जो सफल नहीं रहा। ऐसे ही कांग्रेस यूपी में आरएलडी के साथ भी मिलकर भी चुनावी किस्मत आजमा चुकी है।

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