परंपरा से हटकर पड़े मुस्लिमों के वोट

  • सपा और बसपा को कई जगह झटका
  • भाजपा व ओवैसी को मिले मत

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ । यूपी के नगर निकाय चुनाव में इसबार मुस्लिमों परंपरा से हटकर वोटिंग की है। पहले जहां सपा व बसपा इन वोटों को अपना समझती थी इस बार ये वोट छिटक कर आप, ओवैसी व भाजपा में गए। इसकी वजह से ओवैसी की पार्टी ने कई जगह खाता खोला है। सबसे बड़ी बात यह देखने को मिली भाजपा ने जहां मुस्लिमों क ो टिकट दिए वो भी भारी मात्रा में जीते हैं। कई अहम सीटों पर मुस्लिम वोटरों ने यह साफ दिखाने की कोशिश की कि वह किसी एक के पिछलग्गू नहीं हैं।
वह अपने हिसाब से वोट करेंगे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण यह रहा कि महापौर पद पर न तो सपा जीती और न ही बसपा जबकि दोनों ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर खूब दांव लगाया था। वहीं, कई नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर भाजपा के मुस्लिम उम्मीदवार जीत गए। इस चुनाव में मुस्लिमों ने दिखाया कि वह अपने हिसाब से अपने पसंदीदा उम्मीदवार को वोट करेंगे। मेरठ नगर निगम इसका बड़ा उदाहरण है, जहां महापौर पद पर ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के उम्मीदवार ने बसपा, सपा को पछाड़ते हुए दूसरा स्थान प्राप्त किया। यहां अनस जब मैदान में कूदे तो किसी को यह इल्म नहीं था कि वह इतनी मजबूत लड़ाई लड़ सकेंगे। यहां तक सपा विधायक अतुल प्रधान की पत्नी सीमा प्रधान को भी उन्होंने पीछे छोड़ा। ऐसा कई सीटों पर रहा मुस्लिमों ने कहीं बसपा, कहीं सपा, कहीं कांग्रेस, कहीं एआईएमआईएम को वोट किया।

एआईएमआईएम के भी खूब प्रत्याशी जीते

एआईएमआईएम ने 19 से ज्यादा पार्षद पदों पर जीत हासिल की। इसी तरह से तीन नगर पालिका अध्यक्ष, 33 नगर पालिका सदस्य, 2 नगर पंचायत अध्यक्ष और 22 नगर पंचायत सदस्य पद पर चुनाव जीता। वर्ष 2017 में एआईएमआईएम ने पार्षद के 12 पद जीते थे। नगर पालिका सदस्यों की संख्या सात थी। नगर पंचायत अध्यक्ष मात्र एक था तो नगर पंचायत सदस्य 6 ही थे।

अपने-अपने दावे

हालांकि कई राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि मुस्लिम फिर से बंट गए। कुछ अन्य का कहना है कि यदि मुस्लिम भटकते तो फिर कई सीटों पर भाजपा को क्यों जिताते। मसलन, आगरा में बसपा की लता को डेढ़ लाख से ज्यादा वोट मिले। इसमें मुस्लिमों की संख्या काफी रही। यहां सपा भी 47 हजार से ज्यादा वोट पा गई। झांसी में कांग्रेस के महापौर उम्मीदवार को 39 हजार से ज्यादा वोट मिले। माना जा रहा है कि मुस्लिम मतों के सहारे ही वह नंबर दो पर पहुंच पाए। बसपा और सपा उम्मीदवार को 21-21 हजार से ज्यादा मत मिले। यहां मुस्लिमों ने अलग ही गणित तय किया।मुरादाबाद में भी यही रहा। कांग्रेस प्रत्याशी रिजवान को एक लाख 17 हजार वोट मिले तो सपा प्रत्याशी को मात्र 13,447 वोट मिले। बसपा के यामीन को भी 15,858 वोट मिले। यहां भी मुस्लिमों ने अपना रुख साफ किया। मथुरा में बसपा और कांग्रेस को लगभग 35-35 हजार वोट मिले। चौथे नंबर पर रहे सपा को लगभग 12 हजार वोट मिले।

सात स्थानों पर दूसरे नंबर पर रहे मुस्लिम उम्मीदवार

17 नगर निगमों में से अलीगढ़, गाजियाबाद, फिरोजाबाद, मथुरा, मेरठ, शाहजहांपुर, सहारनपुर में मुस्लिम प्रत्याशी दूसरे नंबर पर रहे। इस चुनाव में मुस्लिम वोटरों ने स्पष्ट कर दिखाया कि वे सिर्फ सपा और बसपा के ही साथ नहीं हैं। अन्य विकल्पों को भी देख रहे हैं। मेरठ में एआईएमआईएम के उम्मीदवार अनस को 1,15,964 वोट मिले और वह सपा की उम्मीदवार सीमा प्रधान और बसपा के हशमत मलिक दोनों से आगे रहे। इस निकाय चुनाव में सभी की निगाह मुस्लिमों पर थीं। बसपा ने 17 में से 11 महापौर प्रत्याशी मुस्लिम बनाए थे। सपा ने 4 सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया। हैरत की बात यह रही कि भाजपा ने भी इस बार कई मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। भले ही महापौर पद पर भाजपा ने मुस्लिम दांव न खेला हो पर अन्य पदों पर 395 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। इनमें भाजपा के पांच से ज्यादा नगर पंचायत अध्यक्ष पद जीत गए। उसके पार्षद और नगर पालिका सदस्य, पंचायत सदस्य भी जीते।

 

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