अब अनाथ बच्चों को मिलेगा शिक्षा का हक

- नन्हें सपनों को मिला न्याय का आसरा
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला की जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फ़ैसला भारत के सबसे बड़े न्याय मंदिर का सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है जिसे सिर्फ क़ानूनी निर्णय नहीं बल्कि ममता और मानवता का मरहम भी कहा जाना चाहिए।
लखनऊ की सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और के.वी. विश्वनाथन की खंडपीठ ने देश के सभी राज्यों को आदेश दिया है कि अनाथ बच्चों को शिक्षा का अधिकार अधिनियम आरटीई में शामिल किया जाए। यह निर्णय एक ऐतिहासिक करुणा का दस्तावेज़ बन गया है।
राज्य बनेगा अभिभावक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी बच्चे के माता पिता नहीं होते तो राज्य ही उसका पालक पिता होता है। ऐसे में राज्य की जिम्मेदारी है कि वह बच्चों की देखभाल और शिक्षा सुनिश्चित करे। कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 51 का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि सभी अनाथ बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना राज्य का नैतिक और संवैधानिक दायित्व है।
स्कूल अब दूर नहीं रहेंगे
कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य सरकारें 4 सप्ताह के भीतर आदेश जारी करें जिससे अनाथ बच्चों को आसपास के स्कूलों में दाखिला मिल सके। इसके साथ ही यह भी कहा गया कि हर राज्य सर्वेक्षण करे कि कितने अनाथ बच्चे स्कूल से बाहर हैं ताकि उन्हें स्कूलों में शामिल किया जा सके।
एक आवाज़ से बदलेगा करोड़ों का भविष्य
इस याचिका की याचिकाकर्ता पौलोमी पाविनी शुक्ला ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को दयालु दूरदर्शी और ऐतिहासिक बताया है। उन्होंने वर्षों से अनाथ बच्चों के हालात पर गहराई से काम किया है। उनकी इस विषय पर लिखी एक किताब को फोर्बस् की सूंची में शामिल किया गया है।
दो करोड़ मासूम इंतजार में
यूनिसेफ के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 2 करोड़ से अधिक अनाथ बच्चे हैं लेकिन इनमें से अधिकतर को अभी तक सरकार ने आधिकारिक रूप से गिना भी नहीं है। कोर्ट में सुश्री शुक्ला ने आग्रह किया कि अगली जनगणना में अनाथ बच्चों को गिना जाए। इस पर भारत सरकार की ओर से महान्यायवादी ने सकारात्मक जवाब देते हुए कहा कि इस दिशा में आवश्यक निर्देश लिए जाएंगे।



