चीन को पीछे छोड़ सकता है भारत

संयुक्त राष्टï्र वार्षिक विश्व जनसंख्या रिपोर्ट की माने तो दुनिया की जनसंख्या आठ अरब पार हो गई है। यह आंकड़ा 2030 तक 8.5 अरब, 2050 तक 9.7 अरब और 2100 तक 10.4 अरब हो सकता है। हालांकि 1950 के बाद से आबादी धीमी दर से बढ़ रही है। यह आबादी 2037 तक नौ अरब तक पहुंच जाएगी। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि अगले दो से तीन दशकों में आधी आबादी आठ देशों में रह रही होगी। रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक भारत, पाकिस्तान, कॉन्गो, मिस्र, इथियोपिया, नाइजीरिया, फिलीपींस और तंजानिया में दुनिया की 50 प्रतिशत आबादी रह रही होगी। वृद्धि के लिहाज से चीन को इस साल पीछे छोड़ कर भारत दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा। जनसंख्या बढ़ोतरी का मुख्य कारण दुनिया में हो रही कम मौतें और बढ़ता जीवनकाल है। इसका एक अर्थ यह भी है कि दुनिया में बुजुर्गों की आबादी भी बढ़ रही है, जो एक अलग चुनौती है।
विशेषज्ञों का कहना है कि जनसंख्या इसी रफ्तार से बढ़ती रही, तो मानव के अस्तित्व पर ही खतरा उत्पन्न हो सकता है। आजादी के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई थी और तब देश की आबादी थी 36 करोड़ साल 1961 की जनगणना में आबादी लगभग 44 करोड़ और 1971 में 55 करोड़ हो गयी। साल 1981 की जनगणना में यह आंकड़ा 68 करोड़ हो गया। साल 1991 में हमारे देश की आबादी बढ़ कर 85 करोड़ थी, तो 2001 में यह 100 करोड़ पार कर गयी। दस साल बाद 2011 में जनसंख्या 121 करोड़ हो गयी। माना जा रहा है कि देश की आबादी लगभग 135 करोड़ के आसपास होगी। बढ़ती आबादी का असर बहुआयामी है। जनसंख्या का देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर पड़ता है। इसके कारण खाद्यान्न का संकट उत्पन्न होता है और बेरोजगारी बढ़ती जाती है। इतनी बड़ी जनसंख्या के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करना नामुमकिन है। इस कारण अनेक सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। जमीन पर बोझ बढ़ा है, जिसने पारिवारिक संघर्ष को जन्म दिया है। चार राज्यों- उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और केरल में आबादी का घनत्व सबसे ज्यादा है। एक और अहम तथ्य है कि दो हिंदी भाषी राज्यों- बिहार और उत्तर प्रदेश- में 30.4 करोड़ से ज्यादा लोग बसते हैं यानी देश की एक-चौथाई आबादी केवल दो राज्यों में है। यह तथ्य चौंकाता तो नहीं है, लेकिन हालात की गंभीरता की ओर जरूर इशारा करता है। यूपी और बिहार जैसे बड़ी आबादी वाले राज्यों में हम अभी बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाये हैं। हम अब भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की समस्या से जूझ रहे हैं।

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