दलित, ओबीसी या ब्राह्मण चेहरा, किस पर दांव खेलेगी भाजपा
- स्वतंत्र देव के इस्तीफे की चर्चा के बाद अध्यक्ष पद की रेस तेज
- शीर्ष नेतृत्व मिशन 24 को लेकर मंथन में जुटा, पीएम मोदी खुद बनाए हुए हैं नजर
- जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने पर फोकस
दिव्यभान श्रीवास्तव
लखनऊ। उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर तीन साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद स्वतंत्र देव सिंह ने संगठन की कमान छोड़ दी है। फिलहाल ऐसी खबरें हैं। सियासी रूप से देश के सबसे अहम प्रदेश में बीजेपी के नए सेनापति को लेकर चर्चा फिर तेज हो गई है। फिलहाल स्वतंत्र देव सिंह का जो भी उत्तराधिकारी होगा, उसी के अगुवाई में 2024 के लोकसभा चुनाव होंगे। ऐसे में सवाल है कि बीजेपी यूपी में अपना नया अध्यक्ष ब्राह्मण, दलित या फिर ओबीसी समुदाय में से किसे बनाएगी। रेस में कई बड़े नाम है। शीर्ष नेतृत्व मिशन 24 को लेकर मंथन में जुटा है। और तो और यूपी अध्यक्ष के लिए पीएम मोदी खुद नजर गड़ाए हुए हैं। भाजपा जातीय और क्षेत्रीय समीकरण साधने पर पूरा फोकस कर रही है ताकि 24 के चुनाव में जीत दर्ज कर बीजेपी की हैट्रिक लगाई जा सके। फिलहाल दिल्ली में नए प्रदेश अध्यक्ष का चेहरा तय हो चुका है। सूत्रों के मुताबिक 2 से 3 दिन में ऐलान भी कर दिया जाएगा। लखनऊ से दिल्ली तक कुछ नामों पर चर्चा चल रही है। इसमें सबसे टॉप पर केशव प्रसाद मौर्य हैं, वो ओबीसी चेहरा हैं।
ब्राह्मण वर्ग से आने वाले दिनेश शर्मा और बीएल वर्मा के नामों पर भी मंथन चल रहा है। प्रदेश अध्यक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए होगा। यूपी की सियासत में बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बनाने के 20 साल के सियासी पैटर्न को देखें तो किसी ब्राह्मïण समुदाय के हाथों में कमान दिए जाने की सबसे ज्यादा संभावना दिख रही है, जिसके चलते ब्राह्मïण समुदाय से जिन नामों पर चर्चा तेज है, उसमें पूर्व उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा, पूर्व ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा, कन्नौज के सांसद एवं प्रदेश महामंत्री सुब्रत पाठक, अलीगढ़ के सांसद सतीश गौतम, नोएडा के सांसद डॉ. महेश शर्मा और प्रदेश उपाध्यक्ष विजय बहादुर पाठक प्रमुख दावेदार माने जा रहे हैं। ब्राह्मïण समुदाय के नाम की चर्चा के पीछे एक बड़ी वजह यह है कि बीजेपी पिछले दो दशक से लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी की कमान यूपी में ब्राह्मïण समुदाय के हाथ में देती रही है तो विधानसभा चुनाव के दौरान ओबीसी समुदाय के अध्यक्ष बनाकर उतरती है। 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान केशरीनाथ त्रिपाठी, 2009 चुनाव में रमापति राम त्रिपाठी, 2014 में लक्ष्मीकांत वाजपेयी और 2019 में महेंद्र नाथ पांडेय प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं।
तो केशव बेहतर विकल्प के तौर पर खड़े
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा यूपी में पार्टी की कमान किसी ओबीसी चेहरे को देना चाहती है। पार्टी के मुखिया और एक डिप्टी सीएम सवर्ण हैं। पिछले चुनावी नतीजों को देखें तो पार्टी को सवर्णों के बाद सबसे ज्यादा वोट ओबीसी समाज से ही मिलता है। ऐसे में पार्टी की कमान ओबीसी को देकर सरकार और संगठन में बेहतर तालमेल बनाने की चर्चा है। खबर में आगे बढ़ने से पहले आपको लोकसभा चुनाव 2019 में जातिगत वोट परसेंटेज बताते हैं। यादव-कोइरी-कुर्मी को छोड़कर ओबीसी के 72 फीसदी ने भाजपा को वोट दिया था। 18 फीसदी सपा-बसपा, 5 फीसदी ने कांग्रेस और बचे हुए 5 फीसदी ने अन्य दलों को वोट दिया था। अगर पार्टी इस फार्मूले पर आगे बढ़ती है तो केशव बेहतर विकल्प के तौर पर खड़े है। साथ ही इस समाज से आने वाले केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा और योगी सरकार के पंचायतीराज मंत्री भूपेंद्र सिंह चौधरी का नाम भी चर्चाओं में है।
दलित चेहरे भी प्रदेश अध्यक्ष की रेस में
बीजेपी लगातार दलित वोटों पर फोकस कर रही है। ऐसे में दलित चेहरे के तौर पर केंद्रीय मंत्री भानु प्रताप सिंह वर्मा, कौशांबी सांसद विनोद कुमार सोनकर, एमएलसी लक्ष्मण आचार्य और इटावा के सांसद राम शंकर कठेरिया को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद के दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है। इस तरह बीजेपी किसी दलित को प्रदेश की कमान सौंप कर बड़ा सियासी संदेश दे सकती है। बता दें कि गैर-यादव ओबीसी में लगभग 58 प्रतिशत ने 2017 में भाजपा को वोट दिया था, यह हिस्सेदारी 2022 में लगभग 65 प्रतिशत हो जाने जाने का अनुमान है। ऐसे ही दलित समुदाय का बड़ा तबका बीजेपी के साथ जुड़ा है। बीजेपी ने पहले गैर-जाटव दलितों को साधने में सफल रही है तो अब जाटव वोटों में सेंधमारी के लिए लगातार कवायद कर रही है।
प्रयोग करती रही है बीजेपी
संगठन सूत्रों का कहना है कि बीजेपी अपने फैसले से सरप्राइज करती रही है। 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान केशरीनाथ त्रिपाठी उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष थे जबकि 2009 लोकसभा चुनाव के दौरान रमापति राम त्रिपाठी के हाथ में उत्तर प्रदेश बीजेपी की कमान थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में ब्राह्मïण नेता लक्ष्मीकांत वाजपेयी प्रदेश अध्यक्ष थे, जिनके अगुवाई में बीजेपी ने 71 सीटों के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी। 2019 के लोकसभा चुनाव के समय बीजेपी ने महेंद्र नाथ पांडेय को उत्तर प्रदेश में संगठन की कमान सौंपी हुई थी, जिनकी अगुवाई में बीजेपी 63 सीटें जीतने में सफल रही।
2024 पर है पूरा फोकस
यूपी में ब्राह्मण और ठाकुर बीजेपी के कोर वोटबैंक माने जाते हैं। दरअसल, बीजेपी का अब पूरा फोकस 2024 के लोकसभा चुनाव पर है। इसके मद्देनजर सरकार गठन में बीजेपी ने जातीय और क्षेत्रीय समीकरण को साधने की कवायद की है तो अब संगठन की कमान एक मजबूत हाथों में सौंपकर अपनी जीत के सिलसिले को बरकरार रखना चाहती है। वहीं लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी यूपी संगठन में बड़े बदलाव की भी तैयारी कर रही है।