बच्चे के प्रति लापरवाही बरतने के लिए माता-पिता जिम्मेदार, डॉक्टर दोषी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें बच्चों के माता-पिता उनकी बिगड़ी हालत का दोषी डॉक्टरों की लापवरवाही को देते हैं. कई बार यह मामले सही भी पाए जाते हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने साल 2002 के एक मामले पर सुनवाई करते हुए बच्चे की बिगड़ी हालत का दोषी डॉक्टर की नहीं बल्कि माता-पिता की लापरवाही को माना.
जनवरी 2002 के एक मामले में सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि जब माता-पिता अपने बच्चों की स्वास्थ्य स्थितियों के बारे में लंबे समय तक लापरवाही बरतते हैं तो डॉक्टरों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. साथ ही कोर्ट ने डॉक्टर को दी गई क्लीन चिट के फैसले में हस्तक्षेप करने से भी मना कर दिया.
साल 2002 में यूपी के कानपुर में एक बच्चे के माता-पिता बच्चे को लेकर एक बाल रोग विशेषज्ञ के पास गए थे. बच्चे को लगभग 45 दिन से बुखार आ रहा था. कई दिनों बाद पता लगा की बच्चे को मेनिनजाइटिस है और उससे बच्चे की आंखों की रोशनी खराब हो गई. उस वक्त बच्चे की उम्र दो साल थी, जो अब लगभग 23 साल का है. माता-पिता का आरोप है की डॉक्टर को मरीज के मेडिकल इतिहास के बारे में पता था, उन्होंने शिकायत की कि एंटीबायोटिक्स और मलेरिया-रोधी दवाओं के साथ बच्चे का इलाज करने में डॉक्टर ने बहुमूल्य समय बर्बाद किया. डॉक्टर बच्चे को पहले मलेरिया का इलाज करने के अलावा गंभीर बीमारी के लक्षण पहचानने में विफल रहे, और उनकी गलत डागनोस के चलते काफी कीमती वक्त बर्बाद हो गया.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में माता-पिता को लापरवाही का दोषी बताया. कोर्ट ने कहा कि इतने छोटे बच्चे को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए माता-पिता ने 45 दिनों तक इंतजार किया और अब वह दावा करते हैं कि डॉक्टर ने लापरवाही की? माता-पिता एक सप्ताह के बाद बच्चे को क्यों नहीं ले गए? अगर यहां कोई लापरवाही कर रहा है, तो वह माता-पिता हैं. जब माता-पिता लंबे समय तक अपने बच्चों की स्वास्थ्य स्थितियों के प्रति लापरवाह बने रहते हैं तो डॉक्टरों को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. कोर्ट ने माना कि ऐसे मामले में केवल डॉक्टर को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. जब बच्चा डॉक्टर के पास पहुंचा तब तक संक्रमण हो चुका होगा.
वकील ने पीठ से कानपुर जिला उपभोक्ता फोरम के 2013 के आदेश को बहाल करने का अनुरोध किया, जिसमें डॉक्टर को हर्जाने के रूप में 2 लाख रुपये का भुगतान करने को कहा गया था, लेकिन पीठ ने कहा कि उपभोक्ता फोरम के आदेश को बहाल करने का मतलब डॉक्टर के खिलाफ लापरवाही के आरोप को बहाल करना होगा. कोई भी डॉक्टर ऐसा कलंक नहीं चाहता. अदालत ने मार्च में राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. आयोग ने अपने आदेश में कहा था कि मेडिकल नेग्लिजेंस के लिए डॉक्टर को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि रिपोर्टों से पता चलता है कि मरीज की जांच की गई, सही निदान किया गया और सही समय पर एक विशेषज्ञ को भेजा गया. इतने छोटे बच्चे में बुखार के लिए, डॉक्टर आमतौर पर शुरुआत में एंटीबायोटिक्स ही लिखते हैं. कोई भी डॉक्टर सीधे तौर पर इसे मेनिनजाइटिस नहीं समझ सकता जब तक कि मरीज मेनिनजाइटिस के लक्षण नहीं दिखाता है. इसलिए, यह चिकित्सीय लापरवाही नहीं है. कोर्ट ने डॉक्टर तो क्लीन चिट दे दी है.

 

Related Articles

Back to top button