मुंडारी जनजाति के लोग गोबर से करते हैं ब्रश, गोमूत्र से धोते हैं सिर
गायों पर जान छिडक़ते हैं ये लोग सो जाएं तो बंदूक लेकर देते हैं पहरा!
दुनिया कोई छोटी नहीं है, ऐसे में यहां रहने वाले भी तरह-तरह के लोग होते हैं। किसी कोने में कुछ चल रहा होता है तो किसी दूसरे कोने में कुछ और। एक जगह पर बैठे हुए लोग ये समझ भी नहीं पाते हैं कि दुनिया की ही किसी और जगह पर कुछ अलग कल्चर हो सकता है। आज हम आपको कुछ ऐसे ही लोगों के बारे में बताएंगे, जिनकी एक ऐसी खासियत है, जो भारत की संस्कृति से काफी मिलती-जुलती है।
इस ट्राइब की विशेषता ये है कि ये अपने मवेशियों को ही अपना सब कुछ मानते हैं। इनकी पूरी जिंदगी मवेशियों के ही इर्द-गिर्द घूमती रहती है। चूंकि इनकी आय का प्रमुख स्रोत यही हैं, ऐसे में ये उन्हें हर वो सुविधा देते हैं, जो इनके हाथ में है। आप इस बात का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वे मशीन गन लेकर अपने गाय-बैलों की सुरक्षा करते हैं।
अफ्रीका के दक्षिण सूडान में रहने वाले एक जनजातीय समूह मुंडारी के लिए गाय सिर्फ पशु नहीं बल्कि उनकी प्रतिष्ठा का सवाल है। क्या मजाल है कि कोई उनकी गाय के साथ कुछ बुरा कर दे। जब गायें सोती हैं, तो इस ट्राइब के लोग मशीन गन लेकर पहरा देते हैं। वे उनके गोमूत्र से ही अपना सिर धोते हैं और इसमें मौजूद यूरिक एसिड से उनके बाल रंग जाते हैं। गाय के गोबर से वो दांत साफ करते हैं और इसे पाउडर के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं। मुंडारी जनजाति के इन लोगों के लिए गाय उनके परिवार की तरह हैं और वे इनसे जरा भी दूर नहीं रहना चाहते। इन्हें इतना खिलाया-पिलाया जाता है और इनकी सेवा की जाती है कि गायों की ऊंचाई 8-8 फीट तक होती है। पशु ‘धन’ होते हैं इनके मवेशी
भारी-भरकम गाय-बैलों की कीमत औसत $500 यानि करीब 42 हजार रुपये में लगती है। यही वजह है कि इन्हें मारा नहीं जाता बल्कि दहेज या गिफ्ट के तौर पर दिया जाता है। मुंडारी लोग अपने मवेशियों की दिन में दो बार मालिश भी करते हैं और अपने पसंदीदा पशु के साथ सो भी जाते हैं। ये उनका स्टेटस सिंबल होते हैं। शादियों में ब्राइड प्राइस के तौर पर इन्हीं पशुओं को दिया जाता है। वे इसके गोबर और गोमूत्र को एंटीबायोटिक से लेकर मच्छरों से सुरक्षा के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।