छापेमारी: कानूनी या सियासी, बहस है जारी

सिसोदिया, राउत समेत 12 नेताओं पर कस चुका है शिकंजा

  • भाजपा ने कई बार किया सीबीआई, ईडी का दुरुपयोग
  • कांग्रेस भी नहीं रही पीछे

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। कें द्र की सत्ता में चाहे जिसकी सरकार रही हो, सीबीआई, ईडी, आईटी का दुरुपोग के आरोप सब पर लगते रहे हैं। हालांकि राजनैतिक दल छापों व कार्रवाईयों का जब हिसाब किताब करते हैं तो विपक्ष हमेशा सत्ता पक्ष को आगे दिखाता है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये छापे कभी-कभी तो राजनीति से भी प्रेरित होते हैं।
अभी हाल ही में कांग्रेस ने आंकड़े जारी करते हुए बताया था कि उनके राज कितने कम छापे मारे गए थे जबकि मोदी सरकार ने पिछले आठ साल में सैकड़ों छापे मारे और विपक्ष नेताओ को निशाना बनाया। विपक्ष का ये आरोप रहता है कि सत्ता पक्ष केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल अपने विरोधियों को फंसाने व उनसे बदला लेने के लिए करता है। तो उसके जवाब में सत्तापक्ष ये कहकर पल्ला झाड़ लेता है कि कानून अपना काम कर रहा है। इसमें कोई संशय नहीं है कि सत्ता पक्ष कभी-कभी विपक्ष को परेशान करने के लिए भी एजेंसियों का प्रयोग करता है। कुछ मामले कोर्ट में पहुंचकर खारिज हो जाते हैं। हालांकि सभी मामले ऐसे नहीं होते हैं। ताजा मामला आप नेता मनीष सिसोदिया का है जिनके याचिका को सुप्रीमकोर्ट ने खारिज कर दिया। केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई का सिलसिला पिछले 8 साल से जारी है।
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने बीते दिन 8 घंटे की लंबी पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया। सिसोदिया पर शराब नीति में घोटाला करने का आरोप लगा है। इसी कथित घोटाले को लेकर महीनों से ईडी और सीबीआई आप नेता से पूछताछ कर रही थी। इससे पहले आम आदमी पार्टी के दूसरे नेता और दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन को ईडी ने गिरफ्तार किया था। जैन पर मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में कार्रवाई हुई थी और वह कई महीनों से तिहाड़ में बंद है। सिसोदिया की गिरफ्तारी को आप ने केंद्र सरकार की साजिश करार दिया था। वहीं, इससे पहले कई विपक्षी पार्टियां भाजपा सरकार पर बदले की कार्रवाई का आरोप लगा चुकी हैं। दरअसल, सीबीआई और ईडी बीते कुछ सालों में कई विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर मनी लॉन्ड्रिंग और घोटालों को लेकर कार्रवाई कर चुकी है। बंगाल, बिहार, झारखंड, छतीसगढ़ और महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों तक पर छापे पड़े हैं और गिरफ्तारियां भी हुई हैं।

सीबीआई की कार्रवाई की प्रक्रिया

डीएसपीई अधिनियम और दंड प्रक्रिया संहिता में प्रदान किए गए प्रावधानों के अनुसार एक बार एक व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया गया है तो अगला कदम, स्वाभाविक रूप से, अभियुक्त की हिरासत यानी सीबीआई हिरासत है। यदि कोई आरोपी व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया गया है, जमानत पर रिहा नहीं होता है, तो उसे अगले 24 घंटों के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाना चाहिए। जिन मामलों में जांच अधिकारी के लिए आरोपी को उस दिन मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना संभव नहीं होता है, उस दिन गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को आरोपी को पुलिस हिरासत में रखना होता है। यह आमतौर पर गिरफ्तार करने वाले अधिकारियों को तैनात करने वाले पुलिस स्टेशन की लॉक अप सुविधाओं का उपयोग करके या निकटतम पुलिस स्टेशन की सुविधा का उपयोग करके किया जाता है। जब आरोपी को रिमांड पर लिया जाता है, तो शाखा के लिए यह अनिवार्य है कि कम से कम एक अधिकारी को लॉक अप की सुरक्षा के लिए तैनात किया जाए। एक व्यक्ति जिसे गिरफ्तार या हिरासत में लिया गया है और एक पुलिस स्टेशन या पूछताछ केंद्र या अन्य लॉक-अप में सीबीआई की हिरासत में रखा जा रहा है, वह अपने एक दोस्त या रिश्तेदार या अन्य व्यक्ति को जानने वाले व्यक्ति को जितनी जल्दी संभव हो सूचित करने का हकदार होगा। हिरासत के स्थान पर डायरी में व्यक्ति की गिरफ्तारी के संबंध में एक प्रविष्टि की जानी चाहिए, जिसमें उस व्यक्ति के अगले मित्र का नाम भी बताया जाएगा, जिसे गिरफ्तारी की सूचना दी गई है और जिन पुलिस अधिकारियों के नाम और विवरण हैं हिरासत में लिया गया व्यक्ति है। हिरासत में रखे जाने के दौरान हर 48 घंटे में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति का संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के निदेशक, स्वास्थ्य सेवा द्वारा नियुक्त अनुमोदित डॉक्टरों के पैनल के एक डॉक्टर द्वारा चिकित्सा परीक्षण किया जाना चाहिए। निदेशक, स्वास्थ्य सेवाएं सभी तहसीलों और जिलों के लिए भी ऐसा पैनल तैयार करें। इसके अलावा, अगर पुलिस या सीबीआई की हिरासत में कोई व्यक्ति हिरासत के समय किसी भी तरह की चोट या मानसिक बीमारी से पीडि़त है ऐसे व्यक्तियों को चिकित्सा जांच के अधीन होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट से भी लगा झटका

ईडी की इन कार्रवाई के खिलाफ विपक्षी पार्टियों ने खूब हल्ला भी किया। सुप्रीम कोर्ट तक ईडी की कार्रवाई को लेकर शिकायत की गई। दरअसल, प्रिवेन्शन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के प्रावधानों की संवैधानिकता को शीर्ष न्यायालय में चुनौती दी गई थी। इस पर अदालत ने कहा था कि ईडी किसी भी राज्य में कार्रवाई कर सकता है और उसे कोई रिपोर्ट देने की भी जरूरत नहीं होगी। कोर्ट ने कहा कि ईडी का केवल कारण बताना ही काफी होगा।

महाराष्ट्र : राउत, देशमुख समेत महाराष्ट्र में कई नेताओं पर शिकंजा

पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की एमवीए (महाविकास अघाड़ी सरकार) सरकार के दौरान कई मंत्रियों और शिवसेना नेताओं पर सीबीआई और ईडी ने अपनी शिकंजा कसा था। उद्धव ठाकरे के करीबी और शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के बड़े नेता संजय राउत को बीते साल ईडी ने गिरफ्तार किया था। राउत पर गोरेगांव में एक चॉल की जमीन की हेराफेरी का आरोप था। हालांकि, तीन महीने बाद उन्हें सशर्त जमानत मिल गई थी।
इससे पहले महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री और एनसीपी नेता अनिल देशमुख को नवंबर 2021 में मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया गया था। महाराष्ट्र के ही कैबिनेट मंत्री नवाब मलिक को भी ईडी ने ऐसे ही मामले में गिरफ्तार कर जेल भेजा था। वहीं, महाराष्ट्र के कई और नेताओं पर इस दौरान छापेमारी भी हुई थी।

दक्षिण भारत: चिदंबरम और डीके शिवकुमार जैसे कांग्रेस नेता गिरफ्तार

कांग्रेस के दिग्गज नेता पी चिदंबरम पर भी सीबीआई ने 2019 में शिकंजा कसा था। चिदंबरम पर आईएनएक्स मीडिया को विदेशी निवेश की मंजूरी देने में गड़बड़ी करने के लिए गिरफ्तार किया गया था। चिदंबरम को कई महीने तक जेल में रहना पड़ा था। वहीं, कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार को ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था।

गुजरात : भाजपा नेता को ईडी ने किया था गिरफ्तार

ईडी ने गुजरात के भाजपा नेता पीवीएस सरमा को नवंबर 2020 में अखबार के सर्कुलेशन के आंकड़ों में हेरफेर से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था। सरमा पर आरोप था कि उन्होंने विज्ञापन पाने के लिए आंकड़ों में हेरफेर की थी।

बिहार: राजद नेताओं पर भी हो चुकी कार्रवाई

ईडी और सीबीआई ने बिहार में राजद नेताओं पर भी छापेमारी कर गिरफ्तारियां की। राजद नेता और सांसद एडी सिंह को ईडी ने जून 2021 में कथित उर्वरक घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग के लिए गिरफ्तार किया था। वहीं, लालू के करीबी रहे भोला यादव को भी सीबीआई ने बीते साल रेलवे भर्ती घोटाले में गिरफ्तार किया था।

बंगाल : टीएमसी के मंत्री समेत कई पकड़े

पश्चिम बंगाल में ममता बेनर्जी की पार्टी टीएमसी के कई नेता ईडी और सीबीआई की रडार पर रहे। टीएमसी नेता और बंगाल के पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी को ईडी ने शिक्षा भर्ती घोटाले में गिरफ्तार किया। पार्थ की एक महिला मित्र के घर से 50 करोड़ से ज्यादा का कैश बरामद हुआ था। इसी मामले में टीएमसी यूथ विंग के नेता कुंतल घोष और शांतनु बनर्जी को भी गिरफ्तार किया गया था। वहीं, मवेशी तस्करी मामले में टीएमसी नेता अनुब्रत मंडल को गिरफ्त में लिया था। अनुब्रत के पास से करोड़ो रुपये का कैश मिला था जिसका वे जवाब नहीं दे पाए थे।

ईडी को मिली है ताकत

धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 यह एक आपराधिक कानून है जिसे धन शोधन को रोकने के लिए और धन शोधन से प्राप्त या इसमें शामिल संपत्ति की जब्ती के लिए अधिनियमित किया गया है। ईडी को को इस तरह के अपराध की आय से प्राप्त संपत्ति का पता लगाने हेतु जांच करने, संपत्ति को अस्थायी रूप से अटैच करने और अपराधियों के खिलाफ मुकदमा चलाने और विशेष अदालत द्वारा संपत्ति की जब्ती सुनिश्चित करवाते हुए प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने की जिम्मेदारी दी गई है। विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 कानून के तहत विदेशी व्यापार और भुगतान की सुविधा से संबंधित कानूनों को समेकित और संशोधित करने और भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के व्यवस्थित विकास और रखरखाव को बढ़ावा देने के लिए अधिनियमित किया गया है। इस तरह के मामलों में ईडी को जांच के साथ ही जुर्माना लगाने की जिम्मेदारी भी दी गई है। भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम, 2018 यह कानून आर्थिक अपराधियों को भारतीय न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र से बाहर भागकर भारतीय कानून की प्रक्रिया से बचने से रोकने के लिए बनाया गया था। इस कानून के तहत ऐसे आर्थिक अपराधी, जो भारत से बाहर भाग गए हैं, उनकी संपत्तियों को कुर्क करने के लिए तथा उनकी संपत्तियों को केंद्र सरकार से अटैच करने का प्रावधान किया गया है। विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1973 के तहत उक्त अधिनियम के कथित उल्लंघनों के लिए अधिनियम के तहत 31 अप्रैल 2002 तक जारी कारण बताओ नोटिस का न्याय निर्णयन करना है। इसके आधार पर संबंधित पर जुर्माना लगाया जा सकता है और एफआईआर के तहत शुरू किए गए मुकदमों को आगे बढ़ाया जा सकता है।

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