इमरान प्रतापगढ़ी को बड़ी राहत, SC ने रद्द की FIR

कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है... शीर्ष अदालत ने सोशल मीडिया पर कविता पोस्ट करने के मामले में उनके खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है….. शीर्ष अदालत ने उनके खिलाफ गुजरात पुलिस द्वारा सोशल मीडिया पर एक कविता पोस्ट करने के मामले में दर्ज की गई FIR को रद्द कर दिया……. यह फैसला जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने सुनाया……. जिसमें कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का मूल आधार है….. और मौलिक अधिकारों की रक्षा करना हर नागरिक का हक है…… कोर्ट ने यह भी जोड़ा कि पुलिस का काम लोगों की बुनियादी सुरक्षा सुनिश्चित करना है…… न कि उनकी अभिव्यक्ति को दबाना…… यह फैसला न केवल इमरान प्रतापगढ़ी के लिए एक बड़ी जीत है….. बल्कि भारतीय जनता पार्टी की उस राजनीति पर भी करारा प्रहार है……. जो पिछले कुछ वर्षों से अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने…… और असहमति को दबाने की कोशिश करती नजर आ रही है……

आपको बता दें कि यह मामला तब शुरू हुआ जब इमरान प्रतापगढ़ी ने जामनगर में एक सामूहिक विवाह समारोह में भाग लेने के बाद 2 जनवरी 2025 को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की……. इस पोस्ट में उनकी कविता “ऐ खून के प्यासे लोगों सुनो…” को बैकग्राउंड में शामिल किया गया था…… गुजरात पुलिस ने इसे भड़काऊ करार देते हुए उनके खिलाफ FIR दर्ज की…… जिसमें भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 और 197 के तहत आरोप लगाए गए….. वहीं इन धाराओं में विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य फैलाने…… और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ काम करने की बात कही गई थी……. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस FIR को खारिज करते हुए साफ कर दिया कि यह कविता हिंसा का संदेश नहीं देती…… बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आती है…… कोर्ट ने यह भी कहा कि कविता, कला और साहित्य जीवन को सार्थक बनाते हैं….. और इनके जरिए दिए गए विचारों का सम्मान होना चाहिए…..

वहीं यह फैसला बीजेपी के लिए एक जोरदार तमाचा है…….. जो अपनी सत्ता के दम पर असहमति की हर आवाज को दबाने की कोशिश करती रही है……. बीजेपी शासित गुजरात में यह कोई पहला मामला नहीं है……. जहां विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, लेखकों और कवियों को निशाना बनाया गया हो……. पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने जिस तरह से अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला बोला है……. वह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है…… चाहे वह स्टैंड-अप कॉमेडियन्स के खिलाफ मुकदमे हों……. पत्रकारों की गिरफ्तारी हो, या सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना करने वालों को जेल में डालने की धमकी…… बीजेपी ने बार-बार साबित किया है कि वह असहमति को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है……. इमरान प्रतापगढ़ी का मामला भी इसी सिलसिले की एक कड़ी था…….. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस बार बीजेपी की इस मनमानी पर लगाम लगा दी…….

बता दें कि बीजेपी की यह रणनीति केवल सत्ता को बनाए रखने की कोशिश नहीं है……. बल्कि एक ऐसी विचारधारा को थोपने का प्रयास है……. जिसमें सिर्फ उनकी बात सुनी जाए….. और बाकी सब चुप रहें…… गुजरात जो बीजेपी का गढ़ माना जाता है…… वहां की पुलिस ने इस मामले में जिस तरह से जल्दबाजी दिखाई……. वह साफ तौर पर राजनीति से प्रेरित थी….. इमरान प्रतापगढ़ी एक कवि होने के साथ-साथ कांग्रेस के राज्यसभा सांसद…… और अल्पसंख्यक विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं…… उनकी कविताएं अक्सर सामाजिक मुद्दों को उठाती हैं….. और सत्ता की नाइंसाफी के खिलाफ आवाज बुलंद करती हैं……. बीजेपी को यह बात बर्दाश्त नहीं हुई…… और उन्होंने एक कविता को आधार बनाकर उन्हें निशाना बनाने की कोशिश की……. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सच्चाई को सामने लाकर बीजेपी के मंसूबों पर पानी फेर दिया…….

आपको बता दें कि बीजेपी की यह नीति केवल इमरान प्रतापगढ़ी तक सीमित नहीं है……. यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है……. जिसके तहत विपक्ष को कमजोर करने के लिए हर हथकंडा अपनाया जा रहा है……. चाहे वह कानून का दुरुपयोग हो……. जांच एजेंसियों का इस्तेमाल हो…….. या फिर पुलिस के जरिए डर का माहौल पैदा करना हो…… बीजेपी ने हर उस शख्स को निशाना बनाया है…… जो उनकी नीतियों की आलोचना करता है……. लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस बात का सबूत है कि भारत का संविधान……. और न्याय व्यवस्था अभी भी जिंदा है…….. कोर्ट ने न केवल इमरान प्रतापगढ़ी को राहत दी……. बल्कि यह संदेश भी दिया कि अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने की कोशिशें बर्दाश्त नहीं की जाएंगी……

वहीं बीजेपी की इस हार से यह भी साफ होता है कि उनकी तानाशाही वाली राजनीति अब ढलान पर है……. 2024 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला……. और उसे सहयोगियों के भरोसे सरकार बनानी पड़ी……. यह इस बात का संकेत था कि जनता उनकी नीतियों से ऊब चुकी है…….. लेकिन इसके बावजूद बीजेपी अपनी पुरानी चालों से बाज नहीं आ रही है……… इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ यह FIR भी उसी मानसिकता का नतीजा थी……… जिसमें विपक्ष को परेशान करना…… और उनकी आवाज को दबाना शामिल है…… लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी को आईना दिखा दिया कि कानून का दुरुपयोग हमेशा कामयाब नहीं होता…….

बीजेपी की यह राजनीति देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है…….. एक तरफ वे “सबका साथ, सबका विकास” का नारा देते हैं……. लेकिन दूसरी तरफ असहमति की हर आवाज को कुचलने की कोशिश करते हैं……. इमरान प्रतापगढ़ी की कविता को भड़काऊ बताने की कोशिश न केवल हास्यास्पद थी…….. बल्कि यह भी दिखाती है कि बीजेपी खुद को कितना असुरक्षित महसूस कर रही है…… आपतो बता दें कि अगर एक कविता से सत्ता डरने लगे……. तो यह उसकी कमजोरी का सबूत है…….. सुप्रीम कोर्ट ने यह कहकर बीजेपी को करारा जवाब दिया कि कविता हिंसा का संदेश नहीं देती…….. बल्कि यह अभिव्यक्ति का एक रूप है…… यह फैसला बीजेपी के उस दावे को भी खारिज करता है कि वे देश की एकता और अखंडता के रक्षक हैं……. असल में, वे अपनी सत्ता की रक्षा के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं……

आपको बता दें कि जस्टिस ए एस ओका ने कहा कि कोई अपराध नहीं हुआ…… जब आरोप लिखित रूप में हो तो पुलिस अधिकारी को इसे पढ़ना चाहिए……. जब अपराध बोले गए या बोले गए शब्दों के बारे में हो तो पुलिस को यह ध्यान रखना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बिना ऐसा करना असंभव है…….. भले ही बड़ी संख्या में लोग इसे नापसंद करते हों…… इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है…… जजों को बोले गए या लिखे गए शब्द पसंद नहीं आ सकते हैं…….. फिर भी हमें इसे संरक्षित करने और संवैधानिक सुरक्षा का सम्मान करने की आवश्यकता है…… न्यायालयों को संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सबसे आगे रहना चाहिए…..

वहीं जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने कहा कि नागरिक होने के नाते पुलिस अधिकारी अधिकारों की रक्षा करने के लिए बाध्य हैं……. जब धारा 196 बीएनएसएस के तहत अपराध होता है…… तो इसे कमजोर दिमाग या उन लोगों के मानकों के अनुसार नहीं आंका जा सकता है….. जो हमेशा हर आलोचना को अपने ऊपर हमला मानते हैं…… इसे साहसी दिमाग के आधार पर आंका जाना चाहिए……. हमने माना है कि जब किसी अपराध का आरोप बोले गए या बोले गए शब्दों के आधार पर लगाया जाता है……. तो मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बीएनएसएस की धारा 173(3) का सहारा लेना पड़ता है…..

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