सुप्रीम कोर्ट में वक्फ संशोधित कानून पर लगातार तीसरे दिन सुनवाई, सिब्बल और मेहता ने SC में अलग-अलग दलीलें दीं
सिब्बल ने कहा कि 1954 के अधिनियम में पहली बार कहा गया है कि मुत्तवली वे नहीं हैं जो संपत्ति पंजीकृत कर सकते हैं.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को वक्फ संशोधित कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर लगातार तीसरे दिन सुनवाई हुई। मुख्य न्यायधीश यानी CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ की अनुपस्थिति में न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अंतरिम राहत पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है।
सुप्रीम कोर्ट में लगातार तीसरे दिन वक्फ संशोधित कानून पर सुनवाई हुई. वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ के सामने अपने तर्क दिए. मैहता ने कहा कि वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं है जबकि सिब्बल ने इसे अहम स्तंभ बताया है.
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को लगातार तीसरे दिन वक्फ संशोधित कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई. शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर अंतरिम राहत के लिए अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है. इससे पहले अदालत अंतरिम आदेश देने पर दोनों पक्षों की दलीलें सुना. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को संक्षिप्त नोट दाखिल करने का निर्देश दिया था. सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने अंतरिम राहत पर अपना आदेश सुरक्षित रखा.
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने लंच के बाद जवाब देना शुरू किया. इस दौरान उन्होंने 2025 अधिनियम की धारा 3सी का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि प्रावधान को स्पष्ट रूप से पढ़ने से पता चलता है कि वक्फ की स्थिति उसी समय निलंबित हो जाएगी जब डीओ इस बात की जांच शुरू करेगा कि वक्फ संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं. इसका मतलब है कि वक्फ न्यायाधिकरण से पहले ही अपना दर्जा खो देता है
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को अवगत कराया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित मुसलमानों को संपत्ति वक्फ के रूप में समर्पित करने से रोकने वाला प्रावधान एक सुरक्षात्मक उपाय था. वहीं, डीओ जांच केवल वक्फ संपत्तियों की राजस्व प्रविष्टियों में सुधार थी, और कोई भी मूल अधिकार निर्धारित नहीं किया गया था. उन्होंने तर्क दिया कि ऐसी सुरक्षा उपायों के अभाव में कोई भी मुतवल्ली की भूमिका ग्रहण कर सकता है और व्यक्तिगत लाभ के लिए वक्फ संपत्तियों का संभावित दुरुपयोग कर सकता है.
इससे पहले वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग करते हुए दलील दी थी कि 2025 का अधिनियम गैर-न्यायिक तरीकों से वक्फ संपत्तियों के अधिग्रहण की सुविधा प्रदान करता है. सिब्बल ने कहा कि 1954 के अधिनियम में पहली बार कहा गया है कि मुत्तवली वे नहीं हैं जो संपत्ति पंजीकृत कर सकते हैं. 1954 से 2013 तक केवल एक राज्य ने वक्फ सर्वेक्षण पूरा किया.
उन्होंने कहा कि यह किसके कारण हुआ? राज्य सरकारों द्वारा सर्वेक्षण न किए जाने के कारण समुदाय वंचित हो जाएंगे. यह अधिग्रहण के खिलाफ है. जम्मू कश्मीर में 1 वक्फ पंजीकृत, यूपी में कोई भी नहीं. कल्पना कीजिए कि लखनऊ इमामबाड़ा खत्म हो जाए, यह बहुत बड़ी बात है. इसपर एसजी ने कहा कि अदालत को गुमराह किया जा रहा है.
सिब्बल ने कहा कि आप सभी बयान देते हैं और कहते हैं कि हमने न्यायालय को गुमराह किया. सीजेआई ने कहा लेकिन देखिए राज्य हैं- तमिलनाडु, पंजाब, केरल. सिब्बल ने कहा कि कृपया जस्टिस फजल अली का 1976 वाला फैसला देखें. सीजेआई ने कहा लेकिन सरकारी जमीन का क्या?
सिब्बल ने कहा कि हां, समुदाय सरकार से पूछता है कि हमें कब्रिस्तान चाहिए. तब जमीन आवंटित की गई, लेकिन फिर 200 साल बाद वे इसे वापस मांगते हैं और फिर क्या? कब्रिस्तान को इस तरह वापस नहीं लिया जा सकता. यह हर जगह है. सिब्बल ने कहा कि यह एक पूरी तरह से लोकतांत्रिक नहीं है.
सिब्बल ने कहा कि यह राज्य की कानून द्वारा दी गई जिम्मेदारी है, जिसका उन्होंने निर्वहन नहीं किया. यानी सर्वेक्षण करना. अब आप विधायी आदेश द्वारा अपनी गलती का समाधान नहीं कर सकते. वे कह रहे हैं कि नियम अधिसूचित किए जाएंगे. अगर पंजीकरण किसी प्रक्रिया पर निर्भर है और प्रक्रिया अनुपस्थित है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि समुदायों के अधिकार उस पर निर्भर हैं.
सिब्बल ने कहा कि वक्फ इस्लाम का आंतरिक हिस्सा है. सिब्बल ने स्पष्ट किया कि इस्लाम के पांच अहम स्तंभ हैं. सिब्बल ने अपनी दलीलें पूरी की. इससे पहले मेहता ने कहा, वक्फ इस्लामिक सिद्धांत है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन यह इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा नहीं. वक्फ एक इस्लामी अवधारणा है. लेकिन यह इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है.



