तो क्या खत्म हो रहा राजकीय निर्माण निगम का वजूद!
- 50 करोड़ तक के निर्माण कार्य करने की बंदिश को खत्म करने का शासन स्तर पर भेजा गया प्रस्ताव लंबित
- टेंडर के जरिए निजी कंपनियों को दिए जा रहे हर बड़े काम जबकि पूर्ववर्ती सरकारों में हजारों करोड़ के काम कर रहा था निगम
- देश-विदेश में नाम कमाने वाले निगम के इंजीनियरों की फौज हताश
चेतन गुप्ता
लखनऊ। प्रदेश सरकार की हठधर्मिता के चलते उत्तर प्रदेश का कभी गौरव रहा राजकीय निर्माण निगम आर्थिक रूप से लगातार कमजोर हो रहा है। राजधानी लखनऊ में लोक भवन, हाईकोर्ट की नई बिल्डिंग बनाने समेत देश-विदेश में भवन निर्माण के क्षेत्र में बेहतरीन काम कर सुर्खियां बटोरने वाला उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम (यूपीआरएनएन) वर्तमान में अपना वजूद खोता जा रहा है। प्रदेश सरकार के एक गलत फैसले ने निगम की माली हालत खराब करके रख दी है। 2019 में 50 करोड़ तक के काम करने की बंदिश ने यूपीआरएनएन का बंटाधार कर दिया है। निगम की बदहाल आर्थिक स्थिति को एक बार फिर से पटरी पर लाने के लिए 50 करोड़ की बंदिश को खत्म करने का शासन स्तर पर प्रस्ताव दिया गया है, जिस पर फैसला अभी पेंडिंग है।
उत्तर प्रदेश राजकीय निर्माण निगम के बारे में जानकर हैरानी होगी कि इसके पास अपने 1200 इंजीनियरों की फौज है जो भवन निर्माण के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल किए हुए है। इन इंजीनियरों ने अपने हुनर के दम पर भारत ही नहीं, विदेशों तक में निगम का नाम रोशन किया है। लोकभवन, हाईकोर्ट की नई बिल्डिंग, अंबेडकर पार्क, कांशीराम स्मारक, बहुखंडीय मंत्री आवास, वीवीआईपी गेस्ट हाउस, मंडी परिषद, पिकअप भवन, 100 डायल बिल्डिंग समेत सिर्फ लखनऊ में ऐसे तमाम निर्माण है जो निगम की बुलंदियों की कहानी बयां करते है। हाईकोर्ट की नई बिल्डिंग की खूबसूरती को लेकर उद्घाटन अवसर पर तत्कालीन चीफ जस्टिस ने यहां तक कहा था कि अगर ये बिल्डिंग दिल्ली में होती तो सुप्रीम कोर्ट इसी में शिफ्ट कर लेते। 90 के दशक में नेपाल के भटेटा में हॉस्पिटल का निर्माण रहा हो या फिर पूर्व में लीबिया में निर्माण कार्य, सब जगह यूपीआरएनएन ने अपना जलवा बिखेरा। निगम अपने खर्चे अपने काम की बदौलत खुद निकालता था। उसे न तो किसी की मदद की जरूरत थी और न ही वो कभी सरकार पर निर्भर रहा। लेकिन योगी सरकार पार्ट वन में 13 दिसम्बर 2019 में एक फैसले ने इसकी बदकिस्मती की इबारत लिख दी।
हजारों करोड़ का काम करने वाले निगम को 50 करोड़ की लक्ष्मण रेखा से बांध दिया गया, मतलब 50 करोड़ से उपर के काम पीडब्ल्यूडी करेगा उससे नीचे का काम यूपीआरएनएन। इस गलत फैसले का असर ये हुआ कि 2016-17 में 5 हजार 8 सौ करोड़ का सालाना काम करने वाले निगम का कामकाज 2021-22 में 3800 करोड़ तक आ सिमटा। जिससे निगम की आय पर इतना ज्यादा फर्क पड़ गया कि उसके अपने खर्चें तक निकालना मुश्किल हो रहा है। निगम को आय के रूप में मिलने वाले 12 फीसदी सेन्टेज चार्ज से खर्चें निकालना मुश्किल हो रहा है। यही हाल रहा तो अगले कुछ सालों में अन्य निगमों की तरह यूपीआरएनएन भी घाटे में चला जाएगा। 2003 में निगम के पास 4600 कर्मचारी थे जिसमें 2600 सेवानिवृत्त हो चुके है लेकिन उनके सापेक्ष आज तक भर्तियां नहीं हुई। अब जो 50 करोड़ से कम के काम मिल रहे हैं, उसको भी टेंडर के जरिए दूसरों से कराया जा रहा है। यहां के इंजीनियर सिर्फ सुपरविजन का काम देख रहे हैं।
हाथ से निकल गए प्रस्तावित मेडिकल कॉलेज
पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार में यूपीआरएनएन को 15 मेडिकल कालेजों को बनाए जाने का काम मिला था। लेकिन 2019-20 में योगी सरकार के 50 करोड़ की बंदिश के फैसले से ये मेडिकल कॉलेज निगम के हाथ से निकल गए। पीडब्ल्यूडी को मेडिकल कालेज बनाने के लिए दिए गए लेकिन तय समय सीमा के बाद भी वो नहीं बन सके और तो और निर्माण लागत भी बढ़ गई। उसके पीछे का कारण है कि पीडब्ल्यूडी सड़क निर्माण में विशेज्ञता रखता है न कि भवन निर्माण में। खुद उसके इंजीनियर इस बात को मानते है लेकिन सरकार के आदेश की न फरमानी कोई करना नहीं चाहता। हजारों करोड़ के काम के लिए पीडब्ल्यूडी टेंडर निकालता है जिसमें देश-विदेश की कंपनियां शामिल होती है। इससे यूपी का श्रमिक वर्ग भी अपने लाभ से वंचित हो रहा है। बदले परिवेश में यूपीआरएनएन भी बड़े कामों में टेंडर डालता है लेकिन सरकारी विभाग होने के कारण निजी कंपनियों का मुकाबला नहीं कर पा रहा है।
1975 में गठित निगम की पूरे देश में 140 इकाईयां थी। जो सिमटकर 80 के करीब रह गई है। इसे 60 करने की तैयारी है। देश-विदेश में अपनी काबिलियत के दम पर डंका बजवाने वाले यूपीआरएनएन को यूपीपीसीएल, आवास विकास परिषद, पुलिस आवास निगम, कंस्ट्रक्शन एंड डिजायन सर्विसेज समेत अन्य छोटे निगमों की कतार में लाकर खड़ा कर दिया है। अन्य निगमों की तरह यूपीआरएनएन कंगाली के दौर से गुजरने को मजबूर है।
एसडी द्विवेदी, महामंत्री, डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ
50 करोड़ की बंदिश समाप्त करने संबंधी प्रस्ताव शासन स्तर लंबित है। रिमाइंडर भी भेजा गया है। लोक निर्माण विभाग उच्चतर कार्यदायी संस्था है। लेकिन भवन निर्माण में यूपीआरएनएन की विषेज्ञता है। इस बात से शासन में बैठे आला अफसरों को अवगत कराया गया है। अपर मुख्य सचिव ने प्रस्ताव पर विचार करने का आश्वासन दिया है।
संजय तिवारी, प्रबंध निदेशक, उ.प्र.राजकीय निर्माण निगम
एमपी चुनाव से तीन माह पहले कांग्रेस जारी करेगी वचन पत्र
भोपाल। विधानसभा चुनाव से तीन माह पहले कांग्रेस वचन पत्र (घोषणा पत्र) जारी करेगी। इसमें किसान, युवा, कर्मचारी, महिला व कानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दों सहित अन्य कई मुद्दे शामिल किए जाएंगे। वचन पत्र राज्य और जिला स्तर पर जारी होंगे। इसमें शामिल किए जाने वाले विषषयों को जनता की राय लेकर पार्टी अंतिम रूप देगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ की अध्यक्षता में हुई बैठक में समिति के सदस्यों को जिलों का प्रभार देने का निर्णय लिया गया। बैठक में समिति के अध्यक्ष डा.राजेंद्र कुमार सिंह ने बताया कि वचन पत्र को लेकर काम प्रारंभ हो गया है। संभाग और जिला स्तर पर आमजन से इसमें शामिल किए जाने वाले विषषयों को लेकर विचार-विमर्श किया जाएगा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि हमने सरकार में रहते हुए वचन पत्र पर काम शुरू कर दिया था। किसानों की ऋण माफी प्रारंभ कर दी थी लेकिन भाजपा सरकार ने उसे रोक दिया। इसे सरकार में आने पर पूरा कराया जाएगा। कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाल करने की मांग कर रहे हैं, यह विषय भी हमारी प्राथमिकता में रहेगा। प्रदेश में सबसे ब़़डी समस्या बेरोजगारी है। पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 30 लाख से अधिक है। ऐसे में उनके लिए निवेश को बढ़ावा देकर नए अवसर बनाए जाएंगे।
मन की बात कुछ सालों में बन जाएगी मन की व्यथा: ममता
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी एकता का आह्वान किया है। ममता बनर्जी ने 2024 लोकसभा चुनाव के लिए खेला होबे अभियान का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ मिलकर हम भाजपा को सत्ता से बाहर कर देंगे। उन्होंने कहा कि हम सब साथ आकर भाजपा को 100 सीटों पर समेट देंगे। सीएम बनर्जी ने खेला होबे का नारा पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में दिया था, जिसमें भाजपा को हार मिली थी। ममता बनर्जी ने 2023 के ग्रामीण चुनावों के लिए टीएमसी की तैयारी बैठक में घोषणा करते हुए कहा नीतीश जी, अखिलेश और हेमंत, हम सब साथ हैं। राजनीति एक युद्ध का मैदान है। हमने 34 साल तक लड़ाई लड़ी है। उन्होंने पीएम मोदी का नाम लिए बिना कहा भाजपा को अपनी 275-300 सीटों पर गर्व है। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि राजीव गांधी के पास अगले आम चुनाव (1989 में) हारने से पहले 400 लोकसभा सीटें थीं। मन की बात कुछ सालों में मन की व्यथा बन जाएगी। उन्होंने सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए कहा कि हमें भाजपा की एजेंसियां नहीं, हमें नौकरी चाहिए। टीएमसी के कम से कम तीन प्रमुख नामों- पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी, राज्य के कानून मंत्री मोलोय घटक और पार्टी नेता अनुब्रत मंडल से जुड़े मामलों की जांच कर रही ईडी और सीबीआई की ओर इशारा करते हुए, ममता ने कहा कि कभी झुकेंगे नहीं। वे जिसे चाहें गिरफ्तार कर लें, हमें परवाह नहीं।