SC की सख्त टिप्पणी: “कोर्ट के चक्कर लगाकर समय बर्बाद मत करें, समाज के लिए कुछ सार्थक कीजिए”
सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा: “अदालतों के चक्कर मत लगाइए। इन मामलों में अपना समय व्यर्थ न गंवाएं। समाज की भलाई के लिए कुछ सार्थक कार्य कीजिए।”

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क: एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को सख्त लहजे में सलाह देते हुए कहा कि कोर्ट के चक्कर लगाकर अपना समय बर्बाद न करें।
यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ दायर याचिका से जुड़ा है, जिसमें वादी को अदालत में शारीरिक रूप से उपस्थित होने और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश न होने का निर्देश दिया गया था। इस आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा: “अदालतों के चक्कर मत लगाइए। इन मामलों में अपना समय व्यर्थ न गंवाएं। समाज की भलाई के लिए कुछ सार्थक कार्य कीजिए।” सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी ने यह साफ कर दिया कि न्यायपालिका अब ऐसे मामलों में समय जाया करने के प्रति गंभीर रुख अपना रही है, जिनमें अदालती व्यवस्था का अनावश्यक दुरुपयोग किया जा रहा है।
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की बेंच से वकील ने कहा कि, यह इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक प्रशासनिक परिपत्र के बारे में है, जिसमें पर एक वादी को शारीरिक रूप से उपस्थित होने का आदेश दिया गया है. इसपर वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल को यात्रा करनी पड़ी. मैं अपनी मां की एकमात्र देखभाल करने वाली हूं.
इसके बाद न्यायमूर्ति पारदीवाला की तरफ से कहा गया कि ये हाईकोर्ट के प्रशासनिक फैसले है. हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते. वादियों को कभी-कभी कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन प्रशासनिक मामलों में सर्वोच्च न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकता.
याचिकाकर्ता ने कहा कि मुझे बताया गया था कि इस फैसले का उद्देश्य फर्जी वादियों को हटाना है. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता ने धारा 32 के तहत अधिकार क्षेत्र का हवाला दिया है. याचिकाकर्ता के अनुसार, इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा लिया गया प्रशासनिक फैसला वादियों के लिए परेशानी और कठिनाई पैदा कर रहा है, झूठे मुकदमों को हटाने की प्रक्रिया में, ऐसे में अन्य वादियों को अनावश्यक रूप से परेशान किया जा रहा है. हमारा मानना है कि उच्च न्यायालय द्वारा लिए गए ऐसे प्रशासनिक निर्णयों में इस न्यायालय को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.



