बड़ा सवाल! चुनाव के बाद एकजुट रहेंगे सब
- विस-लोस चुनाव पर सबकी नजर
- पूर्ण बहुमत न मिलने पर क्या होगा
- विपक्ष का कौन बनेगा चेहरा
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। भारत के लिए तेईस और चौबीस चुनावों का वर्ष है। जहां 2023 में नौ राज्यों में चुनाव होने हैं वहीं 2024 में लोकसभा के आम चुनाव होना है। त्रिपुरा, नागालैंड व मेघालय में चुनावों की तारीख घोषित हो चुकी है। घोषणा होते ही सभी राजनैतिक दल अपनी-अपनी चुनावी बिसात बिछाने में जुट गए है। जहां केंद्र की भाजपा सरकार ने कार्यकारिणी बैठक कर अपनी रणनीति के तहत कार्यकर्ताओं को तैयार करन शुरू कर दिया है।
वहीं विपक्ष ने भी अपनी तलवारें म्यानों से निकाल कर उनको धार देना शुरू कर दिया है। उसकी के तहत तेलंगाना में केसीआर ने एक बड़ी रैली की जिसमें सपा, आप, माकपा समेत कई अन्य दलों के नेताओं ने भगा लिया। प्रश्न यह है कि चुनावों के बाद अगर किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है और कोई पार्टी बड़ी बनकर उभरती है, फिर क्या होगा? क्या वे दल जो चुनाव से पहले एक थे वो एक रह पाएंगे या अपने विरोधी विचार धारा के साथ चले जाएंगे। नया वर्ष शुरू होते ही राजनीतिक दलों की सरगर्मियां भी नए मोड पर आने लगी हैं। क्योंकि इस वर्ष 9 राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं एवं अगले वर्ष लोकसभा के चुनाव होने हैं।
राष्ट्रीय दल व क्षत्रप हो रहे संगठित
विपक्षी दलों का उत्साह एवं जोश सत्ता पक्ष से कम नहीं है। केन्द्रीय एवं राष्ट्रीय राजनीति में एक बार फिर राष्ट्रीय दल व क्षत्रप संगठित होते दिख रहे हैं। छोटे-से-छोटा दल भी यह माने बैठा है कि हम ही सत्ता प्राप्ति में संतुलन बिठायेंगे। सरकार कोई बनाए हम कुछ सीटों के आधार पर ही सत्ता की कुर्सी पर जा बैठेंगे। चुनावी गणित जिस प्रकार से बनाने के प्रयास हो रहे हैं, उसमें क्या तीसरी शक्ति निर्णायक बनने की मुद्रा में आ सकेगी? राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का भी इन चुनावों में असर देखने को मिल सकता है। भाजपा की कार्यकारिणी बैठक ऐसे समय हुई है, जब 2024 के लोकसभा चुनाव ज्यादा दूर नहीं हैं, साथ ही उससे पहले नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। इनमें से पांच राज्यों में बीजेपी या तो अकेली या सहयोगी दलों के साथ सरकार में है। पिछले वर्ष जिन दो राज्यों में विधानसभा चुनाव सम्पन्न हुए हैं, उसमें कोई दो राय नहीं कि गुजरात में पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की, लेकिन हिमाचल प्रदेश में एक फीसदी की जो कसर रह गई, उससे कांग्रेस के हौसले बुलंद हुए हैं। विपक्ष संगठित हो, अच्छी बात है लेकिन इससे राष्ट्र और राष्ट्रीयता के अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगने चाहिए। राहुल की भारत जोड़ो यात्रा क्या राजनीतिक दलों को जोड़ पायेगी? नजरें उनकी इस यात्रा में शामिल होने वाले राजनीतिक दलों पर भी लगी हैं, लेकिन ऐसा कोई दल अभी तक तो सामने नहीं आया है। बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती ने आगामी चुनावों में अकेले लडऩे का ऐलान कर पार्टी की रणनीति साफ कर दी है, वहीं कांग्रेस ने भारत जोड़ो यात्रा के समापन पर 30 जनवरी को विपक्षी दलों को आमंत्रण देकर नए सिरे से विपक्षी एकता की ताकत आंकने का पासा फेंका है। इतना ही नहीं, दूसरे छोटे-बड़े राजनीतिक दल भी अपने राजनीतिक फायदे के लिए गठजोड़ की राजनीति के गुणा भाग में व्यस्त हो गए हैं ।