धर्म संसद में संत ने कहा- गांधी ने देश का सत्यानाश किया, गोडसे को नमस्कार जो उन्हें मार दिया
The saint said in the Parliament of Religions - Gandhi destroyed the country, salutations to Godse who killed him
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
दिल्ली। देश के अलग-अलग राज्यों में इन दिनों हिंदू धर्म संसद आयोजित हो रहे हैं और ऐसे में धर्म की रक्षा के नाम पर नफ़रत फैलाया जा रहा हैं। हरिद्वार का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से ऐसी ही घटना सामने आई है। जिसमें कालीचरण नामक संत ने न केवल महात्मा गांधी को गालियां दी बल्कि हत्यारे गोडसे के जयकारे लगायें। हालांकि, इसी धर्म संसद के मंच से कालीचरण के इस जहरीले बोल की आलोचना भी कि गई हैं।
यह भगवाधारी फ़्रॉड राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को सरेआम गालियाँ दे रहा है, इसे तत्काल अंदर करना चाहिए।
गाँधी जी से किसी को वैचारिक मतभेद हो सकता है,पर उनका अपमान करने का हक किसी को नहीं है।
यह अक्षम्य अपराध है।pic.twitter.com/ToQF1ZC8AJ— Sanjay Nirupam (@sanjaynirupam) December 26, 2021
दरअसल, कानपुर के रावण भाटा मैदान में दो दिवसीय धर्म संसद आयोजित किया गया था। जिसमें इस धर्म संसद में कई राज्यों के सधु-संत समेत कई राजनीतिक दलों के लोग भी पहुंचे थे। रविवार को समापन सत्र के दौरान महाराष्ट्र से आए कथित संत कालीचरण को जब बोलने के लिए माइक मिला तो उन्होंने जहर उगलना शुरू कर दिया। काली चरण ने न केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को गाली दी, बल्कि बापू के हत्यारे नाथूराम गोडसे को सार्वजनिक मंच से नमन भी किया।
महंत रामसुंदर दास ने किया विरोध
दूधाधारी मठ के महंत व गोसेवा आयोग के अध्यक्ष महंत रामसुंदर दास ने कालीचरण के जहरीले बयानों की इसी मंच से निंदा की। उन्होंने इसका खुला विरोध करते हुए इस पूरे आयोजन से ही किनारा कर लिया। जबकि, आयोजकों ने उन्हें कार्यक्रम का मुख्य संरक्षक बनाया था। दास ने कहा कि, ‘यह कार्यक्रम अपने उद्देश्य से भटक गया है।
धर्म ये होता है
बापू को गाली देने पर महंत रामसुंदर दास ने ख़ुद को गाली-गलौज वाली अधर्म संसद से अलग किया pic.twitter.com/nAWlpXcoiE
— Vinod Kapri (@vinodkapri) December 26, 2021
आजादी के लिए सबकुछ बलिदान करने वाले महात्मा गांधी को देशद्रोही बताया जा रहा है। मुझे खेद है कि आयोजकों ने इसपर तत्काल आपत्ति नहीं ली। मैं खुद को इस आयोजन से अलग करता हूं।’ इतना कहकर दास अपने शिष्यों व अन्य संतों के साथ वहां से निकल गए।