क्रीमी लेयर के फैसले पर देश में मचा बवाल, मोदी-शाह बेहाल
केंद्र की मोदी सरकार खुद के बिछाए जाल में ही लगातार फंसती नजर आ रही है... लोकसभा चुनाव से आज तक मोदी अपने बिछाए जाल में फंसकर रह जाते हैं...
4पीएम न्यूज नेटवर्कः केंद्र की मोदी सरकार खुद के बिछाए जाल में ही लगातार फंसती नजर आ रही है… लोकसभा चुनाव से आज तक मोदी अपने बिछाए जाल में फंसकर रह जाते हैं… एक अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश जारी करते हुए कहा था कि राज्य सरकार अपने अनुसार काटें में कोटा दे सकती है… जिससे पिछड़े, अतिपिछडें और दलितों का विकास होगा और उनका जीनव स्तर बेहतर होगा… समाज वो एक अच्छी लाइफ स्टाइल के साथ अपनी जीवन यापन कर सकेंगे… लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से देश में जमकर विरोध होने लगा… और विपक्ष सहित कई आरक्षण बचाओं समितियों द्वारा देश बंद का ऐलान कर दिया जिसका असर पूरे देश में देखने को मिला… दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से नौकरियों में आरक्षण देने के लिए एससी-एसटी वर्ग को सब कैटेगरी में रिजर्वेशन दिए जाने की मांग का मामला लंबित चल रहा था…. सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को बड़ा फैसला सुनाया….या यूं कह लीजिए कि सुप्रीम कोर्ट ने दो हजार चार के अपने पुराने फैसले को पलट दिया है… और पंजाब अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग अधिनियम दो हजार छः और तमिलनाडु अरुंथथियार अधिनियम पर अपनी मुहर लगा दी… और कोटा के अंदर कोटा (सब कैटेगरी में रिजर्वेशन) को मंजूरी दे दी…. चूंकि इससे पहले दो हजार चार में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार से जुड़े मामले में फैसला दिया था… कि राज्य सरकारें नौकरी में आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति…. और अनुसूचित जन जातियों की सब कैटेगरी नहीं बना सकतीं…. क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं…. जबकि उस फैसले के खिलाफ जाने वाली पंजाब सरकार का तर्क था कि… इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के उन्नीस सौ बाननबे के फैसले के तहत यह स्वीकार्य था…. जिसने अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर सब कैटेगरी की अनुमति दी थी…. आपको बता दें कि पंजाब सरकार ने मांग रखी थी कि अनुसूचित जाति के भीतर भी सब कैटेगरी की अनुमति दी जानी चाहिए…
आपको बता दें कि दो हजार बीस में सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि इस पर बड़ी बेंच द्वारा फिर से विचार किया जाना चाहिए…. और सीजेआई के नेतृत्व में सात जजों की संविधान पीठ बना दी गई…. इस बेंच ने जनवरी दो हजार चौबीस में तीन दिनों तक मामले में दलीलें सुनीं…. और उसके बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया…. उसके बाद एक अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने फैसला सुनाया…. हालांकि, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई…. वहीं संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है…. यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति… और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं…. ताकि सबसे जरूरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सके…. राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में समक्ष होंगी…. हालांकि, कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए…. कोर्ट का कहना था कि ऐसा करना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है…. कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दिया जा सकता है…. इसके अलावा, SC में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए…. यानी आरक्षण के मसले पर राज्य सरकारें सिर्फ जरूरतमंदों की मदद के लिए कानून बना सकती हैं….. ना कि राजनीतिक लाभ के लिए किसी तरह की मनमानी कर सकती हैं… और ना भेदभावपूर्ण फैसला ले सकती हैं….
उन्नीस सौ पचहत्तर में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को दो श्रेणियों में विभाजित करके अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण नीति पेश की थी…. एक बाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए और दूसरी बाकी अनुसूचित जाति वर्ग के लिए…. बता दें कि तीस साल तक ये नियम लागू रहा…. उसके बाद दो हजार छः में ये मामला पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट पहुंचा…. और ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो हजार चार के फैसले का हवाला दिया गया….. पंजाब सरकार को झटका लगा और इस नीति को रद्द कर दिया गया…. चिन्नैया फैसले में कहा गया था कि एससी श्रेणी के भीतर सब कैटेगरी की अनुमति नहीं है…. क्योंकि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है. बाद में पंजाब सरकार ने दो हजार छः में बाल्मीकि… और मजहबी सिखों को फिर से कोटा दिए जाने को लेकर एक नया कानून बनाया…. जिसे दो हजार दस में फिर से हाई कोर्ट में चुनौती दी गई…. हाई कोर्ट ने इस नीति को भी रद्द कर दिया…. ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा…. आपको बता दें कि भारत बंद का आह्वान दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ ने किया है…. संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए दावा किया है कि यह ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में कोर्ट के पिछले फैसले को कमजोर करता है…. जिसने आरक्षण के लिए रूपरेखा स्थापित की थी…. संगठन ने सरकार से नौकरियों और शिक्षा में दलित-आदिवासी समुदायों के लिए सामाजिक न्याय और समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की मांग की है…. सरकार से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करने का भी आग्रह किया है… और एक नए केंद्रीय अधिनियम की मांग की है….. जिसे संविधान की नौवीं अनुसूची द्वारा न्यायिक समीक्षा से संरक्षित किया जाए….
आपको बता दें कि देश में बुधवार को कई दलित और आदिवासी संगठनों ने ‘भारत बंद’ का आह्वान किया…. आपको बता दें कि अनुसूचित जाति आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के विरोध में यह राष्ट्रव्यापी हड़ताल की गई… वहीं बुधवार के बंद को कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल ने अपना समर्थन देने की घोषणा की… वामपंथी दलों ने भी हड़ताल के आह्वान का समर्थन किया… वहीं, एनडीए में शामिल लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) ने भी भारत बंद को समर्थन दिया… इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि वो एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर के पक्ष में नहीं है…. वहीं इस विरोध के पीछे 1 अगस्त, 2024 को आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला है…. दरअसल, उच्चतम न्यायालय के सात न्यायधीशों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि राज्य को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के लिए अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण करने का अधिकार है…. फैसले का मतलब है कि राज्य एससी श्रेणियों के बीच अधिक पिछड़े लोगों की पहचान कर सकते हैं…. और कोटे के भीतर अलग कोटा के लिए उन्हें उप-वर्गीकृत कर सकते हैं…. बता दें कि यह फैसला भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनाया था… इसके जरिए दो हजार चार में ईवी चिन्नैया मामले में दिए गए पांच जजों के फैसले को पलट दिया…. बता दें कि दो हजार चार के निर्णय में कहा गया था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है…. वहीं फैसले के दौरान हुई बहस में अदालत ने एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की आवश्यकता पर जोर दिया था… कई जजों ने न्यायालय ने अनुसूचित जातियों के भीतर ‘क्रीमी लेयर’ को अनुसूचित जाति श्रेणियों के लिए निर्धारित आरक्षण लाभों से बाहर रखने की पर राय रखी थी…. वर्तमान में, यह व्यवस्था अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण पर लागू होती है…. मुख्य रूप से न्यायमूर्ति बीआर गवई ने कहा था कि राज्यों को एससी, एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिए… और उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए…
बता दें कि देशभर में कई सामाजिक संघों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर असंतोष जताया है…. दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ का तर्क है कि एससी में उप-वर्गीकरण का निर्णय आरक्षण ढांचे… और संवैधानिक सुरक्षा को खतरे में डाल सकता है…. इसने सरकार से अनुरोध किया है कि इस फैसले को खारिज किया जाए….. क्योंकि यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरा है…. वहीं कांग्रेस, बसपा, चिराग पासवान की लोजपा…. और रामदास अठावले की आरपीआई समेत कई पार्टियों ने कोर्ट के फैसले के कई पहलुओं की आलोचना की…. चिराग पासवान ने कहा कि उनकी पार्टी फैसले की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट जाएगी…. वहीं देश की मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं राहुल गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे समेत पार्टी नेतृत्व ने उपवर्गीकरण मुद्दे पर बैठक की थी…. खरगे के आवास पर हुई बैठक में पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल, कांग्रेस के कर्नाटक प्रभारी रणदीप सुरजेवाला, महासचिव जयराम रमेश…. और पार्टी के कानूनी और दलित चेहरे शामिल थे…. बैठक के बाद जयराम रमेश ने जाति जनगणना और अनुसूचित जातियों, जनजातियों… और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित पचास फीसदी की सीमा को हटाने की पार्टी की मांग दोहराई… इसके अलावा, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा था कि प्रधानमंत्री संसद में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज कर सकते थे और इसे वहां ला सकते थे। उन्होंने कहा था, ‘प्रधानमंत्री कुछ घंटों में विधेयक बना सकते हैं। इसके लिए आपके पास कई दिन बीत जाने के बावजूद समय नहीं है….
जिसको लेकर खरगे ने कहा था कि आरक्षण नीति में कोई बदलाव तब तक नहीं किया जाना चाहिए….. जब तक कि ‘देश में अस्पृश्यता की प्रथा बनी रहे…. सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने क्रीमी लेयर का मुद्दा उठाकर अनुसूचित जाति समुदाय के लोगों के बारे में नहीं सोचा है…. और उन्होंने कहा था कि विपक्षी दल इस मुद्दे पर एकजुट हैं…. हालांकि, कांग्रेस के दो मुख्यमंत्रियों- कर्नाटक के सिद्धारमैया और तेलंगाना के रेवंत रेड्डी ने स्थानीय समीकरणों के चलते इस फैसले का स्वागत किया था…. कांग्रेस नेताओं ने यह भी कहा था कि पार्टी का नजरिया दिल्ली में नेतृत्व द्वारा तय किया जाएगा…. उधर, केंद्रीय मंत्री और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का समर्थन किया है… एनडीए के नेता ने कहा कि एससी-एसटी आरक्षण में जो जातियां आरक्षण के लाभ से वंचित हैं… और उन्हें कोटे में कोटा का लाभ दिया जाना चाहिए…
आपको बता दें कि सर्वोच्च अदालत के फैसले के करीब हफ्तेभर बाद नौ अगस्त को एससी…. और एसटी समुदायों से आने वाले भाजपा सांसदों ने पीएम मोदी से मुलाकात की…. वहीं करीब सौ सांसदों ने एससी/एसटी आरक्षण के भीतर क्रीमी लेयर अवधारणा के कार्यान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट की हालिया टिप्पणी पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए एक ज्ञापन दिया… और उन्होंने आग्रह किया कि इस निर्णय को लागू नहीं किया जाना चाहिए…. सांसदों के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वे इस मुद्दे को हल करेंगे…. वहीं उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक हुई…. जिसमें कहा गया कि संविधान में एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है…. केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने फैसले के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी आरक्षण को लेकर सुझाव दिया था…. इसे लेकर कैबिनेट बैठक में चर्चा हुई…. और उन्होंने कहा कि एनडीए सरकार डॉ. बीआर आंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान से बंधी है…. साथ ही संविधान में एससी-एसटी आरक्षण में क्रीमी लेयर का कोई प्रावधान नहीं है…