पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के रण में योद्धा जंग को तैयार
मेघालय में कांग्रेस को बदलनी होगी रणनीति
- एनपीपी दूसरी बड़ी पार्टी, बीजेपी से गठबंधन कर बनाई सरकार
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। चुनावों की घोषणा के साथ ही पूर्वोत्तर के अहम प्रदेश मेघालय में राजनैतिक दलों ने कमर कसना शुरू कर दिया। कभी पीएम संगमा की वजह से भारतीय राजनीति में अपनी खास जगह रखने वाला यह राज्य कांग्रेस का गढ़ था। पर संगमा के कांग्रेस से जाने के बाद वहां पर कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा। पीए संगमा ने नई पार्टी एनसीपी के साथ जाकर राज्य में अपनी मूल पार्टी को हांसिये पर पहुंचा दिया था। बाद में उन्होंने अपनी खुद की पार्टी बनाकर अपने को राजग का हिस्सा बन के केंद्रीय राजनीति में स्थापित कर लिया था।
वह अटल सरकार के समय लोक सभा अध्यक्ष बने। संगमा के कांग्रेस से अलग होने का फायदा वहां के अन्य दलों को भी मिला। वर्तमान में पूर्व लोक सभा अध्यक्ष दिवंगत पीएम संगमा के पुत्र कोनराड संगमा नेशनल पीपूल्स पार्टी को संभाल रहे हैं। उनकी वर्तमान में सरकार है। जिसे भाजपा का समर्थन हासिल है। वहीं कांग्रेस को वहां तृणमूल कांग्रेस तगड़ा झटके दे रही। टीएमसी कांग्रेस के विधायकों को अपने पाले में करके कांग्रेस को कमजोर कर रही। हालांकि 2018 में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। मेघालय विधानसभा का कार्यकाल 15 मार्च को समाप्त हो रहा है। मेघालय विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों नें भी तैयारी शुरू कर दी है। मेघालय में विस की 60 सीटें हैं। साल 2018 में यहां 59 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे। तब कांग्रेस यहां सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। कांग्रेस को 21 सीटों पर जीत हासिल हुई है। एनपीपी दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई, जिसके खाते में 19 सीटें थी। वहीं बीजेपी को 2 सीटों पर जीत मिली थी, यूडीपी की 6 सीटें हासिल हुईं थी।
महिलाओं की भागीदारी कम
मेघालय एक महिला प्रधान समाज है। पूर्वोत्तर भारत के इस राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल तैयारियां कर रहे हैं। मेघालय की 60 में से 36 ऐसी विधानसभा की सीटें हैं जहां महिलाओं की जनसंख्या पुरुषों से अधिक है। भले ही यहां समाज महिला प्रधान है लेकिन राजनीति में महिलाओं की मौजूदगी ना के बराबर ही है। असम और मेघालय के बीच 884.9 किमी लंबी अंतर्राज्यीय सीमा पर 12 स्थानों पर विवाद हैं। दोनों राज्यों ने पहले 12 विवादित क्षेत्रों में से छह को हल करने के लिए पिछले साल मार्च में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, जबकि शेष छह विवादित क्षेत्रों को हल करने के लिए चर्चा चल रही है। इस बीच असम से लगी विवादित सीमा से सटे इलाकों में रहने वाले मतदाताओं को मेघालय में आगामी विधानसभा चुनाव में वोट डालने की अनुमति दी जाएगी। वहीं मेघालय में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए नेशनल पीपुल्स पार्टी ने 58 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है। शिलांग में आयोजित एक चुनावी बैठक में कोनराड संगमा ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में विभिन्न राजनीतिक नेता एनपीपी में शामिल हुए हैं, जो पार्टी की बढ़ती ताकत को प्रदर्शित करता है।
ये हें प्रमुख सियासी दल
मेघालय में बीजेपी, कांग्रेस, तृणामूल कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों को वर्चस्व है। क्षेत्रीय दलों में नेशनल पीपुल्स पार्टी, यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिल स्टेट पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, गारो नेशनल काउंसिल, खुन हैन्नीवट्रेप राष्ट्रीय जागृति आंदोलन, नार्थ ईस्ट सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, मेघालय डेमोक्रे टिक पार्टी प्रमुख हैं।
कमजोर कांग्रेस को इस बार संजीवनी की आस
2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, हालांकि वो बहुमत से दूर थी। बीजेपी को महज 2 सीटें मिली थीं बावजूद इसके उसने नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी ) के साथ गठबंधन करके यहां अपनी सरकार बना ली थी। इस बार कांग्रेस का यहां जनाधार नहीं दिख रहा है। कांग्रेस के विधायक तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। यानी यहां इस बार तृणमूल कांग्रेस का यहां असर देखने को मिल सकता है। एक समय कांग्रेस ने लगभग सभी पूर्वोत्तर राज्यों पर शासन किया था, लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी अब मेघालय में कमजोर नजर आ रही है। पूर्वोत्तर के पांच राज्यों के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा (असम), माणिक साहा (त्रिपुरा), एन बीरेन सिंह (मणिपुर), पेमा खांडू (अरुणाचल प्रदेश), नेफियू रियो (नागालैंड) कांग्रेस के पूर्व नेता हैं और अब बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकारें चला रहे हैं। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद मेघालय में कांग्रेस प्रमुख विपक्षी पार्टी थी, लेकिन इसके अधिकांश विधायक तृणमूल कांग्रेस और सत्तारूढ़ नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) सहित अन्य दलों में शामिल हो गए हैं।
मेघालय में कांग्रेस के पांच में से तीन विधायक हाल ही में एनपीपी में शामिल हुए हैं। मेघालय विधानसभा रिकॉर्ड के मुताबिक 60 सदस्यीय मेघालय विधानसभा में अब कांग्रेस के दो विधायक हैं। इन दोनों विधायकों के भी जल्द ही अन्य पार्टियों में शामिल होने की संभावना है। कांग्रेस ने पहले सभी शेष पांच पार्टी विधायकों को एनपीपी नेतृत्व, विशेष रूप से मुख्यमंत्री और एनपीपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कोनराड के संगमा के साथ मेलजोल के लिए निलंबित कर दिया था। कांग्रेस ने घोषणा की है कि वो मेघालय में विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी। वहीं मेघालय में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए नेशनल पीपुल्स पार्टी ने 58 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है। शिलांग में आयोजित एक चुनावी बैठक में कोनराड संगमा ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में विभिन्न राजनीतिक नेता एनपीपी में शामिल हुए हैं, जो पार्टी की बढ़ती ताकत को प्रदर्शित करता है।
त्रिपुरा में भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकता है गठबंधन
चुनाव की घोषणा के बाद त्रिपुरा में भी बिसात बीछना शुरू हो जाएगी। हालांकि वहां पर कांग्रेस व माकपा एक साथ चुनाव लडऩे की घोषण कर चुकी है। उन दोनो के साथ आने भाजपा खेमें बेचैनी बढ़ गई है। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने दावा किया है कि राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले लोग माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस की नजदीकी पसंद नहीं कर रहे हैं और उन्होंने दोहराया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इन दोनों पार्टियों पर बढ़त हासिल करेगी। साहा का यह बयान माकपा और कांग्रेस सहित छह विपक्षी दलों द्वारा एक संयुक्त बयान जारी करने के बाद आया है, जिसमें पूर्वोत्तर राज्य के ‘‘शांतिप्रिय’’ लोगों से लोकतंत्र की बहाली, कानून के शासन की फिर से स्थापना तथा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के पक्ष में आवाज उठाने को कहा गया है। भाजपा-आईपीएफटी (इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा) गठबंधन ने 2018 के विधानसभा चुनावों में 60 सदस्यीय सदन में दो-तिहाई बहुमत हासिल कर राज्य में 25 साल के वाम शासन को समाप्त कर दिया था। साहा ने को कहा, ‘‘यह एक अवसरवादी मेल है। पहले दोनों पार्टियों (माकपा और कांग्रेस) के बीच गुपचुप संबंध था और अब यह सामने आ गया है। लोग इसे सकारात्मक रूप से नहीं ले रहे हैं।’’ उन्होंने कहा कि माकपा और कांग्रेस ने पश्चिम बंगाल से कोई सबक नहीं लिया है जहां उन्होंने मिलकर तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था लेकिन कुछ खास नहीं कर पाए थे। वाम दलों माकपा, फॉरवर्ड ब्लॉक, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) और भाकपा (माले) तथा कांग्रेस के नेताओं ने एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किया है।
वहीं माकपा के प्रदेश महासचिव जितेंद्र चौधरी ने दावा किया था कि टिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत किशोर माणिक्य ने संयुक्त बयान में व्यक्त किए गए विचारों का व्यापक रूप से समर्थन किया है, लेकिन वह इस पर हस्ताक्षर नहीं कर सके क्योंकि वह अभी राज्य से बाहर हैं। वहीं साहा ने कहा, ‘‘चुनाव में लोग अवसरवादी विचार को खारिज कर देंगे।’’ अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) महासचिव अजय कुमार भी पहुंचे गए है उन्होंने दावा किया कि लोग भाजपा से तंग आ चुके हैं, और उसे उखाड़ फेंकेंगे।
चुनाव की घोषणा भजे ही आज हुई पर सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एक जनवरी से राज्य भर में रथ यात्रा का आयोजन कर रही है। उन्होंने कहा कि यात्रा की तैयारियों के लिए सूचना एवं सांस्कृतिक मामलों के मंत्री सुशांत चौधरी की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। यात्रा उत्तरी त्रिपुरा जिले से जबकि दूसरी दक्षिण त्रिपुरा जिले से निकलेगी। यात्रा का उद्देश्य चुनाव से पहले लोगों का आशीर्वाद लेना है।
वहां पर अमित शाह पहले ही अपनी सभाओं द्वारा लोगों को साधने में जुट गए हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कई कार्यक्रम वहां हो चुके है। पूर्व सीएम विप्लवदेव के घर हुए हमले को भी भाजपा चुनाव में मुद्दा बनाकर माकपा, टीएमसी व कांग्रेस को घेरेगी। ममता बनर्जी की टीएमसी वहां पर अपना जनाधार बढ़ाने में जुट गई है। त्रिपुरा में 1967 से विधानसभा चुनाव हो रहा है। पिछले पांच दशक के राजनीतिक इतिहास में यहां कांग्रेस और सीपीएम हमेशा से एक-दूसरे के धुर विरोधी रहे। कभी कांग्रेस तो कभी सीपीएम की सत्ता यहां रही। 2018 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां दोनों ही पार्टियों को बड़ा झटका दिया। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सत्ता हासिल कर ली। बिप्लब कुमार देब मुख्यमंत्री बने। अब चुनाव से एन पहले कांग्रेस और सीपीएम साथ आ गए हैं। राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि त्रिपुरा लेफ्ट और कांग्रेस का गढ़ रहा है।
नागालैंड में दिलचस्प होगा मुकाबला
नागालैंड में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की अगुवाई में बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चल रही है। इस बार भी राज्य में राजनीतिक अटकलों पर विराम लगाते हुए सत्तारूढ़ नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी और भारतीय जनता पार्टी ने 2023 में मिलकर विधानसभा चुनाव लडऩे का एलान किया। एनडीपीपी 40 और बीजेपी 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। यहां कांग्रेस के लिए मुश्किल ज्यादा है क्योंकि एनडीपीपी और बीजेपी दोनों ही एक दूसरे का पूरा साथ देते हुए नजर आ रही हैं, हालांकि, बीजेपी को डर है कि एनडीपीपी मुकर न जाए। नागालैंड में इस साल एक ऐसी घटना हुई, जिससे मौजूदा मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो की ताकत और बढ़ गई। वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी एनपीएफ के 21 विधायक अप्रैल 2022 में नेफ्यू रियो की नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) में शामिल हो गए, इसमें नेता प्रतिपक्ष टी आर जेलियांग भी शामिल थे। इससे एनडीपीपी विधायकों की संख्या बढक़र 41 हो गई और मुख्य विपक्षी दल एनपीएफ के पास सिर्फ एक ही विधायक बच गया। एनपीएफ ने पहले ही कह दिया है कि वो इस बार अकेले चुनाव लड़ेगी। हालांकि उसके लिए अब यहां की राजनीति में फिर से जड़े जमाना बेहद मुश्किल लग रहा है. नेफ्यू रियो को बीजेपी का साथ भी मिलता रहेगा। इससे नेफ्यू रियो के पास 5वीं बार मुख्यमंत्री बनने का मौका है। एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन का मकसद सत्ता में बने रहना है। वहीं कांग्रेस अपनी खोई जमीन को वापस पाने की कोशिश करेगी।
आरआरपी से बड़े दलों को हो सकता है बड़ा नुकसान
इस बार नागालैंड के चुनावी बिसात में एक नए दल राइजिंग पीपुल्स पार्टी (आरआरपी) की इंट्री हो रही है। ये दल 2021 में अस्तित्व में आया है। नागालैंड में उग्रवादी और चरमपंथी समूहों की ओर से लोगों से की जाने वाली जबरन उगाही का विरोध करने के मकसद से आरआरपी का उदय हुआ था। इनमें नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ़ नागालैंड (एनएससीएन) जैसे चरमपंथी समूह भी शामिल हैं। आरआरपी संस्थापक और अध्यक्ष जोएल नागा ने नागा समस्या का हल हुए बिना चुनाव नहीं कराने की मांग की है। ये चाहते हैं कि राज्य में फिलहाल राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाना चाहिए।
कांग्रेस के लिए मुश्किल है राह
एक समय था जब नागालैंड की राजनीति में कांग्रेस की तूती बोलती थी। हालांकि कांग्रेस के लिए इस बार यहां के चुनाव में कोई मौका नहीं दिख रहा है। कांग्रेस के पास एक भी विधायक नहीं है। पिछले पांच साल में उसके कई नेता सत्ताधारी पार्टी का दामन पकड़ चुके हैं। कांग्रेस के पास जमीनी स्तर पर बड़े जनाधार वाला अब कोई भी नेता नहीं बचा है। इसके बावजूद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के थेरी का मानना है कि नागालैंड के लोग नेफ्यू रियो से ऊब चुके हैं और नागा समस्या के समाधान के लिए लोग कांग्रेस पर ही भरोसा जताएंगे। कांग्रेस ने कुछ दिन पहले ही प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के थेरी की अगुवाई में पीएसी गठित की है. इसमें पुराने दिग्गज नेता और 5 बार नागालैंड के मुख्यमंत्री रह चुके एस सी जमीर को भी शामिल किया है।
राज्य में टीएमसी भी तलाश रही है मौका
ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की नजर भी नागालैंड में अपनी पैठ बढ़ाने पर है। इस बार वो भी चुनाव लड़ेगी। ममता बनर्जी का मानना है कि नागालैंड में उनकी पार्टी एनपीएफ और कांग्रेस के विकल्प के तौर पर अपनी जड़े मजबूत कर सकती है। अलग राज्य की मांग कर रहे नागा समूहों के बीच भी टीएमसी अपना दायरा बढ़ा रही है।