नोटबंदी के फैसले से क्या मिलेगी सरकार को राहत या तूल पकड़ेगा यह मामला
- पांच जजों की बेंच ने 4-1 से दिया है निर्णय
- फैसले की समीक्षा करने में जुटा विपक्ष
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिका के मामले में आज बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने इससे जुड़ी सभी 58 याचिकाओं को खारिज करते हुए केंद्र सरकार की घोषणा को सही ठहराया। कोर्ट ने ये भी कहा कि नोटबंदी को लेकर सरकार ने सभी नियमों का पालन किया। छह महीने तक सरकार और आरबीआई के बीच इस मसले को लेकर बातचीत हुई और इसके बाद फैसला लिया गया। जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने इस मामले में अपना फैसला 4-1 से सुनाया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार, रिजर्व बैंक और याचिकाकर्ताओं की दलीलों को विस्तार से सुनने के बाद पिछले सात दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अब इस फैसले के बाद सरकार को बड़ी राहत तो मिल गई है मगर सियासी दलों द्वारा इसकी समीक्षा की जा रही है। यह मामला तूल भी पकड़ सकता है!
सभी याचिकाएं खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 और 1000 के नोटों को बंद करने के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने सरकार के इस कदम को सही ठहराते हुए नोटबंदी के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया है। पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा है कि यह निर्णय कार्यकारी की आर्थिक नीति होने के कारण उलटा नहीं जा सकता है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 नवंबर, 2016 को केंद्र द्वारा घोषित नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई की है। इन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान करेंसी नोटों को बंद करने को गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण बताते हुए वरिष्ठ वकील चिदंबरम ने तर्क दिया था कि सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है। ये केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिश पर किया जा सकता है। वहीं, 2016 की नोटबंदी की कवायद पर फिर से विचार करने के शीर्ष अदालत के प्रयास का विरोध करते हुए सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है जब घड़ी को पीछे करने से कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है।
गैरकानूनी थी घोषणा, आरबीआई ने लांघी सीमा: जस्टिस नागरत्ना
फैसला सुनाने वाली पांच जजों की बेंच में शामिल न्यायमूर्ति नागरत्ना ने नोटबंदी के फैसले पर सवाल उठाए हैं। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि 8 नवंबर, 2016 की अधिसूचना के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई नोटबंदी की कार्रवाई गैरकानूनी है। लेकिन इस समय यथास्थिति बहाल नहीं की जा सकती है। अब क्या राहत दी जा सकती है? उन्होंने कहा कि 500 रुपये और 1000 रुपये के सभी नोटों का विमुद्रीकरण गैरकानूनी और गलत है। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत अलग राय रखी। जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि मैं साथी जजों से सहमत हूं, लेकिन मेरे तर्क अलग हैं। उन्होंने कहा कि प्रस्ताव केंद्र सरकार की तरफ से आया था और आरबीआई की राय मांगी गई थी।
- 2016 में सरकार ने की थी नोटबंदी
केंद्र सरकार ने साल 2016 में आठ नवंबर की रात 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद कर दिया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद राष्टï्र के नाम संबोधन में इसका एलान किया था। सरकार के इस एलान के बाद देशभर के बैंकों, एटीएम पर लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई दिखी थीं। लोगों ने पुराने नोट बदलकर नए नोट हासिल करने के लिए काफी जद्दोजहद की थी। - नोटबंदी के खिलाफ 58 याचिकाएं
सरकार के नोटबंदी के फैसले को विपक्ष ने मुद्दा बनाया। केंद्र सरकार पर तमाम तरह के आरोप लगाए थे। विपक्ष का कहना था कि ये एक तरह का घोटाला है। इसके खिलाफ कोर्ट में 58 अलग-अलग याचिकाएं दाखिल हुईं थीं। इनपर लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने सात दिसंबर को आदेश सुरक्षित रख लिया था। - पांच जजों की पीठ ने सुनाया फैसला
नोटबंदी के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पांच जजों की बेंच ने अहम फैसला सुनाया। जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने इसकी अध्यक्षता की। इस बेंच में जस्टिस नजीर के अलावा जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्रा शामिल रहे। - याचिका में दी गई दलील
याचिकाकर्ताओं के वकील की ओर से दलील दी गयी थी कि इस मामले में आरबीआई कानून 1934 की धारा 26(2) का इस्तेमाल किया गया है। वरिष्ठ अधिवक्ता पी. चिदम्बरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार कानूनी निविदा से संबंधित किसी भी प्रस्ताव को अपने दम पर शुरू नहीं कर सकती है और यह केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिशों पर किया जा सकता है। - केंद्र सरकार ने रखा पक्ष
केंद्र सरकार ने इसे अकादमिक मुद्दा बताया था। सरकार ने कहा था कि अदालत ऐसे मामले का फैसला नहीं कर सकती है, जब बीते वक्त में लौट कर कोई ठोस राहत नहीं दी जा सकती है। - कोर्ट ने मांगा था दस्तावेज
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को सात दिसंबर को निर्देश दिया था कि वे सरकार के 2016 में 1000 रुपये और 500 रुपये के नोट को बंद करने के फैसले से संबंधित प्रासंगिक रिकॉर्ड पेश करें। जिसके बाद सरकार और आरबीआई की तरफ से इस मसले पर सील बंद लिफाफा में दस्तावेज पेश किए गए थे। - सरकार और आरबीआई के दिए गए तर्क
अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने नोटबंदी की वजहें समझाते हुए कहा था कि नोटबंदी कोई अकेला कदम नहीं था बल्कि एक व्यापक आर्थिक नीति का हिस्सा था, ऐसे में ये संभव नहीं है कि आरबीआई और सरकार अलग-थलग रहकर काम करती रहें। उन्होंने कहा था कि आरबीआई और केंद्र सरकार एक-दूसरे के साथ सलाह-मशविरा करते हुए काम करते हैं। आरबीआई ने बताया कि सेंट्रल बोर्ड मीटिंग के दौरान आरबीआई जनरल रेगुलेशंस, 1949 की कोरम (बैठक में एक निश्चित सदस्यों की संख्या) से जुड़ी शर्तों का पालन किया गया। रिजर्व बैंक ने बताया है कि इस बैठक में आरबीआई गवर्नर के साथ-साथ दो डिप्टी गवर्नर और आरबीआई एक्ट के तहत नामित पांच निदेशक शामिल थे। ऐसे में कानून की उस शर्त का पालन किया गया था जिसके तहत तीन सदस्य नामित होने चाहिए। - 4 जनवरी को सेवानिवृत्त हो रहे हैं जस्टिस नजीर
नोटबंदी पर फैसला सुनाने वाले सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एस नजीर दो दिन बाद यानी चार जनवरी को रिटायर हो रहे हैं। रिटायरमेंट से पहले उनका ये बड़ा फैसला ऐतिहासिक बताया जा रहा है।