आखिर क्यों चीनी सरकार के मुखपत्र पर लगा ताला
बीजिंग। 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग में जो कुछ हुआ है उससे चीन और चीनी सेना की मिट्टी पलीद हो गई है। दूसरों की जमीन पर कब्जा करने वाला चीन एक बार फिर से खबरों में है। भारतीय सैनिकों ने जिस तरह से चीनी सैनिकों को पीटा है, उसके बाद भारतीय सेना तो दुनियाभर में हीरो बन गई है मगर चीनी सैनिकों की इमेज और खराब हो गई है। इस बीच एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें भारतीय सेना, चीनी सैनिकों को बुरी तरह से पीटती हुई नजर आ रही है। वीडियो कब का है इस बात की पुष्टि नहीं हो सकी है लेकिन कुछ लोग कह रहे हैं कि यह साल 2021 का है। फिलहाल वीडियो की टाइमिंग तो बाद का सवाल है, पहला सवाल चीनी सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स की चुप्पी पर है। हर बार कई तरह की बातें करने वाला अखबार और इसके एडीटर हू शिजिन खामोश हैं और अब यह चुप्पी ट्रोलिंग की वजह बन गई है।
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स वीडियो आने के बाद से पूरी तरह से खामोश है। इससे पहले जब तवांग में घुसपैठ की खबर आई थी तो उस समय भी अखबार की तरफ से कुछ नहीं कहा गया। साल 2017 में हुआ डोकलाम विवाद हो या फिर जून 2020 में गलवान घाटी में हुई हिंसा हो, ग्लोबल टाइम्स ने हर बार लंबे-लंबे आर्टिकल्स लिखे और प्रपोगेंडा फैलाया। लेकिन अरुणाचल प्रदेश के तवांग में जो कुछ हुआ है, उससे ऐसा लगता है कि चीन की सरकार और ग्लोबल टाइम्स काफी शर्मिंदा है। भारत और चीन के बीच 3440 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा (रु्रष्ट) है जो कि विवादित है। अरुणाचल प्रदेश, इसी एलएसी के ईस्टर्न सेक्टर पर पड़ता है।
सेना के सूत्रों की मानें तो तवांग में हुए टकराव में चीन के काफी सैनिक घायल हुए हैं। जबकि घायल भारतीय सैनिकों की संख्या काफी कम है और उन्हें हल्की चोटें आई हैं। तवांग के यांगत्से में भारतीय सैनिकों ने बड़ी बहादुरी से चीनी सैनिकों को पीछे धकेल दिया था। हाल ही में उत्तराखंड में एलएसी के करीब भारत और चीन के सैनिकों ने युद्धाभ्यास किया है। चीन को इस युद्धाभ्यास से खासी आपत्ति थी। ग्लोबल टाइम्स ने चार दिसंबर को आए एक आर्टिकल में इसका जिक्र किया था। इमें लिखा था करीब एलएसी से करीब 100 किलोमीटर दूर हो रही इस एक्सरसाइज को ऐसे समय में करवाया जा रहा रहा है जब एक तरफ तो अमेरिका, भारत से सैन्य सहयोग बढ़ाना चाहता है तो दूसरी तरफ से भारत चीन को भडक़ाने में लगा हुआ है। ग्लोबल टाइम्स ने इस युद्धाभ्यास को भडक़ाने वाला कदम बताया था।
एलएसी के दोनों तरफ सेनाओं का भारी जमावड़ा रहता है और अक्सर सैनिकों के भिडऩे की खबरें आती हैं। सन् 1962 में दोनों देशों के बीच पहली जंग हुई। इसके पांच साल बाद साल 1967 में फिर से दोनों देशों के बीच टकराव हुआ जिसमें चीन को काफी नुकसान झेलना पड़ा था। चीन, अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताता है। इतिहास में कहीं दर्ज नहीं है कि अरुणाचल कभी चीन या तिब्बत का हिस्सा रहा है। सन् 1961 से ही चीन, अरुणाचल प्रदेश पर आक्रामक बना हुआ है। यही वजह है कि जब कभी भी भारत सरकार का कोई प्रतिनिधि या फिर विदेशी सरकार का कोई मेहमान अरुणाचल प्रदेश जाता है तो चीन को मिर्ची लग जाती है।