“उत्तराखंड में 2866 एकड़ तक फैले जंगल की ‘लूट’ का क्या खेल? CJI सूर्यकांत भी चौंके; स्वत: संज्ञान लिया”

उत्तराखंड में 2866 एकड़ अधिसूचित वन भूमि पर निजी कब्जों का मामला बेहद गंभीर है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे पर्यावरण के लिए खतरा करार देते हुए कहा कि यह व्यवस्थित हड़प है, जो राज्य की नाजुक हिमालयी इकोलॉजी को तबाह कर सकता है। मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत ने राज्य सरकार को ‘मूक दर्शक’ बताकर फटकार लगाई और स्वतः संज्ञान लेकर जांच कमेटी गठित करने के आदेश दिए।जंगल में लूट का खेलमामला 1950 का है, जब ऋषिकेश की पशुलोक सेवा समिति को भूमिहीनों के लिए लीज पर जमीन दी गई थी। 1984 में समिति ने 594 एकड़ वापस की, लेकिन बाकी पर निजी कब्जे बने रहे। कोर्ट ने कहा, हजारों एकड़ वन भूमि आंखों के सामने हड़पी जा रही है, फिर भी अधिकारी चुप हैं। अब मुख्य सचिव और प्रधान वन संरक्षक जांच रिपोर्ट देंगे। खाली जमीन पर वन विभाग कब्जा लेगा, कोई नया निर्माण या थर्ड पार्टी अधिकार नहीं बनेगा।सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणीसुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि पर स्टेटस क्वो बनाए रखने के आदेश दिए। कोई बिक्री, हस्तांतरण या थर्ड पार्टी अधिकार नहीं बनाए जा सकते। आवासीय मकानों को छोड़कर खाली भूमि पर वन विभाग और कलेक्टर कब्जा लेंगे। कोई नया निर्माण नहीं होगा।शीर्ष कोर्ट ने अनिता कंडवाल की ओर से दाखिल याचिका पर विचार करते हुए इस मामले को स्वत: संज्ञान मामले के तौर पर आगे बढ़ाने के लिए इसका दायरा बढ़ाया है। सीजेआई ने कहा कि हमें जो बात चौंकाने वाली लगती है, वह ये कि जंगल की जमीन पर कब्जा होता रहा, लेकिन उत्तराखंड राज्य और उसके अधिकारी मूक दर्शक बने रहे।मामला खतरनाक कैसे?उत्तराखंड में वन कवर पहले से कम हो रहा है। ऐसे अतिक्रमण से जंगल सिकुड़ रहे हैं, जो जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं को बढ़ावा देते हैं। कोर्ट की सख्ती से बड़े पैमाने पर कार्रवाई की उम्मीद है। सीजेआई ने अगली सुनवाई 5 जनवरी 2026 तय की है। यह मामला उत्तराखंड की नाजुक हिमालयी इकोलॉजी से भी जुड़ा है। वन अतिक्रमण से भूस्खलन, बाढ़ और जैव विविधता को भारी नुकसान हो रहा है।”



