पानी की बर्बादी रोकने में प्रदेश का सरकारी तंत्र नाकाम, लगातार गिर रहा है जलस्तर

भूगर्भ जल दोहन में भारत दुनिया में नंबर वन
अकेले यूपी कर रहा बीस फीसदी निकासी
एनजीटी में भी कई बार उठ चुका है मामला

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। 250 लाख हेक्टेयर मीटर भूगर्भ जल हर साल जमीनी स्रोतों से निकाल कर भारत दुनिया में नंबर वन है। वहीं इस भूजल दोहन का लगभग 20 फीसदी सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही निकाला जा रहा है। पानी का गिरता स्तर और उसकी बर्बादी को रोक पाने में यूपी का सरकारी तंत्र पूरी तरह फेल हो चुका है। कानूनी व्यवस्थाएं भी ध्वस्त हो चुकी हैं। नतीजतन शहर से गांव तक भूगर्भ जल का अंधाधुंध दोहन बेरोकटोक जारी है। बीते दो दशकों में भूजल दोहन पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र व राज्य स्तर पर जो भी प्रयास किए गए, वह फिलहाल हाशिए पर ही हैं।
कृषि के साथ-साथ पेयजल, उद्योग, निर्माण कार्य व व्यवसायिक क्षेत्रों की बढ़ती बेहिसाब मांग से जमीनी जल भंडारों का दोहन भी बेलगाम हो चुका है। साथ ही पानी निकालने की नई प्रौद्योगिकियों ने इसमें आग में घी का काम किया है। हकीकत यह है कि कृषि से लेकर उद्योगों, व्यावसायिक व समस्त निर्माण कार्यों में भूजल को मुफ्त का संसाधन मानकर चौतरफा दोहन हो रहा है। वैज्ञानिकों की माने तो भूजल के अंधाधुंध दोहन से भूजल का स्तर जिस गहराई पर पहुंच गया है, वहां से उसकी वापसी तकरीबन असंभव है। भले ही हम क्यों न अरबों खर्च करके भूजल संरक्षण के कितने भी प्रयास क्यों न कर लें। शायद यही कारण है कि दुनिया में भूजल दोहन के पैमाने पर हम नंबर एक पर हैं। वहीं उत्तर प्रदेश भी हर साल करीब 46 लाख हेक्टेयर मीटर भूजल का दोहन कर पूरे देश में अव्वल बना हुआ है।

किसी विभाग के पास नहीं लेखा-जोखा

भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक गैर कानूनी ढंग से किए जा रहे भूजल दोहन का वास्तविक आंकड़ा चौंकाने वाला हैं। विडंबना है कि शहरों, ग्रामीण क्षेत्रों, उद्योगों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में सबमर्सिबल बोरिंग व निजी नलकूपों द्वारा बेरोकटोक किए जाने वाले भूजल दोहन का लेखा-जोखा सरकार के किसी विभाग के पास नहीं है। एनजीटी में भी यह मामला कई बार उठ चुका है। बावजूद इसके दोहन के असली तस्वीर की जानकारी जिम्मेदार महकमों को नहीं है।

बढ़ते जा रहे हैं संकटग्रस्त क्षेत्र

भूगर्भ जल आंकलन के अनुसार 2013 में जहां देश में कुल 1968 विकासखंड अतिदोहित, क्रिटिकल व सेमी क्रिटिकल श्रेणी में थे, उनकी संख्या 2017 के आकलन में बढक़र 2471 हो गई है । जबकि उत्तर प्रदेश में 2013 में ऐसे विकास खंडों की संख्या कुल 217 थी, जो 2017 में बढक़र 290 हो गई है। साफ है कि अंधाधुंध दोहन से संकटग्रस्त विकास खंडों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। बढ़ते भूजल दोहन का ही परिणाम है कि प्रदेश के 822 विकास खंडों में से 70 फीसद में भूजल स्तर में लगातार गिरावट हो रही है। कई शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में तो एक से दो मीटर कि प्रतिवर्ष चिंताजनक गिरावट हो रही है। केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा 10 शहरों का आंकलन किया गया, जिसमें लखनऊ ,कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी सहित नौ शहर अति दोहित पाए गए, जबकि आगरा शहर क्रिटिकल श्रेणी में सूचीबद्ध है।

कृषि क्षेत्र में बेहिसाब दोहन

कहने को उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादकता में देश में अपना प्रमुख स्थान बनाए हुए हैं। परंतु इसका खामियाजा भूजल स्रोतों को उठाना पड़ रहा है। देश में हो रहे कुल भूजल दोहन का 16 प्रतिशत हिस्सा यानी 41 लाख हेक्टेयर मीटर भूगर्भ जल सिंचाई के लिए हर साल प्रदेश में निकाला जा रहा है और लगातार बढ़ते सिंचाई नलकूपों के साथ इसमें बढ़ोतरी हो रही है। भयावह स्थिति यह है कि वर्षा जल से हर साल प्राकृतिक रूप से भूगर्भ जल भंडारों में 39 लाख हेक्टेयर मीटर ही भूजल भंडारों में रिचार्ज हो पा रहा है।

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