क्या चिराग के साए में बढ़ेगा तेजस्वी का तेज

नई दिल्ली। लोक जनशक्ति पार्टी के दिवंगत संस्थापक रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान पांच जुलाई से आशीर्वाद यात्रा पर रवाना होने जा रहे हैं। चिराग पासवान का यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब लोक जनशक्ति पार्टी टूट गई है और उनके सांसद चाचा पशुपति पारस ने उनके खिलाफ बगावत कर दी है।
चिराग पासवान की आशीर्वाद यात्रा काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पहला मौका होगा जब चिराग पासवान रामविलास पासवान की गैरमौजूदगी में अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने की कोशिश करेंगे। यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके जरिए चिराग पासवान लोगों को यह संदेश भी भेजना चाहेंगे कि वह रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत के सही वारिस हैं।
हालांकि चिराग की आशीर्वाद यात्रा से पहले बिहार के राजनीतिक गलियारों में राजद नेता तेजस्वी यादव के बयान से हलचल तेज हो गई है। इस समय जब चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग पासवान के बीच चुनाव आयोग में यह मामला चल रहा है कि लोक जनशक्ति पार्टी को किसे हाथ में देना चाहिए, इसी बीच तेजस्वी यादव ने चिराग पासवान को महागठबंधन में शामिल होने का न्योता दिया है।
हाल ही में लोक जनशक्ति पार्टी में हुए हंगामा के बीच राजद के कई नेताओं ने चिराग पासवान को तेजस्वी से हाथ मिलाने की सलाह दी थी। अब तेजस्वी के खुलेआम चिराग को महागठबंधन में शामिल होने की पेशकश के बारे में सवाल उठ रहा है कि चिराग पासवान तेजस्वी के लिए इतने खास क्यों बन गए हैं?
लोक जनशक्ति पार्टी के लिए पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच दावे की लड़ाई चुनाव आयोग में चल रही है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि ज्यादातर लोग चिराग पासवान के समर्थन में नजर आते हैं। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग ने अकेले दम पर पार्टी का नेतृत्व किया और उनकी पार्टी को करीब 26 लाख वोट मिले और उनका एक उम्मीदवार भी जीत गया। लोक जनशक्ति पार्टी 9 सीटों पर दूसरे नंबर पर आई।
आशीर्वाद यात्रा के जरिए चिराग बिहार के दलित वोट बैंक को अपने पक्ष में मजबूत करने की कोशिश करेंगे। रामविलास पासवान भी बिहार की राजनीति में हमेशा महत्वपूर्ण रहे क्योंकि 6 फीसद पासवान वोट पर लगातार उनका कब्जा बना रहा। तेजस्वी जानते हैं कि रामविलास पासवान की राजनीतिक विरासत के वारिस चिराग हैं और बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग ने साबित कर दिया कि वह भी तेजस्वी की तरह भीड़ जुटाने में सक्षम हैं।
चिराग पासवान की ताकत कितनी है, यह उन्होंने 2020 के विधानसभा चुनाव में दिखाया जब उन्होंने जनता दल यूनाइटेड को कई सीटों का नुकसान पहुंचाया। जिसकी वजह से नीतीश कुमार की पार्टी सिर्फ 43 सीटें ही जीत सकी। इस बारे में राजनीतिक विशेषज्ञ अभय मोहन झा ने कहा कि जमीनी हकीकत यह है कि लोग चिराग को रामविलास पासवान का असली राजनीतिक वारिस मानते हैं। चिराग की आशीर्वाद यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है। तेजस्वी जानते हैं कि पासवान का 6 फीसद वोट बैंक चिराग के पास है। ऐसे में सवाल सिर्फ इतना उठता है कि चिराग पासवान बिहार से अपना कनेक्शन बनाए रख सकते हैं या नहीं।
2020 के चुनाव में तेजस्वी ने साबित कर दिया है कि मुस्लिम और यादव मतदाता अब भी राजद के साथ खड़े हैं। ऐसी स्थिति में अगर चिराग पासवान महागठबंधन में शामिल होते हैं तो फिर उनकी ताकत कई गुना बढ़ जाएगी। राजद के पास अभी भी 17 प्रतिशत मुस्लिम और 16 प्रतिशत यादव वोट बैंक है और ऐसी स्थिति में अगर 6 प्रतिशत पासवान वोट बैंक को जोड़ दिया जाए तो उन 39 प्रतिशत वोट बैंक के साथ वह 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में एनडीए को हरा सकता है।
अगर चिराग पासवान 6 प्रतिशत पासवान वोटों के साथ महागठबंधन में शामिल होते हैं तो फिर इसका असर बिहार के 16 फीसद दलित वोट बैंक पर पड़ेगा। माना जा रहा है कि अगर चिराग महागठबंधन में शामिल होते हैं तो फिर एक बड़ा दलित वोट बैंक महागठबंधन को वोट दे सकता है। बिहार में जनता दल यूनाइटेड और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (एमएल) भी दलित वोट बैंक के दावेदार के रूप में खुद को दावेदार होने का दावा करते हैं। बिहार में खुद को मजबूत करने के लिए बीजेपी अति पिछड़ों के साथ दलित राजनीति भी करती है।
तेजस्वी और चिराग दोनों इस बात पर सहमत हैं कि नीतीश कुमार का यह आखिरी कार्यकाल है और 2025 के विधानसभा चुनाव में युवा नेता चुने जाएंगे। तेजस्वी इस बात से भी परेशान हैं कि 2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन और एनडीए की जीत में फैसला सिर्फ 12000 वोटों से हुआ था।
अगर चिराग अपनी महत्वाकांक्षा पर अंकुश लगाते हैं और तेजस्वी को कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की तरह नेता मानते हैं तो 2025 में तेजस्वी और चिराग बिहार में एनडीए को तबाह कर सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक तेजस्वी और चिराग का यह भी मानना है कि उनका पहला मकसद पुरानी पीढ़ी के नेताओं को राजनीति से दूर करना है।
पिछले दिनों लोक जनशक्ति पार्टी में मची उथल-पुथल को देखकर जनभावना यह है कि यह सब नीतीश कुमार के इशारे पर हुआ है और भाजपा इस खेल में शामिल थी। हाल ही में चिराग पासवान ने भी पार्टी में टूट के संबंध में बीजेपी के बारे में बयान दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि बीजेपी ने उन्हें अधर में छोड़ दिया। ऐसी स्थिति में तेजस्वी और चिराग के दुश्मन वही हैं- नीतीश कुमार। तेजस्वी जरूर चाहते हैं कि चिराग पासवान उनसे हाथ मिलाएं ताकि दोनों अपने साझा दुश्मन के खिलाफ मिलकर लड़ सकें।

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