सीएम की सोशल मीडिया में काम कर रहे नौजवान की आत्महत्या से उठे सवाल, कैसे चल रहा था फर्जीवाड़ा

  • फर्जी दस्तावेजों पर थी दोषियों की मान्यता, कार्रवाई की मांग
  • प्रदेश सरकार की सोशल मीडिया के कर्मचारी पार्थ ने किया सुसाइड, लिखा, यह हत्या है
  • विपक्ष ने सरकार पर साधा निशाना, कहा हाईकोर्ट के सिटिंग जज से करायी जाए जांच
  • बुद्धजीवियों और पत्रकारों ने भी उठाये सवाल, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग
  • सूचना विभाग में जमकर चल रहा भ्रष्टïाचार का खेल करोड़ों में हायर की गई थी पीआर कंपनी
4पीएम न्यूज नेटवर्क. लखनऊ। योगी सरकार की सोशल मीडिया देखने वाली एक निजी कंपनी के कर्मचारी पार्थ श्रीवास्तव की मौत मामले ने तूल पकड़ लिया है। विपक्ष, बुद्धिजीवी और पत्रकारों ने इस मामले पर सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। सभी ने इस मामले की जांच की मांग करते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। जाहिर है अगर मुख्यमंत्री की सोशल मीडिया का एक नौजवान आत्महत्या कर रहा है तो सूचना विभाग में कुछ बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा चल रहा है। इस मामले ने तब तूल पकड़ लिया जब सोशल मीडिया में पार्थ का वह ट्वीट वायरल हुआ, जिसमें उसने अपना सुसाइड नोट पोस्ट कर लिखा कि मेरी आत्महत्या एक कत्ल है। पार्थ ने अपनी आत्महत्या के लिए अपने सीनियर पुष्पेंद्र को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने एक महिला सहकर्मी शैलजा का पक्ष लेने का आरोप भी पुष्पेंद्र पर लगाया है। कुछ देर बाद ही यह ट्वीट डिलीट कर दिया गया। पार्थ ने इस ट्वीट में सरकार के एक अधिकारी को टैग भी किया था। सवाल यह है कि पार्थ का ट्वीट किसने डिलीट किया? पार्थ की बहन का आरोप है कि पुलिस ने पार्थ का मोबाइल कब्जे में लिया था, लिहाजा पुलिस ट्वीट डिलीट कर सकती है। इस मौत के बाद सूचना विभाग में बड़े खेल का खुलासा भी हुआ है। दरअसल कई करोड़ रुपये में एक पीआर एजेंसी को हायर किया गया था। फिर टेंडर किया गया। टेंडर भी कई बार कैंसिल किया गया। करोड़ों के खेल सूचना विभाग में हो रहे हैं और अब यह खुलासा हो रहा है कि राज्य स्तर की मान्यताएं ऐसे-ऐसे लोगों को बांट दी गई है जो पत्रकार नहीं हैं। सोशल मीडिया की एक लंबी चौड़ी टीम बनायी गई है। उसमें कई अखबार के संवाददाता जो हट गए है या हटवाए गए हैं उनको सोशल मीडिया की टीम में तैनात किया गया है। हालत यहां तक पहुंच गयी है कि वहां के लोग अब सुसाइड कर रहे हैं। यह सब तब हो रहा है जब खुद मुख्यमंत्री के पास सूचना विभाग है।
पैसे लेकर बांटी जा रही राज्य स्तर की मान्यता
सूत्रों से पता चला कि राज्य स्तर की मान्यताएं ऐसे लोगों को बांट दी गई जो इसके काबिल तक नहीं थे। यही नहीं मान्यता की फीस एक लाख तय कर दी। उनको मान्यता नहीं दी गई जो सरकार के खिलाफ बोलते हैं। हालत यह है कि जो मान्यता प्राप्त पत्रकारों की संख्या ढाई सौ तक होती थी, उसकी संख्या एक हजार कर दी गई। सोशल मीडिया में तैनात लोगों का मान्यता से क्या मतलब है लेकिन सूचना विभाग मुख्यमंत्री की छवि को तार-तार करने में जुटा है।

घटना दुखद है। जो ट्ïवीट उस नौजवान ने किया, उस ट्ïवीट को भी पुलिस अधिकारियों ने डिलीट कर दिया है। अखिर किसकीशह पर यह किया गया। मुख्यमंत्री के कार्यालय में यह स्थिति है। इस तरह की प्रताड़ना है तो निश्चित तौर से यह अपने आप से उत्तर प्रदेश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बात है। अविलंब दोषियों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। जिन लोगों के नाम लिया है, उन लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हो।
अजय कुमार लल्लू, प्रदेश अध्यक्ष, कांग्रेस
कोई सीएम योगी आदित्यनाथ के दफ्तर से जुड़ा हो और उत्पीड़न के चलते खुदकशी कर ले तो ऐसी मौत की परतें खुलनी चाहिये। इलाहबाद हाईकोर्ट तुरंत पार्थ श्रीवास्तव की मौत की जांच सीबीआई को दें। पार्थ के मोबाइल की सारी रेकार्डिंग को डीजीपी कब्जे में लें। कानून की साख तभी है जब कारवाई ऊपर से शुरू हो।
दीपक शर्मा, मैनेजिंग एडिटर, आईएनडी संवाद
सीएम सोशल मीडिया में हुई प्रताड़ना से तंग आकर पार्थ श्रीवास्तव ने आत्महत्या कर ली। अपना सुसाइड नोट ट्वीट किया और सूचना निदेशक को टैग किया। पुलिस द्वारा पार्थ की बॉडी और फोन जब्त करने के बाद उसका ट्वीट अचानक डिलीट कर दिया गया। ऐसा किसके ऑर्डर पर हुआ? जांच का विषय है।
रोहिणी सिंह, वरिष्ठï पत्रकार
आत्महत्या करने वाले बच्चे की बहन ने बड़ा आरोप लगाया है। बेटी ने बताया की पार्थ का फोन पुलिस के पास था। पुलिस बताए कि उसका सुसाइड लेटर किसने ट्विटर से डिलीट किया? इस प्रकरण की गम्भीरता से जांच होनी चाहिए। सबूत मिटाने का प्रयास शर्मनाक है। सभी आरोपी तत्काल गिरफ्तार किए जाएं।
सूर्य प्रताप सिंह, पूर्व आईएएस
घटना से साफ है कि मुख्यमंत्री दफ्तर में सोशल मीडिया का दुरुपयोग हो रहा है। कर्मचारियों का शोषण हो रहा है। प्रदेश को गुमराह करने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जा रहा है। मुख्यमंत्री दफ्तर में सूचना विभाग की दो बड़े अधिकारियों की अहम की लड़ाई में छोटे कर्मचारी पिस रहे हैं। ये आत्महत्या नहीं, हत्या है। किसी हाईकोर्ट के सिटिंग जज से इसकी जांच होनी चाहिए। दोषियों को सजा मिलनी चाहिए।
उदयवीर सिंह, प्रवक्ता, सपा
मुख्यमंत्री के सोशल मीडिया शाखा में तैनात पार्थ श्रीवास्तव ने आत्महत्या नहीं, बल्कि उनकी हत्या की गई है। उनका सुसाइड नोट इस बात का सबूत है। उसने प्रताड़ना से तंग आकर ऐसा कदम उठाया। जो भी उसकी मौत के जिम्मेदार हंै उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। साथ ही मुख्यमंत्री की सोशल मीडिया का जो प्रदेश में दुरुप्रयोग किया जा रहा, उसे रोका भी जाना चाहिए।
सतीश श्रीवास्तव, प्रदेश महासचिव पूर्वांचल विंग, आप

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