यूपी से बाहर भी बढ़ रहा योगी आदित्यनाथ का कद
भाजपा के लिए 2002 जैसा टर्निंग पॉइंट होगा यूपी चुनाव
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों को लेकर सत्ताधारी भाजपा पूरी तैयारी में जुटी है। एक तरफ यह चुनाव 2024 में भाजपा की केंद्र वापसी के लिहाज से अहम माना जा रहा है तो वहीं सीएम योगी के राजनीतिक भविष्य के लिए भी यह बेहद अहम है। यह चुनाव भाजपा में वैकल्पिक नेतृत्व तैयार करने के लिए भी बेहद अहम है। एक तरफ यूपी चुनाव देश में राजनीति की आने वाली दिशा तय करेगा तो वहीं भाजपा के भीतर भी उठ रहे कई सवालों के जवाब उत्तर प्रदेश के नतीजों से मिल सकते हैं। दरअसल, 2022 में एक तरह से भाजपा के भीतर 2002 की स्थिति दोहराने वाली है। बात यह है कि 2002 में गुजरात विधानसभा के चुनावों ने मोदी के कद को बढ़ा दिया था और उनकी राष्टï्रीय राजनीति में एक तरह से एंट्री की शुरुआत हो चुकी थी। अब ठीक 20 साल बाद फिर से ऐसी ही स्थिति पैदा हुई है, जब योगी जीते तो वह यूपी के बाहर भी एक राष्टï्रीय नेता के तौर पर उभरते दिख सकते हैं। साथ ही भाजपा में मोदी के बाद कौन के सवाल का जवाब भी आंशिक तौर पर मिल सकता है।
हाल ही में दिल्ली में हुई भाजपा की राष्टï्रीय कार्यकारिणी बैठक में यूपी के सीएम योगी ने राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया था। यह पहला मौका था, जब राष्टï्रीय स्तर पर सीएम योगी को इस तरह से सम्मान मिला था। अब यदि वह जीत हासिल करते हैं तो फिर उनका कद जनता के बीच भी बढ़ता दिखेगा। भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच यूपी में अकसर मोदी-योगी-जय श्री राम का नारा लगता दिखता है। साफ है कि मोदी के बाद यूपी में भाजपा के कार्यकर्ता योगी को ही देखते हैं, लेकिन इस चुनाव के नतीजे बता देंगे कि यह नारा कितना सही और गलत साबित होता है।
कार्यकारिणी बैठक में योगी को प्रस्ताव पेश करने का मौका दिए जाने को लेकर भी वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि इसमें गलत क्या है। सीएम योगी देश की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य के मुख्यमंत्री हैं। वह अपने कामों के चलते लोकप्रिय भी हैं। इसलिए उन्हें यह मौका दिया गया था। उनके इस बयान से साफ संकेत दिया गया कि योगी आदित्यनाथ का कद अब यूपी से बाहर भी बढ़ रहा है।
2002 के मोदी और 2022 के योगी में क्या हैं समानताएं
दरअसल 2002 के मोदी और योगी की सबसे बड़ी समानता यह है कि तब मोदी के चेहरे पर पहली बार चुनाव लड़ा गया था क्योंकि उससे पहले उन्हें मिड टर्म में सीएम बनाया गया था। 2017 में भले ही योगी सीएम बने थे और 5 साल का कार्यकाल पूरा किया है, लेकिन तब राज्य में मुख्यमंत्री के तौर पर किसी का नाम तय नहीं था। ऐसे में यह पहला मौका है, जब उनके चेहरे पर चुनाव लड़ा जा रहा है। यदि इस बार जीत होती है तो इसका बड़ा श्रेय उन्हें भी मिलेगा और यह उनके कद को यूपी और देश की राजनीति में बढ़ाने वाला होगा।