‘आजकल के लेखक भावनाओं पर देतें है ध्यान’

  • समसामयिक विषयों पर साहित्यकारों ने रखे विचार, कई सत्रों में साहित्य पर हुई चर्चा
  • राजेन्द्र यादव स्मृति समारोह ‘हंस साहित्योसव’ संपन्न

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। 15 व 16 नवंबर को बीकानेर हाउस, नई दिल्ली में राजेन्द्र यादव स्मृति समारोह यानी ‘हंस साहित्योसव’ में हंसका तीसरा साहित्योत्सव सम्पन्न हुआ। साहित्योत्सव के आरंभ में वरिष्ठ साहित्यकार उषा प्रियंवदा ने वक्तव्य दिया। अपनी साहित्यिक जीवन यात्रा में राजेन्द्र यादव एवं मन्नू भंडारी की प्रेरणा और प्रोत्साहन याद करते हुए उन्होंने संक्षेप में सुचिंतित विचारों को रखा, उन्होंने कहा कि -आज कल की लेखिका परिपाटी नहीं बल्कि अपनी भावना की कद्र करती हैं और अपने मन में सामाजिक संबधों को लेकर कोई अपराध बोध नहीं रखतीं। राजेन्द्र यादव और मन्नू भंडारी के रचनाकर्म पर मधुरेश की लिखी एवं वाणी प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक ‘तोता मैना की कहानी’ का लोकार्पण उषा प्रियंवदा, संजय सहाय और प्रियदर्शन ने किया।
पहले सत्र में 19 वीं सदी के बाद का हिंदी साहित्य-कितने ठहराव, कितने बदलाव पर वरिष्ठ लेखक, उपन्यासकार विभूति नारायण राय, आलोचक विनोद तिवारी एवं संजीव कुमार ने विचारोत्तेजक चर्चा की। इस सत्र का संचालन वैभव सिंह ने किया। दूसरे सत्र में प्रख्यात कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी, वरिष्ठ लेखक, समीक्षक सुधीश पचौरी, गोपाल प्रधान, गरिमा श्रीवास्तव ने समकालीन हिंदी साहित्य – प्रभावित करतीं विचारधाराएं और दर्शन पर गंभीर चर्चा की। संचालन पल्ल्व ने किया। तीसरे सत्र में बाजारवाद की अंधी गली और हिंदी साहित्य पर सुपरिचित लेखिका मृदुला गर्ग, नई वाली हिंदी के चर्चित लेखक सत्य व्यास, आलोचक देवेन्द्र चौबे और रवि सिंह ने महत्त्वपूर्ण चर्चा की। इस सत्र का संचालन फहीम अहमद ने किया।

मन्नू की बेटियां नाट्य ने मन मोहा

परिचर्चा व विमर्श सत्र के बाद शाम में प्रियदर्शन लिखित नाट्य कृति मन्नू की बेटियां का एनएसडी के पूर्व निदेशक ख्यात रंग निर्देशक देवेन्द्र राज अंकुर के निर्देशन में मंचन हुआ। मंच संचालन आदित्य शुक्ल एवं आभार प्रकाश हंस की प्रबंध निदेशक रचना यादव ने किया। साहित्य, पत्रकारिता, रंगमंच, सिनेमा, कला और अन्य विविध क्षेत्रों के लेखकों, बुद्धिजीवियों, हंस प्रेमी साहित्यरसिक पाठकों सहित युवाओं की मजबूत उपस्थिति रही। हंस साहित्योत्सव के दूसरे दिन 16 नवंबर को भी अनेक विचारोतेजक एवं मनोरंजक सत्र हुए।इस दो दिवसीय आयोजन के दौरान विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी साहित्य तथा सिनेमा तथा उनके सामाजिक प्रभावों पर बातचीत हुई। साहित्य तथा सिनेमा से जुड़े वक्ताओं ने अलग-अलग विषयों पर अपने विचार व्यक्त किए।

ओटीटी में गालियों पर भी चर्चा

कहानी की मांग या मसाला’ विषय पर आयोजित सत्र काफी गहमा गहमी से भरा रहा। इस सत्र में वरिष्ठ कथाकार और विचारक उदय प्रकाश, फिल्मकार तिग्मांशु धूलिया, टीवी पत्रकार दिबांग तथा कथाकार वैभव विशाल ने हिस्सा लिया। इस सत्र का संचालन इरफ़ान ने किया। इस सत्र में उपस्थित वक्ताओं ने कहा कि ओटीटी में जो दिखाया जा रहा है वह दरअसल हमारे समाज का ही एक रिफ्लेक्शन है। किंतु वक्ताओं ने इस पर भी बात रखी कि इन गालियों के औचित्य पर ध्यान दिया जाना चाहिए, कहीं या सिफऱ् लोगों को आकर्षित करके पैसा कमाने का जरिया तो नहीं बन रहे हैं।

‘सोशल मीडिया या एसोशल मीडिया’

‘सोशल मीडिया या एसोशल मीडिया’ विषय पर आयोजित सत्र में वरिष्ठ लेखिका ममता कालिया, वरिष्ठ कथाकार और पत्रकार विष्णु नगर, मीडिया विशेषज्ञ विनीत कुमार तथा कवि अविनाश मिश्र ने अपने विचार व्यक्त किए। इसका संचालन किंशुक गुप्ता ने किया। ममता कालिया ने कहा कि सोशल मीडिया की बुराइयां ही देखी जाती हैं जबकि इससे लोगों को बहुत लाभ हुए हैं। सोशल मीडिया ने लोगों से जोडऩे के और समाज को देखने समझने के नए तरीके दिए। विनीत कुमार ने कहा कि कुछ भी ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होता बहुत सारा ग्रे एरिया इस सोशल मीडिया में भी है। ओम थानवी ने कहा कि ओटीटी के जरिए सिनेमा घर-घर तक पहुंच गया है, लेकिन अभी भी उच्च कोटि की फिल्में लोगों तक उपलब्ध नहीं है। विश्व स्तरीय निर्देशकों की फिल्में आज भी हमें खोजनी पड़ती हैं। सिनेमा में अश्लीलता और सेंसरशिप का मुद्दा भी उठा जिस पर अविनाश दास और शुभ्रा गुप्ता ने अपनी बात कही।

Related Articles

Back to top button