तीन महीने में ही भाजपा सरकार नाकाम: हारुन

- कांग्रेस ने आप पर भी साधा निशाना
- पूर्व मंत्री बोले- सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त करें सीएम रेखा
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। प्रदेश कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री हारुन यूसूफ ने दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर भाजपा सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया। पार्टी कार्यालय में उन्होंने कहा, आम आदमी पार्टी और वर्तमान भाजपा सरकार दिल्ली की बढ़ती आबादी की जरूरतों के अनुसार परिवहन सुविधा मुहैया कराने में विफल रही है। यूसूफ ने कहा, जहां दिल्ली को 12-14 हजार बसों की जरूरत है, वहां भाजपा सरकार ने पिछले छह महीनों में केवल 400 छोटी इलेक्ट्रिक बसें सडक़ों पर उतारी हैं, जबकि पिछले डेढ़ वर्ष में 2400 बसें सेवा से बाहर हो चुकी हैं और मार्च 2026 तक 1700 और हटाई जानी हैं।
उन्होंने बताया, 2012-13 में प्रतिदिन डीटीसी बसों में 46.77 लाख लोग सफर करते थे, जो 2023-24 में घटकर 25 लाख रह गए। यूसूफ ने कहा कि 2022 की सीएजी रिपोर्ट के अनुसार, डीटीसी घाटा 60,750 करोड़ रुपये था, जो 2025 में 65,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है। उन्होंने मांग की है कि भाजपा सरकार डीटीसी का कर्ज माफ कर इसे पुन: सशक्त बनाए, जैसे कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में कई बार किया गया था। वरिष्ठ प्रवक्ता डॉ. ओनिका मेहरोत्रा ने कहा, महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा को खत्म करने की योजना के तहत सहेली कार्ड के नाम पर आधार और दस्तावेज मांगना अनुचित है। उन्होंने पिंक बसों की मांग की। इससे पहले आप के प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने कहा था कि भाजपा के पास एक ही तरीका है कि योजना में भ्रष्टाचार हो रहा था इसलिए बंद कर रहे हैं। अब वह डीटीसी बसों में गरीब महिलाओं को दी जाने वाले पिंक टिकट में घोटाला बताकर फ्री बस सेवा से वंचित करना चाहती है। सवाल यह है कि पिंक टिकट में घोटाला कैसे हो सकता है। डीटीसी बसों में महिलाओं को मुफ्त टिकट मिलता है।
दिल्ली को कर्ज में डूबो रही सरकार : देवेंद्र यादव
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष देवेंद्र यादव ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि भाजपा दिल्ली को विकसित नहीं कर रही बल्कि कर्ज में डूबा शहर बना रही है। केंद्र सरकार की योजना के तहत दिल्ली सरकार ने 600 करोड़ रुपये के कर्ज का प्रस्ताव पर्यटन परियोजनाओं के लिए भेजा है जबकि झुग्गी-बस्तियों में आवास, साफ पानी और राशन जैसी बुनियादी जरूरतें अभी भी अधूरी हैं।



