क्या सरकार की प्रताडऩा ने ली सत्यपाल मलिक की जान!

- जम्मू कश्मीर के पूर्व गवर्नर का निधन
- किसान आंदोलन पुलवामा हमले, पेगासस जासूसी मुद्दे पर उन्होंने जो कुछ कहा, वह सत्ता के लिए राजद्रोह बन गया!
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
श्रीनगर। शिबू सोरेन की मौत की खबर से सन्न देश को एक और महान नेता की मौत की खबर ने हिला कर रख दिया है। जम्मू कश्मीर के पूर्व गवर्नर सत्यपाल मलिक का निधन हो गया है। 79 साल के सत्यपाल मलिक का इलाज दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में चल रहा था। सत्यपाल मलिक भी किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे। तबीयत खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जहां आज उपचार के दौरान उनकी मौत की खबर सामने आयी। उनके निधन की खास बात यह रही कि सत्यपाल मलिक की अगुवाई में 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया था और आज 5 अगस्त 2025 के ही दिन सत्यपाल मलिक का निधन हुआ। देश की राजनीति की लगभग हर विचारधारा के हिस्सेदार रहे हैं सत्यपाल मलिक के बीजेपी से रिश्ते बहुत ही खराब दौर से गुजर रहे थे। उनकी मौत के बाद सवाल यही उठ रहा है कि क्या सरकार की प्रताडऩा ने सत्यपाल मलिक की जान ले ली?
लंबा राजनीतिक कॅरियर
सत्यपाल मलिक करीब 57 साल से राजनीति में थे। उन्होंने अपने राजनीति कॅरियर में एक बार लोकसभा चुनाव और एक बार विधानसभा चुनाव जीता था। सत्यपाल मलिक वर्ष 1968 में मेरठ कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष बने थे। इस तरह छात्र जीवन में ही उन्होंने राजनीति में एंट्री कर ली थी, लेकिन उनका औपचारिक सियासी सफर वर्ष 1974 में शुरू हुआ। उन्होंने चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय क्रांति दल जॉइन की थी, जो बाद में राष्ट्रीय लोकदल कहलाई।
सत्यपाल मलिक के वो बयान जो बने सरकार के गले की फांस
- कृषि कानूनों पर उनकी राय- किसान आतंकवादी नहीं, इस देश की आत्मा हैं। सरकार माफी मांगे और कानून वापस ले।
- पुलवामा हमले पर बोले- पुलवामा हमले पर उन्होंने कहा था कि हमला सरकार की लापरवाही से हुआ। मैंने खुद प्रधानमंत्री को बताया कि सेना रोड से ट्रैवल न करे, एयरलिफ्ट की मांग की गई थी, पर मंजूरी नहीं मिली।
बीमारी से या फिर किसी दूसरे कारण से मरे सत्यपाल मलिक?
सत्यपाल मलिक की मौत का आधिकारिक बुलेटिन चाहे जो कहे लेकिन असलियत यह है कि उनका दिल टूट चुका था सत्ता की निष्ठुरता से, लोकतंत्र की चुप्पी से और अपने ही बनाए संगठन के प्रतिशोध से। जब आपको हर मंच से हटाया जाए हर बयान को तोड़ा-मरोड़ा जाए हर सोशल मीडिया पोस्ट को रिपोर्ट किया जाए तो शरीर नहीं आत्मा मरने लगती है। क्या ऐसा ही कुछ सत्यपाल मलिक के साथ हुआ? यह बड़ा सवाल है जिसका उत्तर शायद अब कभी ही मिल पाए। सत्यपाल मलिक ने बीजेपी और आलाकमान को विभिन्न मंचों के माध्यम से सीधी चुनौती दी और अपने पूछ गये सवालों के उत्तर जानना चाह। उन्होंने कई बार कहा कि जाट मरा जब जानियो जब तेरहीं हो जाए। सत्यपाल मलिक अब नहीं है लेकिन उनके सवाल, उनका राजनीतिक प्रतिरोध अभी बाकी है।
भाजपा विरोध, जीवन के लिए खतरा!
सवाल यही है कि क्या भाजपा का विरोध अब जीवन के लिए खतरा बन गया है? गौरी लंकेश मारी गईं क्योंकि उन्होंने संघ की आलोचना की। स्टेन स्वामी को जेल में मरने दिया गया क्योंकि वे आदिवासियों के लिए खड़े हुए। तो क्या यह मान लिया जाए कि सत्यपाल मलिक की मौत इसलिए हुई कि वह सत्य बोलते थे और उनके बयानों ने पूरे सिस्टम को हिला कर रख दिया था।
जैसा नाम वैसा काम
सत्यपाल मलिक का जैसा नाम था वैसा ही जीवन उन्होंने गुजरा। उन्होंने उच्च पदों पर रहते हुए भी कभी सच से मुह नहीं मोड़ा और हमेशा सच का साथ दिया। शायद यही कारण था कि जम्मू कश्मीर के राज्यपाल के पद पर रहते हुए उनके राजनीतिक रिश्ते बीजेपी आलाकमान से खराब हो गये और उन्हें जीवन के अंतिम दिनों में खराब समय गुजारना पड़ा। किसान आंदोलन, पुलवामा हमले, पेगासस जासूसी और अडानी मुद्दे पर उन्होंने जो कुछ कहा वह सत्ता के लिए राजद्रोह बन गया। वह भाजपा के द्वारा नियुक्त राज्यपाल थे लेकिन जब उन्होंने मोदी-शाह की जोड़ी को आइना दिखाया तो उनके बयान अघोषित आपातकाल में डूब गए। 2019 के पुलवामा हमले में 40 से अधिक सीआरपीएफ जवान शहीद हुए थे। इस मुददे पर सत्यपाल मलिक ने खुलकर कहा- हमला सरकार की लापरवाही से हुआ। मैंने खुद प्रधानमंत्री को बताया कि सेना रोड से ट्रैवल न करे एयरलिफ्ट की मांग की गई थी, पर मंजूरी नहीं मिली।
परिवार में कौन-कौन?
सत्यपाल मलिक 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावड़ा गांव में एक जाट परिवार में जन्मे थे। उन्होंने मेरठ कॉलेज से साइंस में क्चस्ष्ट की। ग्रेजुएशन के बाद रुरुक्च की डिग्री ली। सत्यपाल के पिता का नाम बुध सिंह था। सत्यपाल मलिक जब डेढ़ साल के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया था। सत्यपाल मलिक की पत्नी का नाम इकबाल मलिक और वे टीचर एवं पर्यावरणविद् हैं। सत्यपाल मलिक के बेटे देव कबीर मशहूर ग्राफिक डिजाइनर हैं, जिन्होंने बीयर ब्रांड बीरा का लोगो डिजाइन किया है।
मोदी सरकार की राजनीतिक प्रताड़ना का शिकार हो गये सत्यपाल!
गोवा के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने कुछ सरकारी परियोजनाओं में भ्रष्टाचार की बात की थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने उन पर भी ईडी/सीबीआई जांच की आड़ से दबाव बनाया। भाजपा के प्रवक्ताओं ने उन्हें ‘बेसब्र’ और ‘सठिया गया’ तक कह दिया। यही वह नरमी में लिपटी क्रूरता है जिसकी वजह से सत्यपाल मलिक अंत तक अकेले रहे। सत्यपाल मलिक ने जो बोला जो लिखा जैसा जीवन जिया वो अब सत्ता के खिलाफ एक ऐतिहासिक दस्तावेज बन गया है।
बेदाग रहा कैरियर
सत्यपाल मलिक समाजवादी विचारधारा रखने वाले व्यक्ति थे। वे चौधरी चरण सिंह के करीबी थे। उनके समाजवादी और किसान-केंद्रित विचारों से प्रभावित थे। वे आजीवन जाट समुदाय के मुद्दों को महत्व देते रहे। इस तरह, छात्र राजनीति से लेकर गवर्नर बनने तक उन्होंने राजनीति में अपनी खास जगह बनाई।




