आने वाला है सियासत में भूचाल!

  • एनडीए में फूट के आसार, लोकसभा को भंग करने की मांग
  • देश भर में एसआईआर कराने की मांग
  • पूरे देश में गड़बड़ हैं मतदाता सूचियां
  • महज एक साल पहले ही इन सूचियों से हुआ है लोकसभा का चुनाव
  • राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में खटास बढ़ी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। देश की सियासत इन दिनों उस मोड़ पर पहुंच चुकी है जहां हर दिन नए मोर्चे खुल रहे हैं और पुराने रिश्तों में दरारें साफ दिखने लगी हैं। सत्ता के गलियारों में फुसफुसाहट से लेकर खुलेआम बयान तक सब कुछ इशारा कर रहे हैं कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में खटास बढ़ चुकी है। विपक्ष अब खुले आम आरोप लगा रहा है कि सरकार चोरी के वोटों से बनी है और लोकसभा को तत्काल भंग करने की मांग कर रहा है।
वहीं एनडीए के अपने सहयोगी भी अब असहज हैं और सार्वजनिक मंचों से बयान जारी कर रहे हैं। वह कभी मांस बिक्री रोकने के आदेश पर सवाल उठा रहे हैं तो कभी सांप्रदायिक रंग वाले फैसलों पर पुनर्विचार की मांग करते दिखाई दे रहे हैं। केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवाले ने 15 अगस्त पर मांस बिक्री आदेश की रोक वाले आदेश पर पुनविर्चार की मांग की है। वहीं सांसद अभिषेक बनर्जी ने तत्काल लोकसभा को भंग करने की सिफरिश की है।

एनडीए की सेहत पर सवाल!

एनडीए की राजनीति हमेशा से न्यूनतम साझा कार्यक्रम और सत्ता में भागीदारी के संतुलन पर टिकी रही है। लेकिन हाल के दिनों में यह संतुलन टूटता दिख रहा है। रामदास आठवले जैसे अहम सहयोगी ने मांस बिक्री रोकने के आदेश पर पुनर्विचार की मांग करके संकेत दे दिया कि भाजपा के एकतरफा निर्णय सहयोगियों को नागवार गुजर रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सत्ता के लिए साथ रहना और नीतियों पर एकमत होना दोनों अलग चीजें हैं और एनडीए अब दूसरे मामले में फेल हो रहा है।

आठवाले की बगावत

केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने स्वतंत्रता दिवस पर महाराष्ट्र में मांस बिक्री पर प्रतिबंध के फैसले पर सार्वजनिक नाराजगी जाहिर करते हुए इसे तत्काल वापस लेने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यह निर्णय पूरी तरह सही नहीं है क्योंकि लोगों को अपने खान पान का अधिकार है। आठवले ने तर्क दिया कि 70 प्रतिशत से अधिक लोग मांसाहारी हैं। उन्होंने कहा कि धार्मिक कारणों से प्रतिबंध स्वीकार्य हो सकता है लेकिन 15 अगस्त जैसे राष्ट्रीय पर्व पर यह उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि बाबासाहेब अंबेडकर की जयंती 15 अगस्त और 26 जनवरी को इस तरह के फैसले नहीं होने चाहिए। लोकतंत्र में अनावश्यक बंधन ठीक नहीं है और इस फैसले पर फिर से विचार होना चाहिए। मुझे लगता है कि इसकी जरूरत भी है।

राजनीतिक भूगोल बदलने के संकेत

भारतीय राजनीति में सत्ता गठबंधन अक्सर बाहरी स्थिरता दिखाते हैं लेकिन भीतर ही भीतर समीकरण बदलते रहते हैं। एनडीए के कई सहयोगी दल अपने अपने राज्यों में भाजपा के खिलाफ जमीन तलाश रहे हैं ताकि भविष्य में अकेले खड़े हो सकें। राजनीतिक विश्लेषकों मानना है कि अगले आम चुनाव से पहले एनडीए का स्वरूप आज जैसा है वैसा रहना मुश्किल है। कांग्रेस, तृणमूल, समाजवादी पार्टी, डीएमके, और आम आदमी पार्टी सभी ने एकजुट होकर एसआईआर कि प्रक्रिया और चुनाव आयोग पर जिस तरह से हमला बोला है वह इससे पूर्व में मोदी सरकार के उदय के बाद कभी नहीं बोला गया।

बनर्जी के बयान से चढ़ा तापमान

टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी की लोकसभा भंग करने और देशव्यापी एसआईआर की मांग ने राजनीतिक पारा बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा है कि उच्च नैतिक आधार पर खड़े होने की दिशा में पहला कदम लोकसभा को तत्काल भंग करना है। अभिषेक बनर्जी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है कि विभिन्न राज्यों की मतदाता सूचियां जिनके आधार पर बमुश्किल एक साल पहले यानी 2024 में आम चुनाव हुए थे त्रुटिपूर्ण और अनियमितताओं से भरी हैं। अगर वाकई ऐसा है और अगर भारत सरकार चुनाव आयोग के आकलन से सहमत है तो एक वास्तविक एसआईआर को पूरे देश में कराया जाए और लोकसभा को भंग कर दिया जाए।

देश की जनता के साथ विश्वासघात हुआ है

टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी ने लोकसभा को तत्काल भंग करने की मांग की। बनर्जी ने कहा है कि अगर कोई एसआईआर के विचार का सचमुच समर्थन करता है तो चुनाव आयोग के अपने बयान के अनुसार इस देश के लोगों के साथ विश्वासघात किया गया है। साथ ही अगर नए मुख्य चुनाव आयुक्त सचमुच उतने ही सक्षम हैं जितना दावा किया जा रहा है तो एसआईआर को पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए न कि चुनिंदा चुनावी राज्यों में। टीएमसी नेता ने यह दावा उस समय किया है जब वोट चोरी और हेरफेर के आरोपों को लेकर कांग्रेस सहित विपक्षी दल चुनाव आयोग और सरकार पर हमलावर रुख अपनाए हुए हैं।

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