SIR के खिलाफ 100 सांसद एक साथ देंगे ज्ञानेश कुमार को हटाने की नोटिस, लोकसभा चुनाव से पहले तैयारी में जुटी टीम राहुल
एसआईआर को लेकर विपक्ष के 100 सांसद एक साथ ओम बिरला को नोटिस देने जा रहे हैं। आपको बता दें कि जैसे ही ये खबर सामने आई है हड़कंप मचा गया है, एक ओर जहां ज्ञानेश जी बुरा फंसते हुए दिखाई दे रहे है, वहीं पीएम साहब और उनके चाणक्य जी की भी भयंकर पोल खुलने वाली है।

4पीएम न्यूज नेटवर्क: दोस्तों, देश के 12 राज्यों में हो रहे एसआईआर को लेकर विपक्ष के तेवर लगातार कड़े होते ही जा रहे हैं। एक ओर जहां मामला सुप्रीम कोर्ट में फंसा हुआ है और ज्ञानेश कुमार जी पर आरोप लग रहे हैं कि वो एसआईआर के बहाने विधायिका काम कर अपने आकाओं को मदद पहुंचाने रहे हैं तो वहीं एक दिसंबर से शुरु हो रहे संसद सत्र में ज्ञानेश कुमार के खिलाफ मेगा प्लान भी तैयार है।
एसआईआर को लेकर विपक्ष के 100 सांसद एक साथ ओम बिरला को नोटिस देने जा रहे हैं। आपको बता दें कि जैसे ही ये खबर सामने आई है हड़कंप मचा गया है, एक ओर जहां ज्ञानेश जी बुरा फंसते हुए दिखाई दे रहे है, वहीं पीएम साहब और उनके चाणक्य जी की भी भयंकर पोल खुलने वाली है। 100 सांसदों की नोटिस से क्या कुछ होने जा रहा है और कैसे ज्ञानेश जी बुरा फंसते दिख रहे हैं, ये सबकुछ हम आपको अपनी इस आठ मिनट की रिपोर्ट में बताने वाले है।
दोस्तो, बिहार में एसआईआर और फिर उसके बाद जिस तरह का रिजल्ट आया है उससे विपक्षी खेमे का यह शक और भी मजबूत हो गया है कि एसआईआर बीजेपी को जिताने का एक फंडा है और समूचा विपक्ष न सिर्फ पीएम साहब और उनके चाक्णय जी के बहुत करीबी ज्ञानेश कुमार पर फायर है बल्कि यहां तक कह रहा है कि देश का इलेक्शन कमीशन बीजेपी की बी पार्टी के रुप में काम कर रहा है। हालांकि इसके बाद भी ज्ञानेश जी ने 12 राज्यों में एक साथ एसआईआर कराने की प्रक्रिया शुरु कर दी है।
आपको बता दें कि इसको लेकर विपक्ष के सभी राज्यों में जमकर विरोध हो रहा है। एक ओर जहां बनर्जी बंगाल में एसआईआर को लेकर न सिर्फ ज्ञानेश कुमार को डायरेक्ट लेटर लिखा है बल्कि वो सड़को पर भी उतर आई हैं। और यह हाल सिर्फ पश्चिम बगाल का नहीं है बल्कि तमिलनाडू में भी स्टालिन सरकार इसका विरोध कर रही है। पंजाब में केजरीवाल और भगवंत मान और यूपी में अखिलेश यादव और केरल सहित कांग्रेस सभी राज्यों में विरोध हो रहा है लेकिन न तो ज्ञानेश कुमार और न ही उनके विभाग पर कोई असर पड़ रहा है।
क्योंकि पीएम सहब और उनके चाणक्य जी ने बहुत सोची समझी नीति के तहत ज्ञानेश कुमार को सुपर पावर दे दी है और ये सुपर पावर ऐसाी है कि न तो ज्ञानेश जी कोई हटा सकता है, न तो ज्ञानेश जी को कोई संस्पेड कर सकता है और न ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई हो सकती है और यही वो बात है जो एसआईआर पर सबसे बड़ा सवाल खड़ा कर रही है। आखिर किसी भी नौकरशाह को कोई भी सरकार कैसे इतना बड़ा पावर दे सकती है कि गलती पर भी उसके खिलाफ एफआईआर न हो। गलती पर भी उसके खिलाफ कार्रवाई न हो, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी चाहे तो कुछ न कर सके। सवाल यह है कि क्या इसी एसआईआर के लिए पीएम साहब और उनके चाणक्य जी ने यह सबकुछ किया था। आखिर क्यों साल 2023 में क्यों ऐसा काननू बनाया जा गया, जिसमें एक नौकर शाह चुनाव आयुक्त को सुपर पावर दे दिया। विपक्ष का कहना है कि ये सिर्फ और सिर्फ पीएम साहब और उनके चाणक्य जी की एक सोची समझी रणनीति पहले से थी और इसी की वजह से चीफ इलेक्शन कमिशनर को सुपर पावर दे दी गई।
आपको बता दें कि सिर्फ इतना ही नहीं चुनाव आयुक्त और चीफ इलेक्शन कमिशनर के चुनाव की प्रक्रिया को भी बदल दिया गया और इसके पीछे का मकसद ये था कि अपने पसंद के अफसरों को चुनाव आयुक्त और चीफ इलेक्शन कमिश्नर बनाया जा सके। पहले चीफ इलेक्शन कमिशन को नियुक्त करने में जो कमेटी होती थी, उसमें चीफ जस्टिस, नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री हुआ करते थे लेकिन बाद में मोदी सरकार ने अपने पंसद के लोगों को बनाने के लिए चयन समिति में से चीफ जस्टिस को हटा कर अपना एक मंत्री रख लिया, जिससे यह फायदा हुआ कि प्रधानमंत्री और उनका मंत्री एक साथ होकर अपनी पसंद के अफसर को चुनकर चीफ इलेक्शन कमिशनर बना लें। पहले अगर चीफ जस्टिस सत्ता पक्ष के फैसले पर मोहर नहीं लगाता था तो मामला फंस जाता था लेकिन अब चीफ जस्टिस इस कमेटी से निकाल दिए गए हैं तो ऐसे में मोदी-शाह जिसे चाहेंगे वहीं चीफ इलेक्शन कमिशनर होगा और वही करेगा जो साहब का हुक्म होगा।
क्योंकि न तो चीफ इलेक्शन कमिशन के खिलाफ कार्रवाई होती है, न उसको कोई हटा सकता है, ऐसे में उनके पास अपने हुक्म बजाने की सुपर पावर है लेकिन आपको बता दें कि एक रास्ता है, जिससे इलेक्शन कमिशनर यानि कि ज्ञानेश कुमार जी कि खिलाफ कार्रवाई हो सकती है और वो काम देश के सांसद कर सकते हैं। इसके लिए कुछ जरुरी शर्ते हैं, पहले यह कि कम से कम 100 सांसद या 50 राज्य सभी सदस्य जब एक साथ नोटिस देंगे तो ही ये तय हो सकता है कि महाभियोग का नोटिस तामील होगा और फिर उसके बाद भी लंबी प्रक्रिया हैं। फिर आरोप दाखिल होंगे और उसके बाद उसके लिए पूर्णमत होना चाहिए, फिर एक लोकसभा और राज्य सभा के स्पीकर की ओर कमेटी गठित की जाएगी, जिसमें पूर्व जजेज जांचकर रिपोर्ट देंग, फिर उसके बाद राष्ट्रपति की ओर से हटाया जा सकता है।
लेकिन आपकों बता दें कि कांग्रेस और विपक्ष 100 सदस्यों के साथ मिलकर नोटिस दे सकता है लेकिन बहुमत के आभाव में आगे की कार्रवाई संभव नहीं है। ऐसे में एसआईआर के खिलाफ देश में चल रहे भयंकर हंगामे के बीच महाभियोग की नोटिस देकर विपक्ष अपना विरोध दर्ज करा सकता है। बाद में भले से इसको बीजेपी सिरे अपने सांसदों के साथ मिलकर प्रस्ताव को गिरा दे वो अगल बात हैं लेकिन नोटिस की ज्ञानेश जी के लिए बहुत बड़ा आरोप होगी।
क्योंकि आपको बता दें कि देश में एसआईआर को लेकर विरोध काफी है। अब तक करीब 12 राज्यों में बीएलओ की मौत के समाचार आ चुके है। बिना मलबत देश के करोड़ों लोगों को परेशान किया जा रहा है। जिन राज्यों में चुनाव नहीं हैं वहां एसआईआर बहुत ही आराम से किया जा सकता था, पांच छह महीने का टाइम लेकर आराम से प्रक्रिया चलती और बहुत डाक्यूमेंटेशन न होता तो हर व्यक्ति आसानी से वोटर भी बन जाता और देश की वोटर लिस्ट भी दुरुस्त हो जाती है लेकिन जिस तरीक से एसआईआर में तेजी दिखाई जा रही है, और जिस तरह से बीजेपी के राज्यों में आधार पर डेट ऑफ बर्थ और तमाम डाक्यूमेंट के लेकर पेंच फंसाए जा रहे हैं।
ऐसे में मंशा साफ है कि वोटर्स को दिक्कत हो। साथ ही यूपी के गांेडा से एक मृतक बीएलओ के परिवार की ओर से ओबीसी वोट को काटने को लेकर जो बयान आया है वो भी चौंकाने वाला है। ऐसे में एसआईआर पर कहीं न कहीं तो सवाल जरुर है। और दूसरी सबसे अहम बता यह है कि चुनाव आयोग खुद को विधायिका के तौर पर प्रोजेक्ट कर रहा है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट में अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल ने तगड़ी दलील दी है।
सिंघवी ने कहा, संविधान का अनुच्छेद 324 (चुनावों का नियंत्रण) को अनुच्छेद 327 के साथ मिलाकर पढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि 327 संसद को चुनाव संबंधी कानून बनाने की शक्ति देता है। सिंघवी ने जून 2025 में जारी एक फॉर्म पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें 11-12 तरह के दस्तावेज मांगे गए थे. उन्होंने पूछा, ये नियमों में कहां लिखा है? ऐसा फॉर्म तो सिर्फ डेलिगेटेड कानून से ही आ सकता है। कपिल सिब्बल ने सवाल उठाया कि बीएलओ की शक्ति की सीमा क्या है। क्या बीएलओ यह तय कर सकता है कि कोई व्यक्ति मानसिक रूप से बीमार है?”
यह अत्यंत खतरनाक है, आपने एक स्कूल टीचर को बीएलओ बनाकर इतनी ताकत दे दी है कि वह नागरिकता तय करेगा.।सिब्बल ने जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 16 का हवाला दिया, जो वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करने से अयोग्यता के नियम बताती है। यह धारा कहती है कि किसी की नागरिकता का फैसला गृह मंत्रालय करता है। अगर कोई मानसिक रूप से बीमार है, तो उसका फैसला अदालत करती है. आप बीएलओ को यह सब तय करने के लिए कैसे कह सकते हैं? उन्होंने कहा कि एआईआर में लगाए गए नियम विदेशी अधिनियम जैसे हैं, जहां व्यक्ति पर ही यह प्रेशर होता है कि वह साबित करे कि वह विदेशी नहीं है। हालांकि बाद में सीजेआइ्र सूर्यकांत ने दो दिसंबर को आगे की सुनवाई करने को कहा है।
लेकिन आपको बता दें कि चाहे सुप्रीम कोर्ट का एसआईआर की सुनवाई हो या फिर संसद में 100 सांसदों की नोटिस का मामला है दोनों मामले में ज्ञानेश कुमार जी बुरा फंसे हुए हैं और नए चीफ इलेक्शन कमिशनर के लिए नए नियमों को बनाकर पीएम साहब और उनके चाण्क्य जी भी सवालों के घेरे में हैं और विपक्ष एसआईआर को लेकर आक्रामक बना हुआ है। आपको क्या लगता है कि जो एसआईआर प्रक्रिया देश में वोटर लिस्ट को बनाने की चल रही है वो कितनी सही है। क्या एसआईआर के लिए ही मोदी सरकार ने चीफ इलेक्शन कमिशनर के लिए नियमों में संशोधन किया, और इसलिए ही ज्ञानेश कुमार जी नियुक्त किए गए है। क्या एसआईआर प्रकिया पर तुरंत रोक लगाना चाहिए। क् अभिषेक मनु सिंघवी और कपिल सिब्बल की यह दलील कितनी उचित है कि चुनाव आयोग विधायिका का काम कर रहे हैं।



