मुख्य विपक्षी दल होने के नाते अखिलेश होंगे नेता प्रतिपक्ष!
लखनऊ। आखिरकार पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यूपी की सियासत के लिए अपनी भूमिका तय कर ली। उन्होंने आजमगढ़ से लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और मैनपुरी की करहल सीट से बतौर विधायक यूपी के अखाड़े में राजनीति करने का निर्णय सार्वजनिक कर दिया। संकेत हैं कि लोकसभा की सदस्यता छोड़ने के बाद अखिलेश ही अब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका संभालेंगे। अगर ऐसा होता है तो लगभग 13 साल बाद कोई पूर्व मुख्यमंत्री विधानसभा में सरकार के खिलाफ विपक्षी मोर्चा संभालेगा। माना जा रहा है कि यह फैसला उन्होंने 2024 के चुनाव की जमीनी तैयारियों के लिए किया है। जैसा कि तय माना जा रहा है कि अखिलेश ही समाजवादी विधायक दल के नेता होंगे तो मुख्य विपक्षी दल होने के नाते वही नेता प्रतिपक्ष होंगे। ऐसा हुआ तो वर्ष 2009 के बाद प्रदेश में वह ऐसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री होंगे जो नेता प्रतिपक्ष की भूमिका का निर्वाह करेंगे। उनसे पहले उनके पिता मुलायम सिंह यादव ही वह अंतिम पूर्व मुख्यमंत्री थे जिन्होंने नेता प्रतिपक्ष की भूमिका का निर्वाह किया था।
मई 2009 के बाद से मायावती रही हों या खुद अखिलेश, इन्होंने विपक्ष में आते ही दिल्ली की राजनीति को वरीयता दी और राज्यसभा या लोकसभा के जरिये केंद्र का रास्ता पकड़ा। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर अखिलेश ने 2017 के उलट 2022 में लखनऊ के अखाड़े को क्यों वरीयता दी? इसके पीछे कुछ प्रमुख कारण नजर आ रहे हैं। एक तो अखिलेश ने 2017 में विधानसभा का कोई चुनाव नहीं लड़ा था, लेकिन इस बार उन्होंने मैनपुरी के करहल से विधायकी का चुनाव भी लड़ा था। दूसरे भले ही उन्हें सरकार बनाने लायक जीत नहीं मिली, लेकिन जिस तरह उनके खाते में 125 सीटें आई और उन्होंने प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटों में ज्यादातर पर भाजपा को सीधे टक्कर दी। पहली बार समाजवादी पार्टी को मिले मतों का प्रतिशत 32 से ऊपर पहुंचा है। बसपा और कांग्रेस पस्त दिखीं। इससे उनका उत्साह तो बढ़ा ही है लेकिन चुनौती भी बढ़ गई है। चुनौती बढ़ी है जनता के बीच विपक्षी पार्टी की जिम्मेदारी निभाकर सपा को जनसरोकारों वाली पार्टी साबित करने, अपना वोट बैंक व जनाधार संभालने की। साथ ही साख बचाए रखते हुए 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी की।
करहल सीट रखने के पीछे मकसद संदेश देना
अखिलेश करहल विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गए हैं। इस सीट को बचाए रखकर अखिलेश ने संदेश देने की कोशिश की है कि पारिवारिक व परंपरागत सीट से उनका सियासी लगाव है और बना रहेगा। आजम खां इस चुनाव में रामपुर से 10वीं बार विधायक चुने गए हैं और जेल में हैं। विधानसभा में उनकी भूमिका जेल से आने के बाद ही शुरू हो पाएगी। अखिलेश यादव वर्ष 2004 में पहली बार और दूसरी बार 2009 में कन्नौज से सांसद चुने गए। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को पूर्ण बहुमत मिलने पर मुख्यमंत्री बनने के लिए अखिलेश ने कन्नौज संसदीय सीट से इस्तीफा दिया था। वह विधान परिषद सदस्य बनकर पांच साल मुख्यमंत्री रहे।