तो आजम-शिवपाल के जरिए अखिलेश को किनारे लगाने की तैयारी कर रही भाजपा !
सियासी गलियारों में आजम और शिवपाल के मिलकर नयी पार्टी बनाने की चर्चा गर्म
- ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के साथ मोर्चा बनाने की भी अटकलें तेज
- सपा के पक्ष में मुस्लिम वोटों के धु्रवीकरण को तोडऩे का तैयार किया गया प्लान
- सीएम योगी से मुलाकात कर चुके प्रसपा प्रमुख आज सीतापुर जेल में मिले आजम खां से
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
लखनऊ। भाजपा ने ऑपरेशन अखिलेश चल दिया है। वह सपा के वरिष्ठï नेता आजम खां और प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव के जरिए न केवल अखिलेश यादव को किनारे लगाने बल्कि विधान सभा चुनाव में सपा के पक्ष में एकतरफा पड़े मुस्लिम वोटों को लोक सभा चुनाव से पहले तोडऩे की तैयारी कर रही है। इसी कड़ी में आज प्रसपा प्रमुख शिवपाल यादव की सीतापुर जेल में आजम खां से हुई मुलाकात ने सियासी पारा चढ़ा दिया है। सूत्रों का कहना है कि ये मुलाकात यूं ही नहीं हुई है। शिवपाल, भाजपा में शामिल न होकर आजम खां के साथ मिलकर नयी पार्टी बनाएंगे, जिसमें असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के भी शामिल होने की संभावना है। इसके पहले शिवपाल सीएम योगी से मुलाकात कर चुके हैं।
सूत्रों का कहना है कि विधान सभा चुनाव में सपा को मुस्लिमों के मिले एकतरफा वोट से भाजपा घबरा गयी है और अब वह आजम और शिवपाल यादव के जरिए अखिलेश की घेराबंदी कर रही है। भाजपा चाहती है कि लोक सभा चुनाव में मुस्लिम सपा को एकतरफा वोट नहीं करें। इसके लिए भाजपा ने ब्लूप्रिंट तैयार किया है। आजम खां को बताया गया कि यदि जेल से बाहर रहना है तो वही करना होगा जैसा भाजपा चाहती है। दरअसल, आजम खां पर करीब 72 केस हैं। कई साल से वे जेल में हैं। 71 केस में जमानत हो चुकी है। एक केस में अभी जमानत नहीं मिली है। आजम को उम्मीद थी वे जेल से बाहर आ जाएंगे लेकिन उनके करीबियों को संदेश भेजा गया कि मुकदमों की एक और लिस्ट तैयार है। जेल के बाहर आते ही ये मुकदमे उनका इंतजार कर रहे हैं। आजम भी यह जान चुके हैं कि जब सरकार उन पर बकरी चोरी का आरोप लगा सकती है तो अन्य आरोप भी लगा सकती है। जेल में उनकी दुर्दशा हो चुकी है। उनकी एक तस्वीर भी वायरल हुई है जिसमें वे काफी बीमार नजर आ रहे हैं। उनके पूरे परिवार को जेल भेजा गया था। ऐसे में उनका परिवार टूट चुका है। एक सही मौके की तलाश थी और यह मौका तब मिला जब सपा प्रमुख अखिलेश यादव खुद नेता प्रतिपक्ष बन गए। इससे साफ हो गया कि अब कमान अखिलेश खुद संभालेंगे। सपा में भी यह चर्चा है कि अखिलेश जिस छवि के साथ पार्टी को आगे बढ़ाना चाहते हैं उसमें शिवपाल और आजम खां लोडर की तरह है। जब बाहुबल की बात आती है तो शिवपाल यादव और जब मुस्लिमपरस्ती की बात आती है तो आजम का नाम सामने आ जाता है। बात सही भी है लेकिन देश की राजनीति एक नयी दिशा की ओर बढ़ चुकी है। आरएसएस और भाजपा ने यह साबित कर दिया है कि अब सियासी मंच पर मुस्लिमों की बात खुलेआम करना भारी पड़ेगा। हिंदू-मुस्लिम के बीच गैप बढ़ रहा है। यही कारण है कि अखिलेश यादव विधान सभा चुनाव के दौरान खुलकर मुस्लिमों के मुद्दे उठाने से बचते दिखे। उनके जिन्ना वाले बयान को भाजपा ले उड़ी थी और जमकर निशाना साधा था। अखिलेश भी समझ रहे हैं कि अब पुरानी वाली स्थिति नहीं है। देश दो विचारधाराओं में बंट चुका है। अखिलेश के सामने एक ओर कुआं तो दूसरी ओर खाईं वाली स्थिति है। उन पर मुस्लिमों की अनदेखी का आरोप भी सपा के कई मुस्लिम नेताओं ने लगाया है। देखना यह है कि सपा प्रमुख इस नई चुनौती से कैसे निपटेंगे।
अखिलेश के सामने बड़ी चुनौती
सपा प्रमुख अखिलेश यादव के सामने बड़ी चुनौती यह है कि यदि वे मुस्लिमों के मुद्दे पर खुलकर बोलेंगे तो हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण होगा और अगर नहीं बोलते हैं तो मुस्लिम समुदाय में गलत संदेश जाएगा। अखिलेश यह भी जानते हैं कि अगर वे शिवपाल यादव को पार्टी में लेते हैं तो समस्या उत्पन्न होगी। शिवपाल संगठन के माहिर खिलाड़ी हैं। इससे शिवपाल का कद पार्टी में बढ़ सकता है जो अखिलेश के लिए चुनौती बन सकती है। पहले भी ऐसा हो चुका है। ऐसे में अखिलेश दोबारा यह खतरा नहीं लेना चाहते हैं। शिवपाल भी इस बात को समझ रहे हैं कि उनके पास अखिलेश के साथ बहुत दूर तक चलने का रास्ता नहीं बचा है। यही कारण है जब आगरा में अखिलेश से शिवपाल के बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि जो भाजपा के साथ है वह हमारे साथ नहीं है और जब शिवपाल से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि अगर अखिलेश को मुझसे दिक्कत है तो वह हमें पार्टी से निकाल क्यों नहीं देते हैं।
ऑपरेशन जयंत पर भी फोकस
सूत्रों का कहना है कि भाजपा जल्द ही ऑपरेशन जयंत पर भी काम करने जा रही है। रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को तोडऩे के लिए भाजपा प्लान तैयार कर रही है। सपा ने रालोद के साथ मिलकर विधान सभा चुनाव लड़ा था अगर जयंत चौधरी गठबंधन से अलग हो गए तो अखिलेश के सामने मुश्किलें बढ़ेंगी।
भाजपा की रणनीति
सूत्रों के मुताबिक भाजपा चाहती है कि शिवपाल को पार्टी में शामिल करने से बेहतर है कि ओवैसी, आजम खां और शिवपाल एक मंच पर आ जाएं। एक पार्टी बना लें या ओवैसी की पार्टी में शामिल हो जाएं अगर ओवैसी अलग भी रहते हैं तो कम से कम आजम खां और शिवपाल एक पार्टी बना लें अगर ऐसा होता है तो लोक सभा चुनाव में भाजपा को मदद मिल जाएगी। भाजपा इस बात को लेकर चिंतित है कि जितनी सीटें विधान सभा चुनाव में अखिलेश यादव को मिली हैं अगर इनका प्रतिशत निकाले तो यह लोक सभा में 20 से 22 सीटें होती हैं। भाजपा पिछली बार के लोक सभा चुनाव में जीती सीटों से एक भी कम करने को तैयार नहीं है। सपा का 12 प्रतिशत वोट बढऩा उसके लिए खतरे की घंटी है। यह वोट प्रतिशत तब कम होगा जब मुस्लिम वोट विभाजित हो जाएं।