गुजरात: कांग्रेस की हवा बिगाड़ सकती आप
केजरीवाल भाजपा पर है ज्यादा हमलावर, तीसरे खिलाड़ी के रूप में आम आदमी पार्टी मैदान में
4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। गुजरात में अरविंद केजरीवाल के लिए न तो पंजाब जैसी अनुकूल स्थिति है और न ढाई दशकों से राज्य की सत्ता के शीर्ष पर बैठी भाजपा के लिए प्रतिकूल है। फिर भी अगर आम आदमी पार्टी (आप) गुजरात में अपनी संभावनाओं की तलाश में है तो इसका सीधा असर पिछले चुनाव में सशक्त तरीके से भाजपा का सामना करने वाली कांग्रेस पर पड़ सकता है।
2017 के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस को भाजपा से लगभग सात प्रतिशत कम वोट आए थे। 182 सदस्यों वाले सदन में सीटों का अंतर भी मात्र 22 था। गुजरात में भाजपा सात बार से लगातार जीतती आ रही है। यहां भाजपा की मुख्य लड़ाई कांग्रेस के साथ होती रही है। पिछली बार भी दोनों राष्ट्रीय दलों के बीच कड़ा मुकाबला था। 49.1 प्रतिशत वोटों के साथ भाजपा को 99 सीटें और 41.4 प्रतिशत वोटों के साथ कांग्रेस को 77 सीटें मिली थीं। हालांकि बाद के उपचुनावों में भाजपा की सीटें बढ़ाकर 111 और कांग्रेस की घटाकर 66 ही रह गईं हैं। इस बार दोनों के बीच तीसरे खिलाड़ी के रूप में आम आदमी पार्टी का प्रवेश हो गया है। दिल्ली और पंजाब से कांग्रेस का सफाया करने के बाद आप की कोशिश गुजरात में भी पांव पसारने की है। दिल्ली-पंजाब की सफलता को कांग्रेस के संदर्भ में देखने से स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि अभी तक आप को उन्हीं राज्यों में सफलता मिली है, जहां कांग्रेस की सरकार थी। गोवा में मुख्य मुकाबला भाजपा से होने के चलते आप को अपेक्षित सफलता नहीं मिल सकी थी। मात्र दो सीट और 6.77 प्रतिशत वोटों से ही केजरीवाल को संतोष करना पड़ा था। लगभग ऐसी ही स्थिति का सामना उन्हें उत्तराखंड में भी करना पड़ा था, जहां उन्हें चार प्रतिशत वोट भी नहीं मिल पाए थे। हालांकि दोनों ही राज्यों में केजरीवाल ने कांग्रेस को ही क्षति पहुंचाकर वोट प्राप्त किया था। गुजरात की स्थिति गोवा और उत्तराखंड से थोड़ा अलग है इसीलिए केजरीवाल को वहां से अतिरिक्त उम्मीदें भी हैं। वे कांग्रेस की तुलना में भाजपा पर ज्यादा हमलावर हैं। आम आदमी पार्टी अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी भाजपा को बता रही है। इस प्रयास में भाजपा पर तीखे हमले किए जा रहे हैं जो अंतत: कांग्रेस के लिए नुकसान का कारण बन सकता है।
खडग़े की रणनीति का इंतजार
भाजपा और आप का संघर्ष प्रत्यक्ष तौर पर दिख रहा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस परिदृश्य से गायब है। माना जा रहा कि परोक्ष तौर पर कांग्रेस भी अपनी जमीन को विस्तार दे रही है। नए राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े की रणनीति का भी इंतजार है। चुनाव की घोषणा अभी बाकी है। जैसे-जैसे माहौल में तल्खी आएगी वैसे-वैसे हवा का रुख भी बदल सकता है।