मणिपुर हिंसा पर जनहित याचिकाओं पर सीजेआई सख्त, सुप्रीम कोर्ट का इस्तेमाल मंच के रूप में नहीं हो सकता

इंफाल, एजेंसी। मणिपुर में इंटरनेट बहाल करने के हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची है। राज्य सरकार ने कहा है कि स्थिति में बार-बार बदलाव हो रहा है। अभी इस आदेश पर अमल से मुश्किल हो सकती है। उल्लेखनीय है कि 7 जुलाई को मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को राज्य में लगे इंटरनेट पर बैन हटाने का निर्देश दिया था। आज, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता राज्य सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए है और उन्होंने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक याचिका का उल्लेख किया।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पिछली बार कोर्ट के ध्यान में यह बात लाई गई थी कि पुलिस स्टेशनों से बड़ी संख्या में हथियार लिए गए थे। एससी ने सॉलिसिटर जनरल से उस संबंध में की गई कार्रवाई की सीमा के बारे में पूछा।सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि वह मणिपुर हिंसा से जुड़े मामले पर कल 11 जुलाई को सुनवाई करेगा। इसके अलावा राज्य में इंटरनेट की बहाली की अनुमति देने वाले उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ मणिपुर सरकार की याचिका पर भी कल सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मणिपुर हिंसा से संबंधित मामलों की सुनवाई करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के मंच का इस्तेमाल मणिपुर में तनाव को और बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा जनहित याचिकाओं पर टिप्पणी करते हुए कहा, ‘हम केवल राज्य द्वारा उठाए जा रहे कदमों की निगरानी कर सकते हैं और अगर अतिरिक्त उपाय किए जा सकते हैं तो कुछ आदेश पारित कर सकते हैं। लेकिन, हम कानून एवं व्यवस्था तंत्र को अपने हाथ में नहीं ले सकते। सुरक्षा सुनिश्चित करना केंद्र, मणिपुर सरकार का काम है। बता दें, मणिपुर सरकार ने स्थिति पर नवीनतम स्थिति रिपोर्ट सौंपी, जबकि इस पर सुनवाई मंगलवार को फिर से शुरू होगी। उल्लेखनीय है कि मणिपुर में पिछले दो महीने से हिंसा की घटनाएं सामने आ रही है। इस वजह से राज्य में दो महीने से इंटरनेट पर भी बैन लगा हुआ है। इंटरनेट बैन के खिलाफ याचिकाओं पर मणिपुर हाईकोर्ट ने सुनवाई की थी और आदेश दिया था की गृह विभाग मामलों के आधार पर इंटरनेट सेवा प्रदान कर सकता है।
हाल ही में राज्य सरकार ने इंटरनेट पर 10 जुलाई तक के लिए बैन बढ़ा दिया था। जातीय समुदायों के बीच झड़प शुरू होने के बाद 3 मई को पहली बार पूर्वोत्तर राज्य में इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद इसकी समयसीमा समय-समय पर बढ़ती चली गई। अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में 3 मई को पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए गया था। इसके बाद ही राज्य में पहली बार हिंसा भडक़ उठी थी। इस हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और कई लोग घायल हुए हैं। इसके अलावा हजारों लोगों ने राहत शिविरों में शरण ली है। मणिपुर की आबादी में मेइतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं। जनजातीय नागा और कुकी आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा हैं और पहाड़ी जिलों में रहते हैं।

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