महाराष्ट्र में नहीं चला मोदी का जादू, 17 सीटों पर सिमटी महायुति

महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच सीधी लड़ाई हुई... वंचित अघाड़ी भी मैदान में थी... लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी... महाराष्ट्र में विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र और मुंबई में महाविकास अघाड़ी का काफ़ी विस्तार हो चुका है...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः लोकसभा चुनाव दो हजार चौबीस के नतीजे आ चुके है… पीएम मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है… लेकिन लोकसभा चुनाव को लेकर सियासत जोरों पर है… और विपक्ष नरेंद्र मोदी पर लगातार हमलावर है… वहीं कहा जाता है कि देश में राजनीतिक के बदलाव की बयार महाराष्ट्र से शुरू होती है…. लोकसभा चुनाव के नतीजों से भी यह तस्वीर पूरी तरह साफ हो गई है…. महाविकास अघाड़ी (उद्धव ठाकरे की शिव सेना, कांग्रेस और शरद पवार की एनसीपी) ने महायुति (बीजेपी, एकनाथ शिंदे की शिव सेना और अजित पवार की एनसीपी) को पछाड़कर शानदार सफलता हासिल की है….  इन नतीजों का राज्य की राजनीति पर दूरगामी असर पड़ेगा… और आने वाले समय में महाराष्ट्र की राजनीति में इसका बड़ा असर देखने को मिलेगा… बता दें कि इस बार के विधानसभा चुनाव में महायुति को भारी नुकसान होने की संभावना है… जिस तरह से लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जनता ने क्लीन बोल्ड करने का काम किया है… ठीक उसी प्रकार से जनता विधानसभा चुनाव में करने का मन बना लिया है… बता दें कि मोदी की ध्रुवीकरण की राजनीति का जनता के ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा है… और जनता ने इसका जवाब बड़े ही सहजता के साथ चुपचाप दिया है…

जिसका अंदाजा बीजेपी और मोदी को नहीं था… लगातार दो बार से सत्ता में रहने के साथ ही मोदी को यह समझ आ गया था कि मैं जो चाहूंगा और जो कहूंगा वहीं जनता करेगी… लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हआ… हां वो दौर और था जब मोदी के कहने पर जनता एक साथ खड़ी हो जाती थी… और अपने देश के मुखिया का सम्मान करती थी… लेकिन मोदी ने जनता के सम्मान को अपना अहंकार समझ लिया और अपनी मनमानी करने लगे… और जनता से जुड़ें मुद्दों को जरकिनार कर दिया… और अपनी मनमानी करने लगे… देश में लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी होती है… देश को आगे लेकर जाना और अपने देश के युवाओं को रेजगार देना… यह किसी भी सरकार की नैतिक जिम्मेदारी होती है… महंगाई पर नियंत्रण करना, देश की जनता को सुरक्षा उपलब्ध कराना समेत तमाम प्रकार की सुविधाओं को उपलब्ध कराना होता है… लेकिन पिछले दस सालों में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिसका… परिणाम आज देश के सामने है…

बता दें कि वहीं जनता जिसने कभी मोदी को पूर्ण बहुमत देकर देश की कमान सौंप दी थी… आज उसी जनता ने बीजेपी और मोदी को बैसाखी के सहारे लाकर छोड़ दिया है… वहीं अब देखना होगा कि बैसाखी के सहारे मोदी देश की जनता के लिए उसकी मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने का काम करते हैं… या फिर अपने पद के अभिमान में मस्त हो जाते हैं… बता दें कि मोदी हमेशा से देश की बड़ी घटनाओं को लेकर मौन हो जाते हैं… और जनता को उसके हाल पर छोड़ देते हैं… लेकिन सरकार की देश की जनता का हर तरह की सुविधा उपलब्ध कराना उनकी सुरक्षा करना जिम्मेदारी होती है… वहीं इस बार जनता ने सबक सिखा दिया है… कि अगर कोई भी सराकार जनता के  साथ गद्दारी करने का काम करेगी… तो उसके साथ यहीं होगा… अभी भी मोदी जी के पास समय है… अब कुछ दिन जनता के मुद्दों पर काम कर लें… नहीं फिर आगामी विधानसभा के चुनावों में भी इसका असर देखने को मिल सकता है…

लोकसभा चुनाव दो हजार चौबीस के नतीजों में सत्तारूढ़ बीजेपी को बहुमत नहीं मिला…. और इस वजह से राज्य के साथ-साथ देश की राजनीति की तस्वीर बदल गई है… यह राष्ट्रीय स्तर पर एनडीए और इंडिया गठबंधन और महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच सीधी लड़ाई थी…. बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए को दो सौ तिरानबे सीटें और इंडिया गठबंधन को दो सौ तैंतीस सीटों पर जीत मिली है… वहीं महाराष्ट्र की कुल अड़तालीस लोकसभा सीटों में से सत्रह सीटें महायुति… और तीस सीटें महाविकास अघाड़ी ने जीती हैं….. महाराष्ट्र में बहुत कड़ा मुक़ाबला हुआ है…. दरअसल, हाल के दिनों में महाराष्ट्र में ऐसी कांटे की टक्कर कम ही देखने को मिली थी…

बता दें कि महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच सीधी लड़ाई हुई… वंचित अघाड़ी भी मैदान में थी… लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी…. महाराष्ट्र में विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र और मुंबई में महाविकास अघाड़ी का काफ़ी विस्तार हो चुका है…. मुंबई में भी शिव सेना (उद्धव ठाकरे समूह) ने सबसे अधिक सीटें जीतीं…. इसलिए इसका प्रभाव आगामी विधानसभा चुनाव… और नगर निगम चुनावों में दिखाई देगा… इस चुनाव में कांग्रेस ने विदर्भ का गढ़ फिर से हासिल कर लिया है… जबकि शरद पवार की एनसीपी पश्चिमी महाराष्ट्र में अपना गढ़ बचाने में कामयाब रही है….

ज़ाहिर है दो हाजर उन्नीस के लोकसभा चुनाव में इकतालीस सीटें जीतने वाले महायुति को सिर्फ़ सत्रह सीटों पर ही संतोष करना पड़ा…. वहीं महाविकास अघाड़ी ने ज़ोरदार प्रदर्शन करते हुए तीस सीटों पर तब्जा कर लिया है… इस साल के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र में जो प्रमुख बातें देखने को मिलीं…. उनमें से एक है महायुति के तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत कई दिग्गज उम्मीदवारों की हार…. राज्य में जहां बीजेपी की ताक़त घटी है… वहीं कांग्रेस की ताक़त बढ़ी है…. हिंदुत्व पर केंद्रित रही महाराष्ट्र की राजनीति में अब गठबंधन राजनीति का प्रभाव बढ़ने जा रहा है….

लोकसभा चुनाव से पहले महायुति एकजुट दिख रही थी… जबकि महाविकास अघाड़ी एकजुट रहने के लिए संघर्ष कर रही थी…. दरअसल, महाविकास अघाड़ी ने एकजुट होकर इस चुनाव का सामना किया… जबकि चुनाव से पहले महायुति में काफ़ी असमंजस की स्थिति थी… दो हजार चौदह  और दो हजार उन्नीस की तुलना में इस साल लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की तस्वीर पूरी तरह से बदल गई है….. पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए अपना प्रदर्शन दोहरा नहीं पाई है…. ऐसा तब है जब बीजेपी ने कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को अपने पाले में किया था…. जैसे महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण… और मिलिंद देवरा को चुनाव से ठीक पहले बीजेपी में शामिल किया गया था… लेकिन बीजेपी की ये सारी रणनीति काम नहीं आई….

आपको बता दें कि यह चुनाव मोदी के इर्दगिर्द केंद्रित नहीं था… दो हजार चौदह और दो हजार उन्नीस में मोदी लहर थी…. और अकेले नरेंद्र मोदी फैक्टर के कारण ही कई नए उम्मीदवार भी चुने गए…. पिछले चुनाव में राज्य के मुद्दे, स्थानीय मुद्दे, स्थानीय समीकरण किसी भी तरह से प्रभावी नहीं थे…. हालांकि इस चुनाव में महाराष्ट्र में मोदी की ऐसी लहर देखने को नहीं मिली…. मोदी का करिश्मा नहीं दिखा…. मोदी ने महाराष्ट्र में रिकॉर्ड रैलियां कीं…. लेकिन इसका नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ा…. भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में चुनाव को मोदी बनाम राहुल गांधी बनाने की पूरी कोशिश की…. और चुनाव के आखिरी पड़ाव पर आते- आते चुनाव मोदी बनाव राहुल हो ही गया…

बता दें कि कोल्हापुर की सभा में देवेन्द्र फड़नवीस ने सीधे तौर पर कहा कि इस क्षेत्र में यह चुनाव शाहू महाराज बनाम संजय मांडलिक नहीं…. बल्कि नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी है…. बीजेपी ने चुनाव को मोदी केंद्रित बनाने की कोशिश की… लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली….  दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह है कि पार्टीयों को तोड़ना बीजेपी के विरोध मे चला गया…. चाहे वह शिव सेना में फूट हो या उसके बाद एनसीपी में फूट…. दोनों ही फूट से बीजेपी को कोई ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ…. इसके विपरीत मतदाताओं में इस विभाजन को लेकर नाराज़गी देखी गई…. जिस तरीक़े से उद्धव ठाकरे की शिव सेना को कमज़ोर किया गया… और शरद पवार की एनसीपी में तोड़फोड़ मचाई गई…. उसे भी जनता ने स्वीकार नहीं किया…. आम लोगों की सहानुभूति उद्धव और शरद पवार के साथ थी….

वहीं चुनाव प्रचार के दौरान मोदी ने ख़ुद शरद पवार…. और उद्धव ठाकरे की व्यक्तिगत तौर पर आलोचना की थी…. मोदी ने भटकती आत्मा, नक़ली बच्चा जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया… लेकिन यह आलोचना पवार-ठाकरे के प्रति सहानुभूति बढ़ाने वाली साबित हुई…. पिछले कुछ महीनों से महाराष्ट्र में किसानों का ग़ुस्सा साफ़ नज़र आ रहा था…. उत्तर महाराष्ट्र में प्याज का मुद्दा छाया रहा…. मराठवाड़ा और विदर्भ में कपास और सोयाबीन के मुद्दे पर चर्चा हुई…. प्याज के मुद्दे को सीधे तौर पर महागठबंधन पर चोट के तौर पर देखा जा रहा था….

आपको बता दें कि निर्यात प्रतिबंध के ख़िलाफ़ किसानों में भारी ग़ुस्सा था…. बीजेपी इस रोष को कम करने में ख़ास कामयाब नहीं हो पाई है…. उर्वरकों की बढ़ी क़ीमतें राज्य भर के किसानों के लिए एक प्रमुख मुद्दा बन गईं…. मराठा-दलित-मुस्लिम की सोशल इंजीनियरिंग में महाविकास अघाड़ी सफल रही…. आरक्षण के लिए मराठा आंदोलन का सीधा फ़ायदा महाविकास अघाड़ी को हुआ…. महायुति के उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ मनोज जारंग का रुख़ महाविकास अघाड़ी के फ़ायदे मे रहा…. महाविकास अघाड़ी मुस्लिम मतदाताओं को अपनी तरफ़ करने में सफल रही…. वहीं संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा होने के कारण बहुसंख्यक दलित मतदाता भी महाविकास अघाड़ी के पीछे एकजुट हैं….

वहीं महायुति इस सोशल इंजीनियरिंग का प्रभावी ढंग से मुक़ाबला नहीं कर सकी…. इस चुनाव में वंचित और एएमआईएम का प्रभाव नहीं दिखा…. वंचित बहुजन अघाड़ी स्वतंत्र रूप से लड़ रही थी…. इसलिए महाविकास अघाड़ी को वोटों के विभाजन की चुनौती का सामना करना पड़ रहा था…. दो हजार उन्नीस के चुनावों में वंचित बहुजन अघाड़ी…. और एएमआईएम द्वारा लिए गए वोटों के कारण कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस के उम्मीदवार हार गए….

लेकिन इस चुनाव में वंचित बहुजन अघाड़ी को ख़ास वोट नहीं मिले…. ओवैसी की पार्टी को औरंगाबाद छोड़कर अन्य जगहों पर वोट नहीं मिले…. महाविकास अघाड़ी को इसका भी फ़ायदा हुआ….  इसके साथ ही महाविकास अघाड़ी एकजुट नज़र आई… और कांग्रेस-ठाकरे ग्रुप और पवार ग्रुप के वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर हो गए…. यह मुद्दा महाविकास अघाड़ी के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ…. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस लोकसभा चुनाव के नतीजे आगामी विधानसभा चुनावों के साथ-साथ स्थानीय निकाय चुनाव में राज्य की राजनीति पर बड़ा प्रभाव डालेंगे….

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