शिव का त्रिपुंड लगाने का महत्व और सही तरीका जानें

अंगों में जल के साथ भस्म को मलना या तिरछा त्रिपुंड लगाना आवश्यक बताया गया है....

4PM न्यूज़ : सावन  में भगवान शिव की आराधना उत्तम मानी गई है. भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए यह श्रेष्ठ माह माना जाता है. पूरे माह भक्त पूरी श्रद्धा से भगवान शिव और उनके परिवार की पूजा की जाती है सावन के सभी सोमवार का अपना महत्व होता है. मान्यता है कि सावन मास में भोलेनाथ की अराधना करने से सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है.शिव पुराण के अनुसार भस्म सभी प्रकार के मंगलों को देने वाला है. यह दो प्रकार का होता है-

महाभस्म
स्वल्पभस्म

महाभस्म के तीन प्रकार श्रौत, स्मार्त और लौकिक हैं. श्रौत और स्मार्त द्विजों के लिए और लौकिक भस्म सभी लोगों के उपयोग के लिए होता है.द्विजों को वैदिक मंत्र के उच्चारण से भस्म धारण करना चाहिए. दूसरे लोग बिना मंत्र के ही इसे धारण कर सकते हैं. शिव पुराण में बताया गया है कि जले हुए गोबर से बनने वाला भस्म आग्नेय कहलाता है. वह भी त्रिपुंड का द्रव्य है.

त्रिपुंड क्या है

ललाट आदि सभी स्थानों में जो भस्म से तीन तिरछी रेखाएं बनायी जाती हैं, उनको त्रिपुंड  कहा जाता है. भौहों के मध्य भाग से लेकर जहां तक भौहों का अंत है, उतना बड़ा त्रिपुंड ललाट पर धारण करना चाहिए.

त्रिपुंड कैसे लगाते हैं

मध्यमा और अनामिका अंगुली से दो रेखाएं करके बीच में अंगुठे से की गई रेखा त्रिपुंड कहलाती है. या बीच की तीन अंगुलियों से भस्म लेकर भक्ति भाव से ललाट में त्रिपुंड धारण करें.शिव पुराण में बताया गया है कि त्रिपुंड की तीनों रेखाओं में से प्रत्येक के नौ नौ देवता हैं, जो सभी अंगों में स्थित हैं.

त्रिपुंड की पहली रेखा में प्रथम अक्षर अकार, गार्हपत्य अग्नि, पृथ्वी, धर्म, रजोगुण, ऋृग्वेद, क्रियाशक्ति, प्रात:सवन तथा महादेव 9 देवता होते हैं.
दूसरी रेखा में प्रणव का दूसरा अक्षर उकार, दक्षिणाग्नि, आकाश, सत्वगुण, यजुर्वेद, मध्यंदिनसवन, इच्छाशक्ति, अंतरात्मा तथा महेश्वर ये 9 देवता हैं.
तीसरी रेखा के 9 देवता प्रणव का तीसरा अक्षर मकार, आहवनीय अग्नि, परमात्मा, तमोगुण, द्युलोक, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तृतीय सवन तथा शिव हैं.

त्रिपुंड कहां धारण करें?

शरीर के 32, 16, 8 या 5 स्थानों पर त्रिपुंड लगाना चाहिए. मस्तक, ललाट, दोनों कान, दोनों नेत्र, दोनों नासिका, मुख, कंठ, दोनों हाथ, दोनों कोहनी, दोनों कलाई, हृदय, दोनों पाश्र्वभाग, नाभि, दोनों अंडकोष, दोनों उरु, दोनों गुल्फ, दोनों घुटने, दोनों पिंडली और दोनों पैर ये 32 उत्तम स्थान हैं. समयाभाव के कारण इतने स्थानों पर त्रिपुंड नहीं लगा सकते हैं तो पांच स्थानों मस्तक, दोनों भुजाओं, हृदय और नाभि पर इसे धारण कर सकते हैं.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button