वकीलों के प्रदर्शन के बाद घुटनों पर आई सरकार, अखिलेश यादव ने जमकर लिए मजे

कानून मंत्रालय ने विधेयक 2025 का मसौदा वापस ले लिया है... जो वकीलों के लाइसेंस रद्द करने और अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव करता था... देखिए हमारी खास रिपोर्ट...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः देश में वकीलों के भारी विरोध के बाद सरकार को आखिरकार बैकफुट पर आना ही पड़ा….. और कानून मंत्रालय ने वकीलों के विरोध के बाद वकालत (संशोधन) विधेयक, 2025 का मसौदा वापस ले लिया है…. बता दें कि यह विधेयक अदालतों के कामकाज में बाधा डालने वाले वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव करता था….. इसमें वकीलों के लाइसेंस रद्द करने का भी प्रावधान था….. जिसका कई वकील संगठनों ने इस विधेयक का विरोध किया था…. बता दें कि ड्राफ्ट बिल 13 फरवरी को मंत्रालय की वेबसाइट पर जन परामर्श के लिए उपलब्ध कराया गया था…… मंत्रालय ने आगे कहा कि हालांकि, प्राप्त सुझावों और चिंताओं को देखते हुए….. अब परामर्श प्रक्रिया को खत्म करने का फैसला लिया गया है….. लोगों की प्रतिक्रिया के आधार पर….. संशोधित ड्राफ्ट बिल हितधारकों के साथ परामर्श के लिए नए सिरे से तैयार किया जाएगा…..

आपको बता दें कि केंद्र द्वारा अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक के मसौदे को संशोधित करने की बात कहने के बाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने सोमवार को वकीलों को बधाई दी….. अखिलेश यादव ने सोमवार को ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में अधिवक्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि प्रिय अधिवक्ताओ….. निरंकुशता के खिलाफ एकता की जीत के लिए आपको बधाई हो….. ‘एडवोकेट्स (अमेंडमेंट) बिल’ लाकर एक बार फिर से भाजपाई ये दिखाना चाहते थे…. कि वे अपनी मनमानी किसी पर भी थोप सकते हैं….. और उन्होंने कहा कि जोड़-तोड़ या किसी भी तरह से बने या मिले बहुमत का मतलब यह नहीं होता कि आप जिसके लिए बदलाव ला रहे हैं…. उसी की उपेक्षा और हानि कर दें….. परिवर्तन से प्रभावित होने वाले पक्ष को उस प्रक्रिया में शामिल करना ही लोकतांत्रिक परंपरा है….. ऐसे तो पुराने राजा लोग भी अपने मन से शासन करते थे और फ़ैसले कर लेते थे…..

बता दें कि अखिलेश यादव यादव ने कहा कि बहुमत यदि ‘एकाकीमत’ जैसा बनते दिखता है तो वह लोकतांत्रिक नहीं हो सकता….. बदलाव यदि सहमति से होगा…. तभी सबके लिए लाभकारी होता है….. ऐसे बदलाव को ही ‘सुधार’ कहते हैं….. और संशोधन सुधार के लिए किए जाते हैं….. अपनी सत्ता की हनक दिखाने के लिए नहीं…… और उन्होंने कहा कि झूठे मुकदमे भाजपा की सियासी साजिश का बड़ा हिस्सा रहे हैं….. तथा उसके राज में न्यायिक प्रक्रिया भी राजनीति का शिकार हो गई है….. वहीं सपा प्रमुख ने कहा कि भाजपा सरकार संशोधन नहीं, ‘लगाम’ लेकर आती है लेकिन वह भूल जाती है….. कि संगठन की एकजुट शक्ति के आगे कोई भी टिक नहीं पाता है…… एकता बड़े-बड़े महारथियों का रथ पलट देती है….. और उन्होंने कहा कि हम अधिवक्ताओं की न्यायोचित मांग के साथ मजबूती से खड़े थे, खड़े हैं….. और हमेशा खड़े रहेंगे….. बार निकायों द्वारा इसके विभिन्न प्रावधानों के विरोध के बीच…… सरकार ने शनिवार को कहा था कि वह अधिवक्ता (संशोधन) विधेयक के मसौदे को संशोधित करेगी….

जानकारी के मुताबिक इससे पहले भी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन सहित देश भर के विभिन्न बार एसोसिएशनों के साथ विचार-विमर्श किया था….. सभी ने वकालत (संशोधन) बिल और विधि आयोग की 266वीं रिपोर्ट का विरोध किया था….. इस रिपोर्ट में अदालत के काम में बाधा डालने वाले वकीलों के खिलाफ कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की गई थी….. जिसमें उन्हें प्रैक्टिस करने से रोकना भी शामिल था…. वहीं विधि आयोग ने वकालत अधिनियम में संशोधन की सिफारिश की थी….. इससे वकीलों को संबंधित बार काउंसिल की पूर्व स्वीकृति से मजबूर परिस्थितियों में एक दिन की सांकेतिक हड़ताल करने की अनुमति मिलती….. इसमें वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही से निपटने के लिए एक प्रस्तावित वैधानिक निकाय में कानूनी पेशे से बाहर के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को सदस्य के रूप में नियुक्त करने का भी सुझाव दिया गया था…..

जिस पर कई बार काउंसिल ने आयोग (रिपोर्ट संख्या 266) द्वारा प्रस्तावित संशोधनों पर आपत्ति जताई थी….. और उनका कहना था कि प्रस्तावित विधेयक ‘प्रतिष्ठित व्यक्तियों के नाम पर गैर-कानूनी व्यक्तियों को वैधानिक निकाय में शामिल करने’ की सिफारिश करता है….. और उन्हें वकीलों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही से निपटने का अधिकार दिया जाएगा….. यह चिंता का विषय था…. वहीं कई वकीलों का मानना था कि यह विधेयक उनके अधिकारों का हनन है….. वे अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए हड़ताल पर जाने की धमकी दे रहे थे….. इस विधेयक के विरोध का एक मुख्य कारण यह भी था कि इसमें विदेशी लॉ फर्मों को भारत में प्रैक्टिस करने की अनुमति देने का प्रस्ताव था….. कई भारतीय वकीलों को डर था कि इससे उनकी आजीविका प्रभावित होगी….. इस विधेयक के वापस लेने से फिलहाल वकीलों को राहत मिली है….. देखना होगा कि सरकार आगे क्या कदम उठाती है…. यह भी देखना होगा कि सरकार वकीलों की चिंताओं को कैसे दूर करती है…. क्या सरकार नए सिरे से विचार-विमर्श करके एक ऐसा विधेयक ला पाएगी…. जो सभी को स्वीकार्य हो? यह एक बड़ा सवाल है…..

 

 

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