गुजरात उपचुनाव का एलान, बीजेपी की मुश्किलें बढ़ी!

गुजरात में कडी और विसवादार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव 19 जून को होंगे... कडी सीट करसनभाई सोलंकी के निधन...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात की कडी और विसवादार विधानसभा सीटों पर उपचुनाव की घोषणा के साथ ही राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं…… चुनाव आयोग ने इन दोनों सीटों पर 19 जून 2025 को मतदान……. और 23 जून 2025 को मतगणना के बाद नतीजों की घोषणा का ऐलान किया है……. कडी विधानसभा सीट करसनभाई सोलंकी के निधन के कारण खाली हुई…….. जबकि विसवादार सीट पर विधायक रहे भयानी भूपेंद्रभाई के इस्तीफे से सीट खाली हुई……. वहीं इस उपचुनाव में मतदाताओं की संख्या में बढ़ोतरी….. और विशेष रूप से महिला मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी ने एक नया अध्याय जोड़ा है…… कडी में 376 नए मतदाता (152 पुरुष, 224 महिलाएं)…… और विसवादार में 185 नए मतदाता (24 पुरुष, 160 महिलाएं, 1 थर्ड जेंडर) दर्ज किए गए हैं…….. वहीं यह आंकड़ा न केवल मतदाता जागरूकता को दर्शाता है…… बल्कि महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक सकारात्मक संकेत भी देता है……

हालांकि इन उपचुनावों ने एक बार फिर गुजरात में भारतीय जनता पार्टी की कार्यशैली…….. और शासन पर सवाल उठाने का अवसर प्रदान किया है……. बीजेपी 1995 से गुजरात में सत्ता पर काबिज है……. उसको इन उपचुनावों में अपनी विश्वसनीयता…… और जनता के बीच अपनी पकड़ को साबित करना होगा…… लेकिन क्या बीजेपी वास्तव में जनता की अपेक्षाओं पर खरी उतर पा रही है……. या यह केवल सत्ता की राजनीति और प्रचार के दम पर अपनी स्थिति बनाए रखने की कोशिश कर रही है…….

गुजरात में बीजेपी की सत्ता का आधार उसका संगठनात्मक ढांचा, प्रचार तंत्र और केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का प्रभाव रहा है……. 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने क्रमशः 99 और 156 सीटों के साथ प्रचंड जीत हासिल की……. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने सूरत सीट पर निर्विरोध जीत सहित 25 सीटों पर कब्जा जमाया……. लेकिन क्या यह जीत जनता के विश्वास का प्रतीक है……. या इसमें कहीं न कहीं प्रक्रियागत खामियां….. और विपक्ष की कमजोरी भी शामिल हैं……. सूरत में कांग्रेस उम्मीदवार का नामांकन खारिज होना……. और अन्य दावेदारों के नाम वापस लेने की घटना ने चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल उठाए…….. क्या यह लोकतंत्र की जीत है……. या सत्ता के दुरुपयोग का उदाहरण……

आपको बता दें कि कडी और विसवादार में होने वाले उपचुनाव इस बात का लिटमस टेस्ट होंगे कि क्या बीजेपी वास्तव में जनता के मुद्दों को संबोधित कर पा रही है……. कडी मेहसाणा जिले में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है……और विसवादार सामान्य सीट है…… दोनों ही क्षेत्रों में बीजेपी की नीतियों और उनके कार्यान्वयन की कसौटी होगी…….

कडी विधानसभा क्षेत्र मेहसाणा जिले का हिस्सा है…….. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने के कारण सामाजिक न्याय और समावेशिता के मुद्दों को केंद्र में लाता है…….. इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं जैसे सड़क, पानी, बिजली और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी लंबे समय से एक बड़ा मुद्दा रही है……. बीजेपी ने अपने घोषणापत्रों में बार-बार इन मुद्दों को हल करने का वादा किया…… लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है…… ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की कमी, खराब सड़कें…… और अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएं आज भी लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित कर रही हैं…….

विसवादार जूनागढ़ जिले में स्थित है…… जहां स्थिति कुछ अलग नहीं है…… यह क्षेत्र कृषि और छोटे उद्योगों पर निर्भर है……. लेकिन बीजेपी सरकार की नीतियां किसानों….. और छोटे व्यवसायियों के लिए कितनी प्रभावी रही हैं……. बढ़ती खाद और बीज की कीमतें, सिंचाई सुविधाओं की कमी और बाजार तक पहुंच की समस्या ने किसानों को कर्ज के जाल में फंसाया है….. बीजेपी ने 2022 के विधानसभा चुनाव में किसानों के लिए कई वादे किए थे…… जैसे कि हर खेत तक सिंचाई का पानी पहुंचाना…… लेकिन कितने खेतों तक यह सुविधा पहुंची…..

बता दें कि कडी और विसवादार में महिला मतदाताओं की संख्या में वृद्धि एक महत्वपूर्ण पहलू है……. कडी में 224 और विसवादार में 160 नई महिला मतदाता इस बात का संकेत हैं….. कि महिलाएं अब राजनीतिक प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं…… लेकिन क्या बीजेपी ने महिलाओं के लिए ऐसी नीतियां बनाई हैं….. जो उनकी आकांक्षाओं को पूरा करती हों…… बीजेपी ने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे नारे तो दिए….. लेकिन गुजरात में लिंग असंतुलन और महिला सुरक्षा के मुद्दे अभी भी गंभीर हैं…….

वहीं कांग्रेस ने 2022 के चुनाव में महिलाओं के लिए कई वादे किए थे……. जैसे कि बेटियों के बैंक खातों में 3000 रुपये प्रति माह……. और वृद्धावस्था में 30 लाख रुपये की सहायता…….. दूसरी ओर, बीजेपी की योजनाएं, जैसे आयुष्मान भारत, भले ही कागजों पर प्रभावशाली दिखें…… लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इनका कार्यान्वयन अपर्याप्त रहा है…….. कडी जैसे क्षेत्रों में स्वास्थ्य केंद्रों की कमी…… और विशेषज्ञ डॉक्टरों की अनुपस्थिति ने महिलाओं के स्वास्थ्य को और जोखिम में डाला है……

बीजेपी की चुनावी रणनीति हमेशा से प्रचार-प्रधान रही है……. 2022 के विधानसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी की रैलियों….. और उनके व्यक्तित्व ने बीजेपी को 156 सीटों की ऐतिहासिक जीत दिलाई……. लेकिन क्या यह जीत नीतियों और विकास के आधार पर थी……. या केवल भावनात्मक अपील और ध्रुवीकरण की रणनीति का नतीजा थी……. कडी और विसवादार में बीजेपी को अब स्थानीय मुद्दों पर जवाब देना होगा……

विसवादार में भयानी भूपेंद्रभाई का इस्तीफा….. और कडी में करसनभाई सोलंकी का निधन बीजेपी के लिए एक झटका है……. भयानी के इस्तीफे के पीछे स्थानीय नेतृत्व…… और संगठनात्मक असंतोष की खबरें थीं…… जो बीजेपी की आंतरिक कलह को उजागर करती हैं……. क्या बीजेपी इन सीटों पर नए और विश्वसनीय चेहरों को ला पाएगी…… जो जनता का भरोसा जीत सकें…….

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इन उपचुनावों में बीजेपी को कड़ी टक्कर देने की कोशिश करेंगे……. कांग्रेस ने विसवादार में पहले ही अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है…… और शक्तिसिंह गोहिल जैसे नेताओं का दावा है कि इन सीटों पर कांग्रेस का उम्मीदवार ही जीतेगा……. कांग्रेस ने 2022 में स्वास्थ्य, शिक्षा और मूल्य वृद्धि जैसे मुद्दों पर बीजेपी को घेरने की कोशिश की थी……. और इस बार भी वह इन्हीं मुद्दों को उठा सकती है…….

आप ने भी गुजरात में अपनी मौजूदगी बढ़ाने की कोशिश की है……… लेकिन 2022 में केवल 5 सीटें जीतने के बाद उसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं…… फिर भी आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में सक्रिय प्रचार किया था……… और इन उपचुनावों में वह स्थानीय मुद्दों को उठाकर बीजेपी को चुनौती दे सकते हैं…….

बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती उसकी नैतिक विश्वसनीयता है…….. सूरत लोकसभा सीट पर निर्विरोध जीत और दाहोद में बूथ कैप्चरिंग की घटना ने बीजेपी की छवि को धक्का पहुंचाया है…… क्या कडी और विसवादार में भी बीजेपी ऐसी रणनीतियों का सहारा लेगी…… या वह जनता के सामने अपनी नीतियों और कार्यों के आधार पर वोट मांगेगी…….

गुजरात में बीजेपी की लंबी सत्ता ने कई सवाल खड़े किए हैं……. बेरोजगारी, महंगाई, और ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की कमी जैसे मुद्दे जनता के बीच असंतोष का कारण बन रहे हैं……. कडी और विसवादार के उपचुनाव बीजेपी के लिए एक अवसर हैं कि वह इन मुद्दों को संबोधित करे……. लेकिन अगर वह फिर से प्रचार और ध्रुवीकरण की रणनीति पर निर्भर रही……. तो यह उसकी दीर्घकालिक विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकता है……

 

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