बिहार से मोदी को हटाने का चलेगा अभियान

महागठबंधन की महारैली में भाजपा के खिलाफ हुंकार

  • 24 लोस चुनाव में नीतिश करेंगे बेड़ापार
  • अमित शाह ने की थी सभा
  • तेजस्वी-लालू भी ने ताकत झोंकी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
पटना। अगले साल होने जा रहे लोकसभा चुनाव में बिहार का सीमांचल महत्वपूर्ण केंद्र होगा। इसके संकेत अभी से मिलने लगे हैं। चुनाव के मद्देनजर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 2022 के आखिर में अपनी पहली सभा पूर्णिया में की थी। अब सात दलों के महागठबंधन की महारैली पूर्णिया में हो रही है। जोर आजमाइश का आलम यह कि पूर्णिया के उसी मैदान में महागठबंधन की रैली हो रही है, जहां अमित शाह की सभा हुई थी। रैली में जुटने वाली भीड़ से यह अनुमान लगेगा कि किसमें कितना है दम।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 23 सितंबर को पूर्णिया के रंगभूमि मैदान में सभा कर लोकसभा चुनाव प्रचार का शंखनाद किया था। उसके बाद वे किशनगंज गए थे। एनडीए से जेडीयू के अलग होने के बाद बीजेपी की यह पहली सभा थी। आज बिहार में तीन रैली है। महागठबंधन, अमित शाह और किसान महापंचायत। महागठबंधन की रैली में सात दल अपनी ताकत आजमा रहे हैं। अमित शाह सीमांचल को साधने के लिए दोबारा पूर्णिया में हुंकार भर रहे हैं। वहीं बिहार सरकार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह राकेश टिकैत के जरिए अपनी राजनीति साध रहे हैं।
उस रैली में अमित शाह का भाषण तकरीबन आधे घंटे का था और उनके निशाने पर महागठबंधन की दो बड़ी पार्टियों- आरजेडी व जेडीयू के शीर्ष नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार रहे थे। उन्होंने कहा था कि सीमांचल में उनकी यात्रा से लालू और नीतीश के पेट में दर्द हो रहा है। वे कह रहे हैं कि सीमांचल में मैं झगड़ा कराऊंगा। शायद यही वजह रही कि महागठबंधन ने भी अपनी पहली चुनावी रैली के श्रीगणेश के लिए पूर्णिया के उसी मैदान को चुना, जहां से अमित शाह ने संबोधित किया था। महागठबंधन ने आज होने वाली रैली की सफलता के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। हालांकि कांग्रेस की भागीदारी बेमन से ही दिख रही है। इसके दो कारण बताये जा रहे हैं। पहला यह कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के मद्देनजर बिहार के बड़े कांग्रेसी नेता बाहर हैं। दूसरा कारण यह माना जा रहा है कि रैली के प्रचार के लिए जो पोस्टर बने हैं, उसमें कांग्रेस नेताओं को जगह नहीं मिली है। पोस्टर में लालू-नीतीश और तेजस्वी यादव तो प्रमुखता से दिख रहे हैं, लेकिन सोनिया गांधी या राहुल की तस्वीर नहीं है। अपुष्ट जानकारी यह मिल रही है कि जान-बूझ कर ऐसा किया है। महागठबंधन के बड़े नेता यह मान चुके हैं कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में एकला चलने का मन बना चुकी है। इसलिए उसे तरजीह देने का कोई लाभ नहीं होगा। उल्टे लालू ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर जो प्लान किया है, उसमें राहुल गांधी की बजाय नीतीश कुमार को पीएम फेस के रूप में प्रोजेक्ट करना है। इधर कांग्रेस अपने नेता राहुल गांधी को ही पीएम फेस बनाना चाहती है। इसकी घोषणा कांग्रेस के सीनियर लीडर कमलनाथ ने पहले ही कर दी थी, जब राहुल भारत जोड़ो यात्रा पर निकले थे।

नीतीश को पीएम फेस बनाने का हो सकता है ऐलान

सूचना यह मिल रही है कि आज की रैली में नीतीश कुमार को महागठबंधन अपना पीएम उम्मीदवार घोषित कर सकता है। होली बाद नीतीश विपक्षी पार्टियों के नेताओं से मिलने और उन्हें एकजुट करने के काम में लगेंगे। कांग्रेस को छोड़ महागठबंधन के नेता नीतीश को पीएम फेस बनाने के लिए तैयार हो गये हैं। हालांकि नीतीश कुमार के लिए विपक्षी एकता की कवायद आसान नहीं होगी। फिलहाल विपक्ष चार खेमों में बंटा हुआ है। पहला खेमा कांग्रेस का है, जो अपने उम्मीदवार के साथ चुनाव में अकेले उतरने का मन बना चुकी है। दूसरा खेमा तेलंगाना के सीएम केसी राव का है, जिन्होंने आम आदमी पार्टी और सीपीएम के साथ समाजवादी पार्टी को भी अपने फोल्ड में लाने की कोशिश की है। एक खेमा अभी निर्गुट है, जिसमें पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक हैं। निर्गुट खेमे को बीजेपी के साथ राहुल और नीतीश कुमार भी नापसंद हैं। हालांकि इस खेमे ने अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं।सबकी पसंद बने सीमांचल के चार जिले
बिहार के सीमांचल में पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और कटिहार जिले प्रमुख रूप से आते हैं। इन जिलों में मुस्लिम आबादी निर्णायक है। अधिक मुस्लिम आबादी के कारण महागठबंधन को अपना बड़ा जनाधार दिखता है। आमतौर पर यही माना जाता है कि मुसलमान बीजेपी को वोट नहीं देते। ऐसे में मुस्लिम वोटों का एकमात्र ठेकेदार महागठबंधन बनना चाहता है। लोकसभा चुनाव में अगर महागठबंधन को कामयाबी मिलती है तो 2025 के विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन की राह आसान हो जाएगी। महागठबंधन की चिंता असदुद्दीन ओवैसी की पर्टी एआईएमआईएम के इस इलाके में उभार से भी बढ़ी हुई है। 2020 में ओवैसी के 5 विधायक इन्हीं इलाकों से चुने गये थे। हालांकि बाद में इनमें 4 ने आरजेडी ज्वाइन कर लिया था। अगर मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होता है तो इसमें बीजेपी अपना लाभ देख रही है। वह हिन्दू वोटों को ध्रुवीकृत करने का प्रयास करेगी।

Related Articles

Back to top button