सबको भागेदारी देकर कांग्रेस ने दिखाया दम

एक अल्पसंख्यक, दो दलित व एक ईसाई को भी किया शामिल

  • हर वर्ग के सदस्यों को मिली जिम्मेदारी
  • सीएम ओबीसी व डिप्टी सीएम वोक्कालीगा समुदाय से
  • जल्द होगा मंत्रिमंडल का विस्तार

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
बेंगलुरू। जिस तरह से कांग्रेस ने सोशल इंजिनियरिंग के जरिए कर्नाटक का चुनावी मैदान मारा है। उसी तरह की व्यवस्था मंत्रिमंडल में भी देखने को मिली है। सीएम जहां ओबीसी है तो शिवकुमार वोक्कालिगा से आते हैं। उधर सिद्धारमैया ने शनिवार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली उनके साथ डीके शिवकुमार ने भी मंत्री पद की शपथ ली जो राज्य के डिप्टी सीएम बनाए गए हैं। इन दोनों के साथ ही 8 मंत्रियों ने भी शपथ ग्रहण किया। कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत के पीछे इस बार सोशल इंजीनियरिंग का वह फॉर्मूला था जिसको लेकर पार्टी आगे बढ़ रही थी।
उसी सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले की छाप आज मंत्रिमंडल में भी देखने को मिली। जिन 8 मंत्रियों ने शपथ ली है उनमें कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष जी परमेश्वर, लिंगायत नेता एम बी पाटिल और पार्टी के राष्टï्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियंक खरगे भी शामिल हैं। परमेश्वर और प्रियंक दलित समुदाय से आते हैं। जिन मंत्रियों ने शपथ ली उनमें एच मुनियप्पा, के जे जॉर्ज, सतीश जारकीहोली, रामालिंगा रेड्डी और बी जेड जमीर अहमद खान भी शामिल हैं। मुनियप्पा भी दलित समुदाय से आते हैं। वहीं, खान और जॉर्ज का संबंध अल्पसंख्यक समुदाय से है। जारकी होली अनुसूचित जनजाति समुदाय से आते हैं, जबकि रामालिंगा रेड्डी का संबंध रेड्डी जाति से है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया कुरुबा समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और डिप्टी सीएम शिवकुमार वोक्कालिगा समुदाय से आते हैं।
सिद्धरमैया के सामने पहली चुनौती थी सही संतुलन के साथ मंत्रिमंडल के गठन की, जिसमें सभी समुदायों, धर्म, वर्गों और पुरानी और नई पीढिय़ों के विधायकों का प्रतिनिधित्व हो। सिद्धारमैया ने पहली चुनौती सफलतापूर्वक पूरी कर ली है। कर्नाटक मंत्रिमंडल में मंत्रियों की स्वीकृत संख्या 34 है आगे जल्द ही मंत्रिमंडल का विस्तार होने की संभावना है। कर्नाटक में इस बार कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला पूरी तरह कामयाब रहा। कांग्रेस का इस बार कर्नाटक में खास फोकस दलित, अल्पसंख्यक और ओबीसी पर था। कांग्रेस इस चुनाव में इसको साधने में पूरी तरह सफल भी हुई। इसकी छाप शनिवार को शपथ ग्रहण समारोह में भी दिखी। मंत्रियों को देखें तो सिद्धारमैया ने पूरी तरह से इसको साधने की कोशिश की है। कर्नाटक राज्य कांग्रेस और खासकर डीके शिवकुमार की इस बार पूरी कोशिश थी कि चुनाव लोकल मुद्दे पर ही हो। कर्नाटक में जीत का फॉर्मूला जो इस बार आजमाया गया पार्टी उसे 2024 के चुनाव में भी आजमाने की तैयारी है। दलित, अल्पसंख्यक और ओबीसी पर पार्टी का जोर था। टिकट बंटवारे में भी इस बार इसका खास ध्यान रखा गया था।

कई वरिष्ठï नेताओं ने बढ़ाया हौसला

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कर्नाटक के नामित उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार बेंगलुरु के श्री कांतीरावा स्टेडियम में एक हल्के-फुल्के अंदाज में नजर आए। पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती बेंगलुरु में नव-निर्वाचित कर्नाटक सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुईं। इस दौरान महबूबा मुफ्ती ने हाथ उठाकर लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। कमल हसन पहुंचे। अभिनेता और मक्कल निधि मय्यम के प्रमुख कमल हासन बेंगलुरु के श्री कांतीरवा स्टेडियम में नवनिर्वाचित कर्नाटक सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। कर्नाटक शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पहुंचे। इस दौरान शिवकुमार और स्टालिन दोनों एक दूसरे के गले मिले। बेंगलुरु के श्री कांतीरवा स्टेडियम में तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और अन्य डीएमके नेताओं का स्वागत किया गया।

डिप्टी सीएम ने विधानसभा की सीढिय़ों को किया प्रणाम

कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने शपथ ग्रहण समारोह में शपथ ली। उसके बाद उनका काफिला कर्नाटक विधानसभा के लिए रवाना हुआ। काफिला कर्नाटक विधानसभा भवन पहुंचा। इस दौरान सिद्धारमैया सबसे आगे थे। उनके पीछे डीके शिवकुमार और बाकी कैबिनेट मंत्री थे। इस दौरान सिद्धारमैया तेजी से अंदर चले गए जबकि डीके शिवकुमार वहीं रुक गए। सिद्धा के अंदर जाने के बाद डीके शिवकुमार सीढय़िों पर लेट गए और नमस्तक होकर प्रमाण किया। उन्होंने विधानसभा की सीढय़िों पर माथा टेका और प्रमाण करते हुए अंदर गए।

केजरीवाल, मायावती, केसीआर को न्यौता नहीं

कर्नाटक को शनिवार को अपना मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री मिल गया। हालांकि, शपथ ग्रहण समारोह में कई प्रमुख विपक्षी नेता शामिल नहीं हो सकें, क्योंकि उन्हें निमंत्रण नहीं मिला है। इनमें दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना सीएम के चंद्रशेखर राव, केरल के सीएम पिनाराई विजयन और बीएसपी की प्रमुख मायावती भी शामिल हैं। हालांकि, कहा जा रहा है कि विपक्षी एकता को दर्शाने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन और कई नेता समारोह में पहुंच रहे हैं। बता दें कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराने के मकसद से विपक्षी नेता एकजुट हो रहे हैं। लेकिन, इसके ठीक पहले हो रहे कर्नाटक के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष के ही कई नेताओं को निमंत्रण नहीं मिलना इस एकता में दरार का संकेत है।

चौथे नंबर पर मुनियप्पा ने ली शपथ

चौथे नंबर पर केएच मुनियप्पा ने शपथ ली। मुनियप्पा देवनहल्ली की कोलार सीट से विधानसभा से सातवीं बार विधायक बने हैं। वह 30 साल सांसद रहे हैं। केंद्र सरकार में वह मंत्री भी रहे हैं। 2009 में रेल राज्यमंत्री भी थे। उन्हें उनके कद के अनुसार चौथे नंबर पर शपथ लेने के लिए भेजा गया। शपथ ग्रहण के बाद शाम को कैबिनेट मीटिंग होगी और कांग्रेस के घोषणापत्र में किए गए वादों को पूरा करने पर काम होगा।

सभी को मिली भागेदारी

2024 लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने कर्नाटक में गजब की सोशल इंजीनियरिंग की है। परमेश्वर नाराज थे, उन्हें मंत्री बनाया गया है और कांग्रेस अध्यक्ष खरगे के बेटे प्रियांक भी मंत्री बनेंगे। इन सबसे ऊपर जाति का गणित समझना महत्वपूर्ण है। सिद्धारमैया सीएम होंगे जो ओबीसी समुदाय से आते हैं। डेप्युटी सीएम बनने जा रहे डीके शिवकुमार वोक्कालिगा, जी परमेश्वर लिंगायत, केके जॉर्ज ईसाई, मुनियप्पा दलित, सतीश जारकीहोली एसटी, जमीर अहमद मुस्लिम, रामालिंग रेड्डी ओबीसी, प्रियांक खरगे एसटी और एमबी पाटिल दलित हैं।

विजयन को निमंत्रण न मिलने से भड़की एलडीएफ

केरल में सत्तारूढ़ वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में सिद्धरमैया के शपथ ग्रहण समारोह में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को आमंत्रित न किये जाने को लेकर कांग्रेस की आलोचना की। एलडीएफ ने कहा कि यह कदम कांग्रेस की ‘अपरिपक्व राजनीति और कमजोरी’ को दर्शाता है। बेंगलुरु में हो रहे शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन सहित विभिन्न राज्यों के नेताओं को आमंत्रित किया गया। एलडीएफ समन्वयक ई.पी. जयराजन ने कहा कि कांग्रेस के इस कदम ने साबित कर दिया है कि वह भाजपा की ‘फासीवादी’ राजनीति के खिलाफ देश की धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक ताकतों को एक साथ लाने के मिशन को पूरा नहीं कर सकती।

 

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