प्रख्यात परमाणु वैज्ञानिक डॉ. एमआर श्रीनिवासन का 95 वर्ष की आयु में निधन

चेन्नई: देश के प्रतिष्ठित परमाणु वैज्ञानिक और परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एमआर श्रीनिवासन का मंगलवार को तमिलनाडु के उधगमंडलम में निधन हो गया। वे 95 वर्ष के थे। डॉ. श्रीनिवासन भारत के नागरिक परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के प्रमुख शिल्पकार माने जाते हैं।
डॉ. श्रीनिवासन ने अपने वैज्ञानिक जीवन की शुरुआत सितंबर 1955 में परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) से की थी। उन्होंने डॉ. होमी जहांगीर भाभा के साथ मिलकर भारत के पहले अनुसंधान रिएक्टर ‘अप्सरा’ के निर्माण में भाग लिया, जिसे अगस्त 1956 में शुरू किया गया था। 1959 में उन्हें भारत के पहले परमाणु ऊर्जा संयंत्र के लिए प्रमुख परियोजना इंजीनियर नियुक्त किया गया। इसके बाद 1967 में वह मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन के मुख्य परियोजना इंजीनियर बने। यह परियोजना भारत को परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुई।
1974 में डॉ. श्रीनिवासन को पावर प्रोजेक्ट्स इंजीनियरिंग डिवीजन का निदेशक नियुक्त किया गया और लगभग एक दशक बाद उन्होंने न्यूक्लियर पावर बोर्ड के अध्यक्ष का पद संभाला। उनके नेतृत्व में देश के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र ने उल्लेखनीय प्रगति की। उन्होंने कई प्रमुख परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं की योजना, निर्माण और संचालन में अहम भूमिका निभाई। 1987 में उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग का सचिव बनाया गया। इसी वर्ष वे न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) के संस्थापक अध्यक्ष भी बने। उनके कार्यकाल में 18 परमाणु ऊर्जा इकाइयों की योजना बनी, जिनमें से सात चालू हो गईं, सात निर्माणाधीन रहीं और चार योजना चरण में थीं।
परमाणु विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में उनके अमूल्य योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान से नवाजा था। उनकी बेटी शारदा श्रीनिवासन ने परिवार की ओर से जारी एक बयान में कहा, उनका दूरदर्शी नेतृत्व, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और देश के प्रति समर्पण आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बना रहेगा।



