इसे कहा जाता है दुनिया का सबसे ठंडा शहर
ठंड में आइसक्रीम की तरह जम जाता है ये शहर
दुनियाभर में कई ऐसी जगहें हैं, जहां भयानक ठंड पड़ती है। शीतलहर की वजह से लोगों का बाहर निकल पाना भी मुश्किल होता है। कई बार तो ऐसी शीतलहर की वजह से लोगों की मौत भी हो जाती है। हर साल हमारे देश में ही ठंड की वजह से दर्जनों लोग मर जाते हैं। लेकिन आज हम आपको धरती के सबसे ठंडे शहर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो दिसम्बर के महीने में पूरी तरह से आइसक्रीम की तरह जम जाता है। इस महीने इस शहर का तापमान -31 डिग्री से -41 डिग्री के बीच पहुंच जाता है। वहीं, महज चार घंटे के लिए सूरज की रोशनी नसीब होती है। हड्डियों को कंपा देने वाले इस शहर में शीतदंश और हाइपोथर्मिया जैसी बीमारी ‘लगभग ठंड जितनी ही आम बात है’। इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि याकुत्स्क को दुनिया के सबसे ठंडे शहर का बर्फीला खिताब मिला हुआ है। रूस के साइबेरिया में स्थित याकुत्स्क में 5 फरवरी 1891 को -64.4 डिग्री सेल्सियस का रिकॉर्ड न्यूनतम तापमान दर्ज किया गया था, जबकि यह उत्तरी धु्रव का सबसे नजदीकी शहर भी नहीं है।
बताया जाता है कि याकुत्स्क में भयानक सर्दी की एक खास वजह है, जिसमें यहां की नदी घाटी का शामिल होना है। ये घाटी ठंडी हवाओं को अपने बीच में फंसाए रखती है, जिससे एक उच्च दबाव प्रणाली डेवलप होती है। इस प्रणाली को आमतौर पर साइबेरियन हाई के रूप में जाना जाता है। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, मौसम का यह पैटर्न आर्कटिक क्षेत्र से ठंडी हवाएं लाता है, जिससे याकुत्स्क में पर्माफ्रॉस्ट का अनुभव होता है। पर्माफ्रॉस्ट का मतलब ठंडे तापमान के कारण जमीन का स्थायी रूप से जम जाना होता है। याकुत्स्क शहर की कुल आबादी 3 लाख 55 हजार लोगों की है। हर साल यहां पर ठंड की वजह से सैकड़ों लोगों की मौत हो जाती है। इतना ही नहीं, भयानक ठंड के कारण यहां के लोगों में शीतदंश और हाइपोथर्मिया नाम की बीमारी बेहद ‘आम’ है। हाइपोथर्मिया में शरीर के अंदर की गर्मी पूरी तरह से खत्म हो जाती है। ऐसे में बाहरी गर्मी की आवश्यकता होती है। अगर बाहर से आग की गर्मी या फिर धूप न मिले तो और शरीर ठंडा होता चला जाए, तो मौत निश्चित है।
याकुत्स्क की रहने वाली यूट्यूबर किउन बी ने अपने एक वीडियो में बताया है कि वह कैसे क्रूर परिस्थितियों से निपटती हैं? साथ ही कैसे ‘घने बर्फीले धुएं’ ने साल के ज़्यादातर समय सूरज को छिपाए रखा। उन्होंने कहा, यह किसी साइंस फिक्शन फिल्म के सीन जैसा है। बता दें कि किउन को बाहर रहने की वजह से नाक और गालों पर ‘हल्का शीतदंश’ भी हुआ, जिसकी वजह से उन्हें खुद को स्वस्थ रखने के लिए विटामिन डी और आयरन की खुराक लेनी पड़ती है, क्योंकि इस शहर में सूरज की रोशनी की कमी है। हालांकि, याकुत्स्क में -40 डिग्री सेल्सियस तापमान होने के बावजूद जीवन ‘नहीं रुकता’। यहां के स्थानीय लोग अभी भी बाहर निकलते हैं, स्कूल जाते हैं और अपना काम करते हैं। सर्दी के बाद यहां के लोगों के लिए गर्मी भी कम खतरनाक नहीं होती। -40 डिग्री टेम्परेचर के बाद मई में यहां का तापमान बढऩे लग जाता है। जुलाई के महीने में तो इस शहर का तापमान 26 डिग्री तक पहुंच जाता है। सितंबर तक गर्मी पड़ती है, फिर अक्टूबर से तापमान गिरने लगता है। बता दें कि याकुत्स्क दुनिया का सबसे ठंडा शहर है, लेकिन ओम्याकॉन गांव को दुनिया का सबसे ठंडा निवास स्थान माना जाता है, जिसकी आबादी लगभग 500 है।