कर्नाटक: अब दूध पर राजनीति में उबाल

अमूल का राज्य में प्रवेश, नंदिनी ब्रांड से गठजोड़ का फैसला

  • कांग्रेस-जेडीएस ने भाजपा के खिलाफ खोला मोर्चा
  • लगाया अस्मिता को मिटाने की साजिश का आरोप
  • सिद्धारमैया जनता के पास पहुंचे

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब दूध की प्रवेश हो गया है। पूरे राज्य में कर्नाटक के दूध नंदिनी ब्रांड व अमूल को लेकर सियासत होने लगी है। कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर राज्य की अस्मिता को मिटाने का आरोप लगाया है। दूध को लेकर यह घमासान इसलिए भी हो रही है क्योकि दूध से लाखों लोग जुड़े है जो चुनाव में पार्टियों को सत्ता के करीब पहुंचा सकते हैं। इसके पीछे गृहमंत्री की वह घोषणा भी है जिसमें उन्होंने कर्नाटक के किसानों से कहा था कि अमूल और नंदिनी दोनों मिलकर गुजरात के हर गांव में प्राइमरी डेयरी खोलने की दिशा में काम करेंगे। 3 साल बाद कर्नाटक का एक भी गांव ऐसा नहीं होगा, जहां प्राइमरी डेयरी नहीं हो। 5 अप्रैल को अमूल ने ट्वीट कर जल्द ही कर्नाटक के बेंगलुरु में लॉन्चिंग का ऐलान कर दिया है।
कर्नाटक में अमूल के आइस्क्रीम जैसे प्रोडक्ट तो पहले से बिकते हैं, लेकिन अब दूध और दही भी बेचे जाएंगे।अमूल के इस ऐलान के बाद से ही हंगामा मचा है। दरअसल, कर्नाटक में अमूल की तर्ज पर किसानों का बनाया को-ऑपरेटिव ब्रांड नंदिनी चलता है। कांग्रेस का कहना है कि बीजेपी साजिश के तहत कर्नाटक के दूध ब्रांड नंदिनी को खत्म करना चाहती है। लॉन्चिंग के बाद सोशल मीडिया पर नंदिनी बचाओ, ट्रेंड करने लगा। दरअसल, नंदिनी कर्नाटक का सबसे बड़ा को-ऑपरेटिव डेयरी ब्रांड है।
बेंगलुरु होटल्स एसोसिएशन ने कहा कि हम सिर्फ नंदिनी दूध का इस्तेमाल करेंगे। 8 अप्रैल को कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया अमूल मुद्दे को लेकर जनता के बीच पहुंच गए। सिद्धारमैया ने आम लोगों से अमूल दूध नहीं खरीदने की अपील की। साथ ही सिद्धरमैया ने अमित शाह के दिए बयान का जिक्र करते हुए कहा कि कर्नाटक के सबसे बड़े दूध ब्रांड नंदिनी को बीजेपी सरकार खत्म करना चाहती है। सिद्धारमैया ने ट्वीट किया, ‘वो हम कन्नड़ लोगों की सभी संपत्ति को बेच देंगे। हमारे बैंकों को बर्बाद करने के बाद वे अब हमारे किसानों के बनाए नंदिनी दूध ब्रांड को खत्म करना चाहते हैं।’कर्नाटक के कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने कहा, ‘हमारी मिट्टी, पानी और दूध मजबूत है। हम अपने किसानों और दूध को बचाना चाहते हैं। हमारे पास नंदिनी है जो अमूल से अच्छा ब्रांड है। हमें किसी अमूल की जरूरत नहीं है।

16 जिले के किसानों में नंदिनी डेयरी की पकड़

कर्नाटक के 16 जिलों के 26 लाख किसान केएमएफ यानी नंदिनी के साथ जुड़े हैं। 2021-2022 में इसने 19,800 करोड़ रुपए का कारोबार किया है। कुछ समय पहले तक इस संस्था के बड़े पदों पर जेडीएस नेता काबिज थे। पूर्व सीएम एचडी देवेगौड़ा के परिवार की हमेशा कर्नाटक मिल्क फेडरेशन पर नजर रही है। चुनाव के दौरान मतदाताओं तक पहुंचने के लिए राजनीतिक दल इसे हमेशा एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल करते हैं। डीवी सदानंद गौड़ा ने भी मुख्यमंत्री बनने से पहले केएमएफ अध्यक्ष बनने की कोशिश की थी, लेकिन वह चुनाव हार गए। हालांकि, उन्हें बाद में भाजपा सरकार में सीएम बनाया गया था। कर्नाटक में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद इसके नेताओं ने इस को-ऑपरेटिव संस्था पर नियंत्रण हासिल कर लिया। भाजपा विधायक बालचंद्र जराकी होली इस समय कर्नाटक मिल्क फेडरेशन के अध्यक्ष हैं।

बिहार और महाराष्ट्र में को-ऑपरेटिव के जरिए सत्ता में आई पार्टियां

गुजरात के अलावा मध्य प्रदेश में भी बीजेपी ने ग्रासरूट वोटरों तक अपनी पकड़ बनाने के लिए को-ऑपरेटिव सोसाइटी का इस्तेमाल किया था। बीजेपी ने सबसे पहले मध्य प्रदेश के को-ऑपरेटिव सोसाइटी में पहले जमे कांग्रेस नेताओं को हटाया। इसके बाद उनके लिए यहां सत्ता में आना आसान हो गया। बिहार में 1990 से पहले को-ऑपरेटिव सोसाइटी और सरकार दोनों पर कांग्रेस की पकड़ मजबूत थी, लेकिन 1990 के बाद राजद और दूसरे क्षेत्रीय दलों ने को-ऑपरेटिव सोसाइटी के पदों के लिए चुनाव लडऩा शुरू किया। इसका परिणाम ये हुआ कि 1990 के बाद कांग्रेस के हाथ से को-ऑपरेटिव सोसाइटी और सत्ता दोनों चले गई। इसी तरह महाराष्ट्र में गन्ना किसानों की संख्या ज्यादा होने की वजह से शरद पवार ने गन्ना को-ऑपरेटिव सोसाइटी पर पकड़ मजबूत बनाई। इसके बाद उनकी पार्टी एनसीपी का महाराष्ट्र की राजनीति में दबदबा बढ़ गया।

अमूल को लेकर कांग्रेस राजनीति कर रही : बोम्मई

इसके बाद मामले ने तूल पकड़ा तो मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने खुद मोर्चा संभाला। बोम्मई ने कहा, ‘अमूल को लेकर कांग्रेस राजनीति कर रही है। नंदिनी सिर्फ कर्नाटक ही नहीं पूरे देश का पॉपुलर ब्रांड है। इसे सिर्फ एक राज्य तक सीमित नहीं रखना है। हम इसे दूसरे राज्यों तक ले जाने पर काम कर रहे हैं। इस ब्रांड के जरिए हमने न सिर्फ दूध उत्पादन को बढ़ाया बल्कि किसानों की कमाई को भी बढ़ाया। ऐसे में अमूल के मामले में विपक्ष के आरोप गलत हैं। कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री के. सुधाकर ने कहा कि कांग्रेस भले ही इस मामले में राजनीति कर रही हो, लेकिन किसानों के लिए कुछ नहीं किया। पहली बार बीएस येदुरप्पा ने मुख्यमंत्री रहते हुए नंदिनी से जुड़े किसानों को एक लीटर पर दो रुपए सब्सिडी दी थी, जिसे बढ़ाकर अब 5 रुपए कर दिया गया है। हालांकि, इस पूरी राजनीति से इतर अमूल के मैनेजिंग डायरेक्टर जयेन मेहता ने कहा कि वो पहले ई-कॉमर्स के जरिए अपने प्रोडक्ट को कर्नाटक ले जाएंगे। बाकी दूध कंपनियों की तरह वह बाजार में जनरल ट्रेड के लिए नहीं जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसे अमूल वर्सेस नंदिनी नहीं बल्कि अमूल और नंदिनी के तौर पर देखा जाना चाहिए।

केंद्र सरकार कर रही साजिश : कुमारस्वामी

जेडीएस नेता व पूर्व सीएम एचडी कुमारस्वामी ने कहा, ‘केंद्र सरकार अमूल को पिछले दरवाजे से कर्नाटक में स्थापित करना चाहती है। अमूल के जरिए बीजेपी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन यानी केएमएफ और किसानों का गला घोंट रही है। कन्नड़ लोगों को अमूल के खिलाफ बगावत करनी चाहिए।

वोटो के लिए हो रही राजनीति

पॉलिटिकल एक्सपर्ट ने बताया कि गुजरात और दूसरे राज्यों की तरह ही कर्नाटक मिल्क फेडरनेशन यानी केएमएफ से 26 लाख से ज्यादा किसान जुड़े हैं। गांवों और छोटे शहरों में इस तरह की डेयरी का दबदबा है। सभी राजनीतिक दलों के लिए डेयरी से जुड़े किसान और उनके परिवार एकमुश्त वोट बैंक होते हैं। ऐसे में कर्नाटक के विपक्षी दलों को डर है कि गुजरात की अमूल कंपनी अगर वहां मजबूत होती है तो इसका फायदा बीजेपी को मिलेगा। इसमें कोई दो राय नहीं कि अमूल और नंदिनी के विलय में बीजेपी की राजनीतिक मंशा हो। इस पर राजनीति होने की एकमात्र वजह अलग-अलग को-ऑपरेटिव में राजनीतिक दलों का हावी होना है। किसी भी राज्य में गांव से ज्यादा शहर के वोटरों पर बीजेपी की पकड़ है। देश में करीब 2 लाख को-ऑपरेटिव डेयरी सोसाइटी और 330 चीनी मिल को-ऑपरेटिव हैंं। ऐसे में बीजेपी र्नाटक में इस तरह के को-ऑपरेटिव सोसाइटी के जरिए गांव के वोटरों को साधना चाहती है। गुजरात और महाराष्ट्र में ये तरीका सफल रहा है। कर्नाटक मिल्क फेडरेशन देश की दूसरी सबसे बड़ी डेयरी सोसाइटी है। ऐसे में गुजरात के को-ऑपरेटिव को कर्नाटक लाकर संभव है कि बीजेपी गांव तक अपनी पहुंच बनाना चाहती हो। हर राज्य की को-ऑपरेटिव सोसाइटी पर अलग-अलग राजनीतिक दलों के नेता की पकड़ होती है। चुनाव में ये नेता इन सोसाइटी के जरिए किसानों को साधने की कोशिश करते हैं। कर्नाटक के ज्यादातर डेयरी सोसाइटी मैसूर बेल्ट में है। इनमें मांड्या, मैसूर, रामनगर, कोलार जैसे जिले आते हैं। इस इलाके में लिंगायत और वोकालिग्गा समुदाय के लोगों की आबादी ज्यादा है। यहां वोकालिग्गा कांग्रेस और जेडीएस को वोट करते हैं, जबकि लिंगायत बीजेपी के वोटर हैं। कांग्रेस को डर है कि बीजेपी इस इलाके में अपने कैडर को खिसकने से बचाकर वोकालिग्गा को अपने खेमे में ला सकती है। इससे भविष्य में बीजेपी के लिए यहां सत्ता में बने रहना आसान हो जाएगा।

को-ऑपरेटिव सोसाइटी के प्रभाव से बनती हैं सरकारें

गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में को-ऑपरेटिव सोसाइटी यहां के नौजवानों को बड़ी संख्या में नौकरी देती है। इसका अपना बिजनेस मॉडल होता है। इसकी वजह से इन संस्थाओं का अपना एक कैडर होता है। इनका कैडर किसी राजनीतिक दल से भी ज्यादा मजबूत होता है। बड़ी संख्या में इनके समर्थक होते हैं। चुनाव के समय इन सोसाइटी के बड़े पदों पर बैठने वाले लोग इनके जरिए अपना एजेंडा पूरा करते हैं। इसीलिए राजनीतिक दल इस पर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं।अमित शाह, शरद पवार समेत कई बड़े नेता को-ऑपरेटिव सोसाइटी से राजनीति में आए हैं। इसकी वजह बड़ी आबादी से इन संस्थाओं का सीधे कनेक्ट होना है।

 

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