केजरीवाल देंगे भारत सरकार के अध्यादेश को चुनौती!

  • भाजपा भी पूरी तरह से तैयार, आप से होगी रार
  • केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पलट दिया?

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली । अफसरों की ट्रांसफर-पोस्टिंग के मुद्दे पर मोदी सरकार और केजरीवाल सरकार एक-दूसरे की कोसने जुटी हैं। दिल्ली के अधिकारी किसकी सुनेंगे ये फैसला 11 मई को सुप्रीम कोर्ट में 5 जजों की बेंच ने कर दिया। जिसमें साफ कहा गया कि पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन को छोडक़र उप-राज्यपाल बाकी सभी मामलों में दिल्ली सरकार की सलाह और सहयोग से ही काम करेंगे। यानी दिल्लक की बॉस केजरीवाल सरकार है। 8 दिन बाद ही केंद्र सरकार एक अध्यादेश लाई जिसमें सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया गया। यानी दिल्ली के बॉस वापस लेफ्टिनेंट गवर्नर बन गए। अब इस अध्यादेश को कानून बनने से रोकने के लिए अरविंद केजरीवाल सरकार विपक्ष के बड़े नेताओं से मिल रहे हैं।
भारत में कानून सिर्फ संसद के जरिए ही बन सकता है। आमतौर पर संसद के साल में 3 सत्र ही होते हैं, लेकिन कानून की जरूरत तो कभी भी पड़ सकती है। यहां पर रोल आता है अध्यादेश का। अगर सरकार को किसी विषय पर तुरंत कानून बनाने की जरूरत है और संसद नहीं चल रही तो अध्यादेश लाया जा सकता है। संसद सत्र चलने के दौरान अध्यादेश नहीं लाया जा सकता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 123 में अध्यादेश का जिक्र है। केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर राष्टï्रपति के पास अध्यादेश जारी करने का अधिकार है। ये अध्यादेश संसद से पारित कानून जितने ही शक्तिशाली होते हैं। अध्यादेश के साथ एक शर्त जुड़ी होती है। अध्यादेश जारी होने के 6 महीने के भीतर इसे संसद से पारित कराना जरूरी होता है। अध्यादेश के जरिए बनाए गए कानून को कभी भी वापस लिया जा सकता है। अध्यादेश के जरिए सरकार कोई भी ऐसा कानून नहीं बना सकती, जिससे लोगों के मूल अधिकार छीने जाएं। केंद्र की तरह ही राज्यों में राज्यपाल के आदेश से अध्यादेश जारी हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट जा सकती है आप

सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर सीधे सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दी है। यह देश की सबसे बड़ी अदालत की इंसल्ट और उसके पावर को चैलेंज है। यह अध्यादेश अलोकतांत्रिक है और देश के फेडरल सिस्टम के लिए खतरनाक है। ऐसे में दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट में अध्यादेश को चुनौती देगी। इसका जवाब 1970 में आरसी कूपर बनाम भारत संघ के केस के फैसले में मिलता है। इस केस में फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति के निर्णय को चुनौती दी जा सकती है। इस मामले में संविधान बेंच बनाएं या नहीं, यह तय करने का अधिकार चीफ जस्टिस के पास होता है। ऐसे में साफ है कि कानूनी तौर पर केजरीवाल इस फैसले को कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं।

रास सभा से रुक सकता है अध्यादेश

अध्यादेश को 6 महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों से पास कराना जरूरी होता है। लोकसभा में बीजेपी और इसके गठबंधन दलों के पास बहुमत है। यहां आसानी से ये अध्यादेश पारित हो जाएगा, लेकिन राज्यसभा में इस अध्यादेश को पारित करवाना मुश्किल होगा। इसकी वजह ये है कि एनडीएए के पास राज्यसभा में बहुमत से 8 सदस्य कम हैं। ऐसे में इन्हें दूसरे दलों के मदद की जरूरत होगी। विपक्षी एकता के जरिए केजरीवाल राज्यसभा में इस अध्यादेश को हर हाल में रोकना चाहते हैं। एनडीए के पास 8 सदस्य कम पड़ेंगे। यानी इस अध्यादेश को पास कराने के लिए एनडीए के अलावा दूसरे दलों के समर्थन की भी जरूरत होगी। इस बात की संभावना जताई जा रही है कि बीजेपी आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक से समर्थन मांग सकती है।

 

 

 

 

 

 

 

 

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