सूरत के कपड़ा व्यापारियों की बड़ी बर्बादी, साड़ियां बिक रहीं हैं ‘किलो के भाव’
मोदी के गुजरात मॉडल की निकली हवा! करोड़ों की साड़ियां पानी में बर्बाद... सूरत में किलो के भाव मिल रही साड़ियां...

4पीएम न्यूज नेटवर्कः गुजरात भारत का एक प्रमुख औद्योगिक और व्यापारिक केंद्र है….. जो लंबे समय से “वाइब्रेंट गुजरात” और “गुजरात मॉडल” के नाम से जाना जाता है……. यह मॉडल विकास, बुनियादी ढांचे और आर्थिक प्रगति का प्रतीक माना जाता है……. जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान और बाद में राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया……. हालांकि, हाल की घटनाओं ने इस मॉडल पर सवाल उठाए हैं…… जून 2025 में सूरत में आई भारी बाढ़ ने शहर के कपड़ा उद्योग को भारी नुकसान पहुंचाया…… जिसके चलते करोड़ों रुपये की साड़ियां और कपड़े पानी में बर्बाद हो गए……. इसके साथ ही सोशल मीडिया और समाचारों में यह दावा भी सामने आया कि सूरत के बाजारों में साड़ियां “किलो के भाव” बिक रही हैं…….
सूरत गुजरात का एक प्रमुख व्यापारिक और औद्योगिक शहर है…. जो कपड़ा और हीरा उद्योग के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है…… यह शहर भारत के टेक्सटाइल उद्योग का सबसे बड़ा केंद्र है…….. जहां लाखों लोग कपड़ा व्यापार से जुड़े हैं….. हालांकि जून 2025 में भारी बारिश ने सूरत को जलमग्न कर दिया…….. जिससे शहर की सड़कें, घर, दुकानें और गोदाम पानी में डूब गए……. समाचारों के अनुसार केवल 36 घंटों में सूरत में लगभग 400 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई……… जिसने शहर के बुनियादी ढांचे को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया…….. सड़कों पर पानी भर गया……. रेलवे अंडरपास डूब गए…… और कई इलाकों में गाड़ियां पानी में फंस गईं…….
आपको बता दें कि सूरत के गोडादरा, मगोब, कड़ोदरा और कामरेज जैसे इलाकों में हालात इतने खराब हो गए कि सड़कें नदियों में बदल गईं…….. नगरपालिका को लोगों को बचाने के लिए ट्रैक्टर और नावों का सहारा लेना पड़ा…….. थानों में भी पानी भर गया…….. और पुलिसकर्मी अपने सामान को बचाने में जुट गए……. वहीं इस बाढ़ ने न केवल आम लोगों के जीवन को प्रभावित किया…….. बल्कि सूरत के कपड़ा उद्योग को भी भारी नुकसान पहुंचाया…….
बता दें कि सूरत का कपड़ा उद्योग भारत का सबसे बड़ा टेक्सटाइल हब है……. जो साड़ियों, ड्रेस मटेरियल और अन्य कपड़ों का उत्पादन और निर्यात करता है…….. यह उद्योग न केवल गुजरात…….. बल्कि पूरे भारत के लिए आर्थिक रीढ़ की हड्डी है…….. सूरत के कपड़ा बाजार जैसे कि टेक्सटाइल मार्केट, रिंग रोड…….. और सहारा दरवाजा, देश-विदेश में सस्ते और गुणवत्तापूर्ण कपड़ों के लिए प्रसिद्ध हैं…….
हालांकि जून 2025 की बाढ़ ने इस उद्योग को गहरी चोट पहुंचाई……. समाचारों के अनुसार…… बाढ़ के कारण सूरत के कपड़ा बाजारों में गोदामों और दुकानों में रखे करोड़ों रुपये के कपड़े पानी में भीग गए……. साड़ियां, लहंगे और अन्य कपड़े बर्बाद हो गए……. जिससे व्यापारियों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ………. कुछ व्यापारियों ने बताया कि उनके गोदामों में रखा माल पूरी तरह से खराब हो गया……… क्योंकि पानी की निकासी की उचित व्यवस्था नहीं थी………
इसके अलावा, बाढ़ ने कपड़ा व्यापार की आपूर्ति भी प्रभावित किया…….. सूरत से बांग्लादेश, श्रीलंका और अन्य देशों में निर्यात होने वाले कपड़ों का व्यापार ठप हो गया…….. बांग्लादेश में हाल ही में हुए राजनीतिक और आर्थिक संकट ने भी सूरत के कपड़ा व्यापारियों की मुश्किलें बढ़ा दीं…….. जानकारी के अनुसार बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद सूरत के 250 से अधिक व्यापारियों के 550 करोड़ रुपये फंस गए हैं……. क्योंकि भुगतान समय पर नहीं हो रहा है……
वहीं सूरत में बाढ़ के बाद साड़ियां “किलो के भाव” बिक रही हैं…… यह दावा सही है…… लेकिन पूरी तरह से नहीं……. सूरत में बाढ़ के बाद कुछ व्यापारियों ने अपने भीगे हुए……. और खराब हुए कपड़ों को कम कीमत पर बेचने की कोशिश की…… ताकि नुकसान को कुछ हद तक कम किया जा सके…….. हालांकि, यह कहना कि साड़ियां “किलो के भाव” बिक रही हैं…… अतिशयोक्ति हो सकती है…..
आपको बता दें कि सूरत के टेक्सटाइल मार्केट में सामान्य दिनों में भी सस्ती साड़ियां उपलब्ध होती हैं…… उदाहरण के लिए, जामपा बाजार, शनिवार मार्केट और चौटा बाजार जैसे स्ट्रीट मार्केट्स में साड़ियां…… और अन्य कपड़े थोक मूल्यों पर मिलते हैं…… लेकिन बाढ़ के बाद की स्थिति में कुछ व्यापारियों ने खराब हुए माल को बहुत कम कीमत पर बेचा…….. जिससे “किलो के भाव” जैसी बातें सामने आईं…….
वहीं यह स्थिति सूरत के कपड़ा उद्योग की बदहाली को दर्शाती है…… व्यापारी पहले से ही कई समस्याओं से जूझ रहे थे……. जैसे कि बांग्लादेश के साथ व्यापारिक अनिश्चितता, कोरोना-काल के बाद की मंदी……. और सरकारी नीतियों का अभाव……. बाढ़ ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया……
गुजरात मॉडल जिसे नरेंद्र मोदी ने अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल (2001-2014) के दौरान लोकप्रिय बनाया, विकास, औद्योगिक प्रगति……. और बुनियादी ढांचे के लिए जाना जाता है…….. इस मॉडल में सड़कों, बिजली और उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया……. हालांकि, सूरत की हाल की बाढ़ और कपड़ा उद्योग के संकट ने इस मॉडल की कमियों को उजागर किया है……..
वहीं कई लोगों ने गुजरात मॉडल की आलोचना की……. उदाहरण के लिए, एक एक्स पोस्ट में कहा गया कि 23 साल से भाजपा शासित गुजरात की सच्चाई देखिए……. सूरत की ये तस्वीरें विकास नहीं, धोखे की कहानी कह रही हैं……. एक अन्य पोस्ट में लिखा गया……. गुजरात में 28 साल से बीजेपी की सरकार……. हर बार वादा मेगा ड्रेनेज सिस्टम, वर्ल्ड-क्लास विकास…….. हकीकत? हर बारिश में सड़क नहीं, नदी बहती है…….
आपको बता दें कि सूरत में बाढ़ का मुख्य कारण अपर्याप्त ड्रेनेज सिस्टम……. और नालों की सफाई का अभाव बताया जा रहा है……. समाचारों के अनुसार मानसून से पहले नालों की सफाई ठीक से नहीं की गई…….. जिसके कारण पानी की निकासी नहीं हो सकी……. यह समस्या केवल सूरत तक सीमित नहीं है……. गुजरात के अन्य हिस्सों जैसे सुरेंद्रनगर के खाराघोड़ा में भी……… नर्मदा का पानी नमक के मैदानों में घुस गया……. जिससे सैकड़ों परिवारों की आजीविका प्रभावित हुई……..
बता दें कि कपड़ा उद्योग के जानकारों का कहना है कि गुजरात सरकार ने इस उद्योग को बचाने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए…….. उदाहरण के लिए नई कपड़ा नीति को लागू करने में देरी हुई……. और पुरानी नीति 31 दिसंबर 2023 को समाप्त हो गई थी…….. इसके अलावा, केंद्र सरकार द्वारा टेक्सटाइल उद्योग पर लगाए गए टैक्स ने भी इस क्षेत्र को नुकसान पहुंचाया…….
असम सरकार के एक फैसले ने भी सूरत के कपड़ा व्यापारियों को नुकसान पहुंचाया…….. असम ने अपने पारंपरिक वस्त्र मेकला चादर को बढ़ावा देने के लिए बाहर से इस वस्त्र के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया…….. इससे सूरत के व्यापारियों को सौ करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ……..
सूरत के कपड़ा व्यापारी पहले से ही कई चुनौतियों का सामना कर रहे थे……… कोरोना-काल के बाद से यह उद्योग पूरी तरह से उबर नहीं पाया…….. बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन और वहां के अस्थिर आर्थिक हालात ने सूरत के व्यापार को और प्रभावित किया……… व्यापारियों का कहना है कि उनका माल तो बांग्लादेश जा रहा है……. लेकिन भुगतान समय पर नहीं मिल रहा……..
बाढ़ ने इन व्यापारियों की स्थिति को और खराब कर दिया……… कई व्यापारियों ने बताया कि उनके गोदामों में रखा माल पूरी तरह से बर्बाद हो गया……… कुछ ने खराब हुए कपड़ों को कम कीमत पर बेचने की कोशिश की…….. लेकिन इससे भी नुकसान को पूरी तरह से कम नहीं किया जा सका……
गुजरात मॉडल को अक्सर भारत के अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है…….. इसमें औद्योगिक विकास, बुनियादी ढांचे…….. और निवेश को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता है……. सूरत में ही डायमंड ट्रेडिंग हब और ड्रीम सिटी जैसे प्रोजेक्ट्स इस मॉडल का हिस्सा हैं……..
हालांकि, सूरत की बाढ़ और कपड़ा उद्योग के संकट ने इस मॉडल की कमियों को उजागर किया है……… आलोचकों का कहना है कि गुजरात मॉडल केवल बड़े प्रोजेक्ट्स और चमक-दमक तक सीमित है…….. जबकि आम लोगों और छोटे व्यापारियों की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता……… सूरत जैसे शहर में जहां हर साल मानसून के दौरान बाढ़ की समस्या होती है……… ड्रेनेज सिस्टम को मजबूत करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए…….
सूरत में बाढ़ की समस्या को रोकने के लिए आधुनिक ड्रेनेज सिस्टम की आवश्यकता है……. मानसून से पहले नालों की सफाई…… और रखरखाव पर विशेष ध्यान देना होगा……. सरकार को कपड़ा व्यापारियों के लिए राहत पैकेज और कम ब्याज वाले ऋण उपलब्ध कराने चाहिए……. बाढ़ से हुए नुकसान की भरपाई के लिए बीमा योजनाओं को बढ़ावा देना चाहिए…… बांग्लादेश जैसे देशों के साथ व्यापारिक संबंधों को मजबूत करने के लिए केंद्र……. और राज्य सरकार को मिलकर काम करना होगा……. भुगतान की देरी को रोकने के लिए विशेष नीतियां बनानी होंगी……. बाढ़ जैसी आपदाओं से निपटने के लिए स्थानीय प्रशासन को और सक्रिय होना होगा……. आपदा प्रबंधन की योजनाओं को समय पर लागू करना होगा………
आपको बता दें कि सूरत की बाढ़ और कपड़ा उद्योग का संकट गुजरात मॉडल की कमियों को उजागर करता है…….. यह सही है कि गुजरात ने औद्योगिक और व्यापारिक क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है…….. लेकिन बुनियादी ढांचे की कमियां और सरकारी नीतियों का अभाव इस प्रगति को प्रभावित कर रहा है…….. सूरत के व्यापारी जो भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं……. आज संकट में हैं……. “किलो के भाव बिक रही साड़ियां” जैसी खबरें न केवल व्यापारियों की बदहाली को दर्शाती हैं……. बल्कि यह भी सवाल उठाती हैं कि क्या गुजरात मॉडल वास्तव में वह सब कुछ है…… जो इसे बताया जाता है…….



