माननीयों के भत्तों में बढ़ोत्तरी सियासी मजबूरी

सारे दल चाहते है बढ़े वेतन

  • आमजन से जुडऩे का माध्यम बने भत्ते
  • निश्चित कानूनी प्रावधान भी बने
  • दिल्ली व बिहार में बढ़े भत्ते

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। अभी हाल ही में दिल्ली की आप सरकार ने विधायकों व मंत्रियों के वेतन व भत्ते बढ़ाने का फैसला किया है। वेतन व भत्ते बढ़ाना सरकारों की मर्जी पर निर्भर करता है। वेतन-भत्ता बढऩे पर सारे राजनीतिक दल एक दूसरे को मौन सहमति दे देते हैं। वेतन व भत्ते बढ़ाना राजनैतिक मजबूरी भी होती है। नेताओं को जनता के बीच में जाना होता है इसके लिए खर्चा भी होता है ऐसेे सरकार की तरफ से उनकों एक तरह से मदद दी जाती है ताकि वर जनसरोकारों से जुड़ सके। हालांकि कुछ नेता इसका दुरुपयोग भी करत हैं। वहीं सार्वजनिक रूप से आम जन इस तरह की बढ़ोत्तरी पर त्वरित प्रतिक्रिया देती है। आम जन इस पर नाराजगी भी व्यक्त कर देते हैं। खैर वेतन-भत्तों का बढऩा सही या गलत यह बहस का बिषय हो सकता है, परंतु अब इस पर केंद्र सरकार को नियम-कानून बनाने की दिशा में भी आगे बढऩा चाहिए। सांसदों-विधायकों के साथ प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों तक के वेतन-भत्ते बढ़ाने के लिए निश्चित कानूनी प्रावधान होने चाहिए।
वेतन-भत्ते एक झटके में 66 फीसदी बढ़ गए। साथ ही मंत्रियों का वेतन 136 फीसदी बढ़ा दिया गया। चंद महीने पहले ही बिहार के विधायकों के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी की गई थी। सांसदों-विधायकों के वेतन-भत्ते और अन्य सुविधाएं बढऩे की खबरें गाहे-बगाहे आती रहती हैं। तर्क दिया जा सकता है कि जनप्रतिनिधि भी देश के नागरिक हैं और उनके भी परिवार हैं। उनको भी महंगाई की चिंता सताती है। लिहाजा इनके वेतन-भत्ते बढऩे पर हंगामा क्यों? लेकिन यह कुतर्क ही है। यह सवाल जायज ही है कि सांसदों और विधायकों को अपने ही वेतन-भत्ते बढ़ाने का अधिकार क्यों होना चाहिए?
देश में आइएएस अधिकारी हो चाहे बाबू, किसी को भी अपना वेतन बढ़ाने का अधिकार नहीं। इसकी तय प्रक्रिया व तंत्र होता है। क्या ऐसी प्रतिक्रिया सांसदों-विधायकों के लिए नहीं हो सकती? दूसरा सवाल उठता है कि यदि ऐसा हो भी गया तो तय प्रक्रिया व तंत्र कौन बनाएगा? क्या सांसदों-विधायकों से यह उम्मीद की जा सकती है कि वे अपने वेतन-भत्ते बढ़ाने का अधिकार छोड़ देंगे? सांसदों अथवा विधायकों के वेतन-भत्ते जब भी बढ़ते हैं, तो बहस छिड़ती जरूर है, पर कोई परिणाम नहीं निकला। केंद्र को नियम-कानून बनाने की दिशा में भी आगे बढऩा चाहिए। सांसदों-विधायकों के साथ प्रधानमंत्री से लेकर मंत्रियों तक के वेतन-भत्ते बढ़ाने के लिए निश्चित कानूनी प्रावधान होने चाहिए। ये प्रावधान ऐसे हों, जिनमें सभी राज्यों के विधायकों के वेतन-भत्तों में एकरूपता दिखे। सांसदों और विधायकों के वेतन-भत्तों में बढ़ोतरी हमेशा से मुद्दा बनता आया है। मुद्दा यह नहीं है कि वेतन कितना बढ़ा? मुद्दा यह है कि सांसदों-विधायकों के वेतन-भत्ते बढ़ाने की कोई पारदर्शी नीति क्यों नहीं है? संसद की कार्यप्रणाली हो चाहे अन्य नवाचार, हम दुनिया के दूसरे देशों से निरंतर कुछ न कुछ सीखते ही रहते हैं। क्या इस मुद्दे पर हमें वहां की व्यवस्था का अध्ययन नहीं करना चाहिए? विशेषज्ञों की कमेटी बनाकर भी तय फार्मूला बनाया जा सकता है।

पंजाब में लागू है ‘एक विधायक, एक पेंशन’

सरकारों की इच्छाशक्ति हो तो सुधार संभव है। पंजाब उदाहरण है जहां मुख्यमंत्री भगवंत मान ने ‘एक विधायक, एक पेंशन’ योजना लागू करने का साहसपूर्ण कदम उठाया। पहले पंजाब में विधायकों को हर कार्यकाल की अलग-अलग पेंशन मिलती थी। कुछ को तो पांच-पांच लाख रुपए तक पेंशन मिल रही थी। जनप्रतिनिधि खुद को जन सेवक मानते हैं, तो उन्हें अपने व्यवहार में परिवर्तन करना ही होगा।

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