प्रोफेसर खान को सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत

नई दिल्ली। हरियाणा के अशोका विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर और राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख अली खान महमूदाबाद को महिला सैन्य अफसरों कर्नल कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह पर विवादित टिप्पणी करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने महमूदाबाद को सीजेएम, सोनीपत की संतुष्टि के लिए जमानत बांड भरने को भी कहा है। साथ ही अली खान महमूदाबाद को निर्देश दिया है कि वे दोनों पोस्ट से संबंधित कोई भी ऑनलाइन लेख नहीं लिखेंगे या कोई भी ऑनलाइन भाषण नहीं देंगे जो जांच का विषय है।
बता दें कि इससे पहले, महिला सैन्य अफसरों पर अमर्यादित टिप्पणी करने के मामले में अशोका विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रो. अली खान महमूदाबाद को 27 मई तक न्यायिक हिरासत में भेजा गया था। रिमांड अवधि पूरी होने के बाद पुलिस ने प्रो. अली को जेएमआईसी आजाद सिंह की कोर्ट में पेश किया। पुलिस ने प्रोफेसर का सात दिन की रिमांड और मांगी, लेकिन कोर्ट ने मांग खारिज कर दी। अदालत ने पुलिस को 60 दिनों में केस का चालान पेश करने की हिदायत दी थी। इस दौरान पुलिस ने दलील दी थी कि प्रो. अली से बरामद लैपटॉप व मोबाइल डाटा को रिकवर करने के बाद उसकी जांच करनी है। पासपोर्ट व खातों से लेनदेन की जांच भी करनी है। दलीलें सुनने के बाद भी कोर्ट ने पुलिस रिमांड की मांग खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा, अगर पुलिस को लगता है कि रिमांड की जरूरत है तो वह नए सिरे से प्रार्थना पत्र दायर करे।
हरियाणा राज्य महिला आयोग ने की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने हाल ही में एसोसिएट प्रोफेसर को नोटिस भेजकर उनकी टिप्पणियों पर सवाल उठाया था। हालांकि महमूदाबाद ने कहा था कि उनकी टिप्पणियों को गलत समझा गया है। उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार का इस्तेमाल किया है। राज्य के डीजीपी को 16 मई को लिखे पत्र में एचएससीडब्ल्यू ने प्रथम दृष्टया साक्ष्य और मिसाल के आधार पर महमूदाबाद के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए शिकायत भी की थी।
इन धाराओं में दर्ज हुई थी एफआईआर
पुलिस ने बताया कि आयोग अध्यक्ष की शिकायत पर अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली के खिलाफ बीएनएस धारा 152 (भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य), 353 (सार्वजनिक शरारत करने वाले बयान), 79 (किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से जानबूझकर की गई कार्रवाई) और 196 (1) (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई है। ये सभी धाराएं गैर-जमानती हैं।
एसोसिएट प्रोफेसर ने यह कहा था
एसोसिएट प्रोफेसर अली महमूदाबाद ने कहा था कि कर्नल सोफिया कुरैशी की सराहना करने वाले दक्षिणपंथी लोगों को भीड़ की ओर से की गई हत्याओं और संपत्तियों को मनमाने ढंग से गिराए जाने के पीडि़तों के लिए सुरक्षा की मांग करनी चाहिए। महमूदाबाद ने कर्नल कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की मीडिया ब्रीफिंग को दिखावा बताया था। साथ ही कहा था कि दिखावे को जमीनी हकीकत में बदलना होगा, अन्यथा यह सिर्फ पाखंड है।
आयोग ने की थी ये शिकायत
आयोग ने शिकायत में कहा कि महमूदाबाद की टिप्पणियों में कर्नल कुरैशी और विंग कमांडर सिंह सहित वर्दीधारी महिलाओं के अपमान और भारतीय सशस्त्र बलों में पेशेवर अधिकारियों के रूप में उनकी भूमिका को कमतर आंकने की प्रवृत्ति दिखती है। आयोग का आरोप है कि एसोसिएट प्रोफेसर की सोशल मीडिया पोस्ट ऐसी भाषा से युक्त थी, जो पहली नजर में कुछ लोगों को सहानुभूतिपूर्ण लग सकती है, लेकिन ध्यानपूर्वक पढऩे के बाद इसमें ऐसे शब्द हैं, जो वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य और घरेलू सुरक्षा एवं शांति संबंधी चिंताओं के मद्देनजर पूरी तरह से अनुचित हैं। उनके ‘…मनमाना…संवेदनहीन मौत…’ जैसे शब्द सभी रूपों में गंभीर निंदा के पात्र हैं, क्योंकि बयान के संदर्भ को न तो सद्भावना के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और न ही भारत सरकार की ओर से युद्ध की घोषणा के अभाव के कारण इसे ईजुस्डेम जेनेरिस कहा जा सकता है।
एक शिक्षाविद होने के नाते उनके कुछ दायित्व हैं
आयोग ने कहा, एक शिक्षाविद् होने के नाते अली का समाज के प्रति विशेष दायित्व है कि वह अपने शब्दों के प्रति अधिक सावधान रहें और निम्नलिखित भावनाओं को साझा करने के लिए साइबर स्पेस का उपयोग करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के साथ रखकर नहीं देखा जा सकता। इस बयान में सिर्फ कर्नल कुरैशी का जिक्र करना साफतौर पर उनकी मंशा को दर्शाता है कि वह अपने पोस्ट को धार्मिक पहचान का रंग देना चाहता है। मौजूदा समय में साइबरस्पेस की ताकत को देखते हुए इसके दूरगामी नतीजे हो सकते हैं।

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