कोटे में कोटा के फैसले पर उठा सवाल

बसपा व आजाद समाज पार्टी ने दी तीखी प्रतिक्रिया

कांग्रेस व बीजेपी ने साधी चुप्पी

4पीएम न्यूज़ नेटवर्क
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को मिलने वाले आरक्षण को लेकर गुरुवार को बड़ा फैसला सुनाते हुए एससी-एसटी में कोटे के अंदर कोटे को मंजूरी दे दी है. चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से ये फैसला सुनाया जिस पर सियासत शुरू हो गयी है।
सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है, ताकि उन जातियों को आरक्षण दिया जा सके जो सामाजिक और शैक्षणिक रूप से अधिक पिछड़ी हैं, हालांकि, साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि राज्यों को पिछड़ेपन और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व के मात्रात्मक और प्रदर्शन योग्य आंकड़ों के आधार पर उप-वर्गीकरण करना होगा, ना कि मर्जी और राजनीतिक लाभ के आधार पर। वहीं इस मामले में लोकसभा सांसद चंद्रशेखर व बसपा प्रमुख मायवती ने तीखी टिप्पणी की है।

सामाजिक उत्पीडऩ की तुलना में राजनीतिक उत्पीडऩ कुछ भी नहीं : मायावती

बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती की पहली प्रतिक्रिया सामने आई है। बसपा सुप्रीमो ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर नाराजगी जताई और कहा कि इन वर्गों के बीच आरक्षण का बँटवारा करना कितना उचित होगा। बसपा सुप्रीमो ने एक्स पर लिखा- सामाजिक उत्पीडऩ की तुलना में राजनीतिक़ उत्पीडऩ कुछ भी नहीं, क्या देश के ख़ासकर करोड़ों दलितों व आदिवासियों का जीवन द्वेष व भेदभाव-मुक्त आत्म-सम्मान व स्वाभिमान का हो पाया है, अगर नहीं तो फिर जाति के आधार पर तोड़े व पछाड़े गए इन वर्गों के बीच आरक्षण का बंटवारा कितना उचित?। उन्होंने आगे कहा- देश के एससी, एसटी व ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस व भाजपा दोनों ही पार्टियों/सरकारों का रवैया उदारवादी रहा है सुधारवादी नहीं। वे इनके सामाजिक परिवर्तन व आर्थिक मुक्ति के पक्षधर नहीं वरना इन लोगों के आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर की गयी होती।

वर्गीकरण सुप्रीम कोर्ट से ही हो : चंद्रशेखर

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आजाद समाज पार्टी के नेता और लोकसभा सांसद चंद्रशेखर आजाद ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि जिन जजों ने ये ऑर्डर दिया, उसमें एससी, एसटी के कितने हैं। ये बहुत जरूरी है कि अगर आप वर्गीकरण करना ही चाह रहे हैं तो सुप्रीम कोर्ट से इसकी शुरुआत होनी चाहिए। वहां तो लंबे समय से कुछ ही परिवारों का कब्जा है। एससी और एसटी के लोगों को आप घुसने नहीं दे रहे हो लेकिन क्या सामान्य जाति के लोगों में अवसर नहीं है, उनको भी आप मौका नहीं दे रहे, अगर आपको वर्गीकरण करना ही है तो सर्वोच्च संस्था से ही क्यों ना किया जाए, नीचे से क्या करना चाहते हैं, क्या एससी, एसटी की मॉनिटिरिंग की है, जो आपने ऑर्डर दिया था रिजर्वेशन में प्रमोशन का, क्या एससी और एसटी का बैकलॉग भरा गया, क्या आपको जानकारी है कि क्या आंकड़े है जो एससी और एसटी को आरक्षण मिल रहा है। आर्थिक स्थिति के क्या आंकड़े है आपके पास, बंद कमरे में बैठकर कुछ भी फैसला ले लिया जाएगा। क्या ये आर्टिकल 341 का उल्लंघन नहीं है। आपने आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के आधार पर ईडब्ल्यूएस के फैसले को मान्यता दी।

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