SC का अहम फैसला, कहा- वकीलों को जांच से छूट नहीं
सीजेआई भूषण आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि वकीलों को जांच से छूट नहीं है.

4पीएम न्यूज नेटवर्कः सीजेआई भूषण आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि वकीलों को जांच से छूट नहीं है. कोर्ट ने कहा कि पेशेवर सलाह और आपराधिक आचरण के बीच अंतर बनाए रखा जाना चाहिए.
वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार और बार की स्वतंत्रता की रक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि वकीलों को उनके मुवक्किलों को दी जाने वाली कानूनी सलाह के लिए जांच एजेंसियों द्वारा तब तक नहीं बुलाया जा सकता जब तक कि ऐसा करने के लिए पर्याप्त कारण न हों और वरिष्ठ पर्यवेक्षी स्तर पर समन को मंजूरी न दी गई हो.
सीजेआई भूषण आर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि वकीलों को जांच से छूट नहीं है, फिर भी पेशेवर कानूनी सलाह, जो संरक्षित है और ऐसे मामलों में जहां कोई वकील आपराधिक आचरण में शामिल हो सकता है, उनके बीच अंतर बनाए रखा जाना चाहिए.
सर्वोच्च अदालत ने स्पष्ट किया कि उसके निर्देश केवल कानूनी पेशे की सुरक्षा के लिए हैं, जो न्याय प्रशासन के लिए आवश्यक है. बेंच ने फैसले का मुख्य भाग पढ़ते हुए स्पष्ट किया कि कोई भी जांच एजेंसी किसी वकील से उसके मुवक्किल के बारे में विवरण नहीं मांगेगी, सिवाय उन परिस्थितियों के जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम (बीएसए) की धारा 132 के तहत स्पष्ट रूप से अनुमत हैं, जो विशेषाधिकार प्राप्त कानूनी संचार की रक्षा करती है.
धारा 132 एक वकील और उसके मुवक्किल के बीच गोपनीय संचार की रक्षा करती है और मुवक्किल की स्पष्ट सहमति के बिना प्रकटीकरण को रोकती है. यह विशेषाधिकार पेशेवर सेवा के दौरान मुवक्किल को दिए गए सभी संचार, दस्तावेजों की सामग्री और सलाह पर लागू होता है. इस प्रावधान के अंतर्गत अपवाद खंड स्पष्ट करता है कि यह संरक्षण किसी अवैध उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिए किए गए संचार या अधिवक्ता द्वारा देखे गए ऐसे तथ्यों पर लागू नहीं होता है, जो दर्शाते हैं कि कोई अपराध या धोखाधड़ी की गई है.
सर्वोच्च अदालत ने निर्देश दिया कि यदि किसी वकील को समन भेजा जाता है, तो समन में एजेंसी द्वारा बताए गए तथ्यों और सामग्री का स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए, न कि खुले नोटिस जारी करके वकीलों से मुवक्किल के निर्देश, दस्तावेज़ या कानूनी तर्क प्रकट करने की अपेक्षा की जानी चाहिए.
बेंच ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के प्रावधानों का हवाला देते हुए वकीलों के डिजिटल उपकरणों के लिए एक विशिष्ट प्रोटोकॉल निर्धारित किया. यदि कोई एजेंसी किसी वकील का लैपटॉप, फ़ोन या स्टोरेज डिवाइस माँगती है, तो उसे पहले संबंधित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होगा. न्यायालय ने आगे कहा कि न्यायालय को संबंधित वकील और मुवक्किल को नोटिस जारी करना चाहिए, और डिवाइस का उपयोग केवल वकील और मुवक्किल की उपस्थिति में ही किया जा सकता है और डिक्रिप्शन या डेटा निष्कर्षण के दौरान उनकी पसंद के तकनीकी विशेषज्ञ मौजूद होने चाहिए.
कोर्ट ने क्या-क्या कहा?
सर्वोच्च अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि विशेषाधिकार प्राप्त कानूनी संचार से समझौता न हो. बेंच ने एक स्पष्ट सीमा रेखा खींचते हुए कहा कि यह सुरक्षा उन वकीलों तक नहीं पहुंचती जो किसी अपराध में व्यक्तिगत रूप से शामिल हैं और किसी भी आपराधिक गतिविधि को संरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए.
यह निर्णय एक स्वतः संज्ञान कार्यवाही के बाद आया है जो प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा सलाहकार कार्य के लिए वकीलों को बुलाने की कई घटनाओं के बाद शुरू हुई थी, जिसमें जून में शेयर आवंटन से संबंधित एक जांच में वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दत्तार और प्रताप वेणुगोपाल से जुड़ी घटना भी शामिल है, जिस पर बार संघ ने आपत्ति जताई थी.
12 अगस्त को बहस के दौरान कई बार संघों ने अदालत से वकीलों को सम्मन जारी करने से पहले न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति लेने का आग्रह किया. अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणि और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस प्रस्ताव का विरोध किया और चेतावनी दी कि वकीलों के लिए एक अलग कानूनी प्रक्रिया बनाने से अनुच्छेद 14 (समानता) की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा.
उस समय पीठ ने संकेत दिया था कि कुछ संस्थागत सुरक्षा उपाय अपरिहार्य हैं, क्योंकि उसने यह भी कहा था कि केवल कानूनी सलाह के लिए वकीलों को बुलाने से इस पेशे पर प्रभाव पड़ने और मज़बूत बचाव कार्य को हतोत्साहित करने का जोखिम है. जुलाई में प्रवर्तन निदेशालय ने एक आंतरिक निर्देश जारी किया था जिसमें अपने अधिकारियों को निर्देश दिया गया था कि वे बीएसए की धारा 132 का उल्लंघन करने वाले वकीलों को न बुलाएं. शुक्रवार का फैसला इस स्थिति को और पुख्ता करता है, पुलिस और राज्य एजेंसियों सहित सभी जांच एजेंसियों के लिए एक समान, अखिल भारतीय मानक प्रदान करता है.



